तू इस तरह मेरी जिन्दगी में शामिल है (भाग -5)- दिव्या शर्मा : Moral stories in hindi

(अब तक आपने पढ़ा कि तृप्ति, रिक्की को मिलने उसके होटल जाती है।रिक्की की शानोशौकत देख तृप्ति की आँखों में चकाचौंध उतर जाती है।अब पढिए आगे)

अब बताओ जानेमन।”

“यार गजब लग रही हो।ड्रेस बेहद खूबसूरत है तुम्हारी!”, रिक्की लाल शार्ट ड्रेस में उसके सामने थी।उसकी बात सुनकर रिक्की हौले से मुस्कुराई और अपना बैग उठा तृप्ति का हाथ पकड़कर रूम से बाहर आ गई।

“हम कहाँ जा रहे हैं?” तृप्ति हैरानी से बोली।

“सरप्राइज है जानेमन।जहाँ हम जा रहे हैं वहाँ हम जायेंगे लेकिन पहले ब्रेकफास्ट।” लिफ्ट से निकल रिक्की रेस्त्रां की ओर बढ़ गई।तृप्ति को अपने साधारण कपड़ों को देख झिझक होने लगी।अपने बैग को सीने से चिपकाए रिक्की के पीछे चलने लगी।चमकते हुए चेहरों पर चढी अमीरी उसे गरीब महसूस करवा रही थी।संकोच के कारण तृप्ति ठीक से कुछ खा नहीं रही थी।रिक्की की निगाहें तृप्ति के हावभाव नोट करने लगी।।वहाँ से निकलने के बाद सड़क नापते दोनों शहर के सबसे महंगे मॉल के सामने खड़े थे।

“चलो कुछ शॉपिंग करनी है।कुछ गिफ्ट्स, फिर किसी से मिलना है।” कार को पार्क कर रिक्की ने कहा।तृप्ति की आँखें दिखावे की चमक में फंसने लगी।रिक्की की बॉस्केट ब्रांडेड आइटम्स से भरने लगी।तृप्ति को अपने मामूली बैग और फुटवियर पर शर्म आ रही थी।वह सकुचाते हुए रिक्की के पीछे बस उसे देखती रही।रिक्की कोई भी चीज फाइनल करने से पहले तृप्ति के हाथों में रख देती।उस पर लगा प्राइस टैग तृप्ति की हार्ट बीट्स बढ़ा देता ।

“वाउ!इमेजिंग यही चाहिए था बस मुझे।” रिक्की एक ड्रेस हाथों में लेकर खुशी से उछल पड़ी।तृप्ति की आँखें ड्रेस को देखकर फैल गई।वाइन कलर से वनपीस ड्रेस तृप्ति के मन को बेचैन करने लगी।तभी रिक्की ने उसका हाथ पकड़ा कहा,

“चलो यार इसे ट्राय करती हूं।बताना कैसी लग रही हूँ।” इतना कहकर वह ट्राइल के चली गयी।तृप्ति उसका इंतजार बाहर करने लगी।उसकी निगाहें मॉल में घूमते लोगों पर थी।तभी रिक्की उदास होकर बाहर निकली और ड्रेस को तृप्ति के हाथों पर फेंक दिया।

“क्या डियर!ड्रेस अच्छी नहीं लगी?” तृप्ति ने पूछा।

“नॉट फॉर माई टेस्ट,लेकिन तुम पर अच्छी लगेगी।एक बार ट्राय करो न!”

“नहीं रिक्की मुझे ट्राय नहीं करनी।” तृप्ति बोली।

“चिल यार,बस एक बार।मैं देखना चाहती हूँ यह तुम पर कैसी लगती है।”

“नहीं रिक्की, मेरी हैसियत इस ड्रेस को पहनने की नहीं है।इतनी अमीर नहीं हूँ मैं।” तृप्ति ने मनमसोस कर कहा।

“तुम तो बहुत अमीर हो मेरी जान।बस तुम्हें तुम्हारी दौलत का अंदाजा नहीं।” रिक्की मुस्कुरा कर बोली।

“क्यों मजाक कर रही हो।मेरे पास कौन सा खजाना दिख गया तुम्हें!”इतना कहकर तृप्ति हँसी और ड्रेस को ट्राय करने के लिए ट्रायल रूम में चली गईं।

कुछ देर बाद तृप्ति रिक्की के सामने थी।वनपीस में तृप्ति के शरीर के उभार उसके आकर्षण को और बड़ा रहे थे।गोरे रंग पर खिलता वाइन कलर ।तृप्ति किसी मंहगी शराब की तरह लग रही थी जिसका नशा हौले हौले दिमाग में चढ़ कर बेकाबू कर देता है।रिक्की तृप्ति को देखकर अंदर से सुलग गई लेकिन चेहरे पर लम्बी मुस्कान लाकर चहक कर बोली,

“वाउ! क्या लग रही हो यार!!मार डाला।”

“सच में अच्छी लग रही हूं!”

“सच में यार।ऐसा करो इसके साथ मैचिंग फुटवेयर और हैंडबैग और लेते हैं।” रिक्की एक्साइट होकर बोलती है, और तृप्ति का हाथ पकड़कर मॉल के दूसरे सेक्शन की ओर चल पड़ती है।

लगभग आधे घंटे बाद दोनों एक पार्टी में थे।मंहगी खूशबू से तृप्ति की आँखें चुंधिया गई।रंग बिरंगे ब्रांडेड कपड़ो में लिपटी पच्चीस से पैंतालीस साल की महिलाओं का झुंड ड्रिंक लिए अपनी दुनिया में मस्त था।

रिक्की पर नजर पड़ते ही एक महिला जोश से उसके गले लग गई।

“आ गई मेरी जान।कबसे इंतजार कर रही हूं।”

“इंतजार तो मैं भी कर रही थी।अब आ गई हूँ तो साथ समय बिता ही लेंगे।अच्छा इससे मिलो यह है मेरी कॉलेज फ्रेंड तृप्ति।”

“तुम्हारी दोस्त खूबसूरत है।”तृप्ति के कंधे पर उंगली फिरा कर वह बोली।

“बट बट डियर, यह हमारी तरह नहीं है ओके!”

“ओके!” इतना कह वह महिला रिक्की से लिपट गई।

तृप्ति को कुछ अजीब लग रहा था।उस औरत का रिक्की के साथ कुछ अलग सा रिश्ता।वह सोच में पड़ गई लेकिन पार्टी की रौनक को देख वहम अपने दिमाग से निकाल वहीं के रंग में रम गई।

रिक्की उस औरत के साथ डाँस कर रही थी और कुछ ज्यादा ही चिपक रही थी।जैसे एक कपल। कुछ समय बीता था कि हॉल में दो युवक आकर डाँस करने लगे।तृप्ति के लिए यह माहौल बिल्कुल अलग था।अधेड़ और जवान खूबसूरत औरतों के बीच अपने जिस्म को उन.औरतों के जिस्म से रगड़ते वह युवक अजीब सी आवाजें निकालने लगे।

रंगीन माहौल और अलग से नशे की गिरफ्त में तृप्ति भी आने लगी।खुला माहौल और बेहिसाब आजादी उसकी आँखों में चमकने लगी।

रिक्की उसे उसके घर ड्रॉप कर वापस चली गयी लेकिन तृप्ति को एक अलग दुनिया का हिस्सा बनने के लिए उकसा गई।

रात के दो बजे थे।शेखर उसके इंतजार में सोफे पर ही सो गया।कितने ही कॉल किए तृप्ति को लेकिन थोड़ी देर करते करते दो बज चुके थे।वह चुपचाप अपने बेडरूम में चली गयी।

“कॉफी पी लो तृप्ति…उठो।” शेखर ने उसे उठाकर कहा।

“कितने बज गए?” आँखों को मलते वह बोली।

“सुबह के दस बज रहे हैं मोहतरमा।”

“ओह…देर से सोने का यही नुकसान है।सब छूट जाता है।” अपने बिस्तर से उठते हुए वह बोली और बाथरूम की ओर बढ़ गई।

“मुझे तो नहीं छोड़ दोगी!” शेखर की आवाज़ से उसके कदम ठिठक गए।

“पागल हो क्या!कैसी बात कर रहे हो।” इतना कह बॉथरूम का दरवाजा जोर से पटक दिया।

“कॉफी गर्म कर देता हूँ।बॉलकनी में ही आ जाना।” शेखर ने आवाज़ लगाई।

“ओके” तृप्ति का जवाब सुनकर वह बाहर चला गया।गर्म कॉफी और बिस्किट के साथ बॉलकनी में खड़ा शेखर का ध्यान सड़क पर आती जाती गाड़ियों पर था।

“कभी तो अपने पास भी लग्जरी कार होगी।” पीछे से आकर तृप्ति बोली।

“,हु…हाँ..लेकिन यार,गाड़ी न भी हो।हम दोनों तो हमेशा साथ होंगे न!” शेखर के चेहरे पर उदासी थी।

“ऑफकोर्स रहेंगे यार।कैसी बहकी बातें कर रहे हो आज!सब कुछ होगा हमारे पास बस तुम साथ देना।” शेखर की आँखों में आँखें डालकर तृप्ति बोली।शेखर उसे निहारता रहा और गोदी में उठाकर बेडरूम की ओर चल दिया।

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