“शेखर…।” तृप्ति की ठंडी सी आवाज़ शेखर के कानों में टकराई।हड़बड़ाहट में उठते हुए शेखर बेड से नीचे गिर गया लेकिन उसकी तरफ ध्यान न देखकर तृप्ति कॉफी का कप टेबल पर रख कर किचन में घुस गई।शेखर ने अपने दोनों हाथों को सिर पर रख दिया।गुजरी रात उसकी आँखों से गुजर गई।वह भाग कर किचन में गया और तृप्ति से बोला,
“मैं घर कब आया?”
“आए नहीं।लाए गए।रिक्की छोड़कर गई थी…तुम नशे में थे।” तृप्ति ने बिना उसकी तरफ ध्यान दिए जवाब दिया।
“वो…मैं..मैं..अरे यार, तुम्हारी दोस्त ने …।”
“ब्रेकफास्ट बन गया है फ्रेश हो जाओ।” उसकी बात पर ध्यान दिए बिना तृप्ति ने कहा।
शेखर चुपचाप वहाँ से निकल बाथरुम में घुस गया।शॉवर के नीचे बहते पानी के साथ उसके दिमाग में गुजरी रात भी बहने लगी।अपने शरीर को रगड़कर वह कुछ झुंझलाने लगा।अपराधबोध उसके चेहरे पर पसर आया।
जैसे तैसे खुद को सयंत कर वह बाथरूम से बाहर आ तृप्ति के सामने खड़ा हो गया।
“तुम कुछ परेशान लग रही हो।क्या हुआ तृप्ति?…तुम्हारी दोस्त ने कुछ!”
“नहीं सब ठीक है बस सिर दर्द है।”
“ओह..तो पहले क्यों नहीं बताया।इधर आओ तुम,आराम करो बैठो।” शेखर ने चिंतित होकर कहा।
“बैठ गई तो काम कौन करेगा!नौकर चाकर नहीं है हमारे घर में।” तृप्ति की बात जैसे कटाक्ष बन शेखर के दिल में गड़ गई।
“कौन कहता है कि नौकर नहीं है हमारे घर में!मैं हूँ न तुम्हारा गुलाम।” शेखर ने माहौल को हल्का करते हुए कहा।
तृप्ति ने हल्की सी मुस्कान दी और खामोशी से चाय पीने लगी।शेखर के दिल पर बोझ कुछ ज्यादा गहरा हो गया।थके कदमों से अपने ऑफिस निकलते बस उसके दिमाग में गुजरी रात थी।अपने ख्यालों की गिरफ्तार शेखर की तिंद्रा फोन की तेज आवाज़ से टूटती है।
नंबर देख माथे पर पसीना लुढक गया।रिक्की का फोन।अपनी हिम्मत को इकट्ठा कर शेखर फोन उठा लेता है।
“हैलो…” लड़खड़ायी सी आवाज़ शेखर के मुँह से निकल रिक्की के कानो में उतर गई।
“मैं…रात…शेखर…।” इतना बोलकर रिक्की रोने लगती है।
उसके रोने की आवाज़ शेखर के दिल में धसती चली गयी।
“आप…रो…प्लीज यार…मैं आता हूँ आपके पास… संभालो खुद को।” इतना कहकर शेखर फोन काट देता है।टैक्सी लेकर तुरंत रिक्की के होटल की ओर बढ़ चलता है।
ट्रैफिक जाम और भीड़ में टैक्सी में फंसा शेखर जैसे दिल में हजार कुंटल बोझ तले दबा बस साँस ले पा रहा था।उसकी आँखों के सामने कभी रिक्की तो कभी तृप्ति का चेहरा घूमने लगा।अपने को कोसता शेखर टैक्सी वाले को बार बार चलने के लिए कहता है लेकिन जाम था कि उसके जिंदगी में आए जाम जैसा जम कर डटा था।आधे घंटे की जद्दोजहद के बाद जाम खुला।सड़क पर दौड़ती टैक्सी और शेखर के दिमाग में चलते विचार रफ्तार में एक दूसरे से रेस लगा रहे थे।
कुछ देर बाद वह रिक्की के रूम के बाहर खड़ा था।दरवाजे पर टकटकी लगाए वह बस खड़ा रहा।
रिक्की को शायद उसके आने की आहट हो गई थी।दरवाजा खोल वह चुपचाप रूम के अंदर वापस चली गयी और खिड़की से बाहर देखने लगी।शेखर अपने को धकेल कर अंदर आता है
“तुमने तृप्ति को कुछ तो नहीं बताया न!” रिक्की ने पूछा।
“न..नहीं।” बस इतना बोल पाया वह।
“मत बताना कभी।तुम्हें बहुत प्यार करती है।दिल टूट जायेगा उसका।मैं भी नहीं बताऊंगी।” रिक्की ने गहरी सांस लेते हुए कहा।
उसकी बात सुनकर शेखर आश्चर्य से भर उठता है।रिक्की को लेकर अपने मन में न जाने कितने ऊटपटांग विचार पाले बैठा था लेकिन रिक्की कितनी अच्छी है यह सोचकर वह खुद पर ही शर्मिंदा हो गया।
“मुझे माफ कर दो रिक्की।मैंने तुम्हें बहुत गलत समझा….मैं…मैं…कल के लिए शर्मिंदा हूँ।” शेखर नजरें नीची करके बोला।
“माफी नहीं मांगो।बल्कि मैं तुम्हें शुक्रिया कहती हूँ कल रात तुमने मेरी जिंदगी में एक नयी रौशनी को भर दिया।” रिक्की खिड़की से बाहर देखते हुए बोली।
“मैं समझा नहीं!” शेखर हैरान था।
“लम्बी कहानी है शेखर।दर्द में डूबी कहानी।जिसका एक किरदार मैं और दूसरा मेरा पति।”
रिक्की ने शेखर के चेहरे पर नजरें जमा दी।
“मेरी जिंदगी बहुत बड़ा झूठ है शेखर।मेरे चेहरे पर चमकती हँसी सिर्फ दिखावा है।मेरी तो जिंदगी ही रोने के लिए बनी है।” इतना कहकर रिक्की अपने चेहरे को हथेलियों से ढककर सिसकने लगती है।
शेखर को समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे।रिक्की की कहानी में उसे कोई इंट्रेस्ट नहीं था लेकिन उसे रोता छोड़कर जाने की सोच भी नहीं सकता था।
“प्लीज तुम मतलब आप रोए नहीं।कहीं ऐसा न हो कि आवाज़ सुनकर होटल स्टाफ कुछ गलत समझ ले।”शेखर ने उसे समझाते हुए कहा।
रिक्की अपने आँसू पोछते हुए सिसकियों को रोकने की कोशिश करने लगती है लेकिन वह खुद पर कंट्रोल नहीं कर पाती और शेखर के गले लग कर फूट फूट कर रोने लगती है।
उसके आँसू शेखर के कंधे को भीगोने लगते हैं।शेखर असहज स्थिति में था।न वह रिक्की को धकेल सकता था और न ही उसे गले लगा सकता था।रिक्की के रोने की रफ्तार बढ़ती जा रही थी।शेखर उसे अपने बाँहों में समेटकर तसल्ली देने लगता है।
“प्लीज़ रिक्की खुद को संभालो।तुम बैठ कर मुझे बताओ कि आखिर ऐसा कौन सा दुख है जो तुम्हें इतना दर्द दे रहा है।मैं हूँ न तुम्हारे करीब, तुम्हारी हर परेशानी को हर कहानी को सुनूंगा।” शेखर ने रिक्की की पीठ को सहलाते हुए कहा।
“सच कह रहे हो शेखर?” रिक्की अपनी बड़ी बड़ी आँखें शेखर की आँखों में डालकर बोली।
आँसुओं में भींगी लाल आँखें शेखर के दिल में दर्द सा दे गई।
“कितनी मासूम है रिक्की।”शेखर मन ही मन बोला।
“हाँ सच में।तुम पहले पानी पी लो।” शेखर ने उसे सहारा देकर बेड पर बिठा दिया और फिर पानी का गिलास उसकी ओर बढ़ाया।
तभी शेखर का मोबाइल बज उठा।
“हैलो …तृप्ति… मैं ऑफिस में हूँ…हाँ…टाइम से आऊंगा।” इतना कहकर शेखर ने फोन काट दिया।
रिक्की की आँखों में सवाल उठ गया।जिसे देख शेखर हल्के से मुस्कुरा दिया।
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तू इस तरह मेरी जिन्दगी में शामिल है (भाग -8)- दिव्या शर्मा : Moral stories in hindi
दिव्या शर्मा