तिरस्कार सह साथ मे रहने से अच्छा अकेले रहना है –   संगीता अग्रवाल 

” विवेक मैं तुम्हारे पापा को और नही झेल सकती …उनकी खांसी की बीमारी के कारण हर वक्त डर लगा रहता है कि जाने कब उनकी बीमारी मुझे या बच्चों को ना लग जाए !” पल्लवी अपने पति से बोली।

” लेकिन पल्लवी वो इस उम्र में जायेंगे कहां अब गांव का घर और जमीन भी पहले ही तुम्हारे कहने से बिकवा चुका हूं मैं !” विवेक ने कहा।

” अरे तो घर जमीन की उन्हें क्या जरूरत इस उम्र में इस उम्र में  तो उन्हें तीर्थ स्थलों पर जाना चाहिए …ऐसा करो तुम उन्हें हरिद्वार ले जाओ और चुपचाप वहीं छोड़ आना । तीर्थ स्थल पर रह अपना परलोक सुधार लेंगे वो !” पल्लवी बोली।

” पर पल्लवी ये सही नही उनका बेटा हूँ मैं ऐसे कैसे छोड़ कर आ सकता हूँ उन्हे ?” विवेक बोला।

” सही गलत के चक्कर में मत पड़ो तुम अपना देखो उनकी तो उम्र हो गई पर हमे तो अपना जीवन जीना है अभी तुम फैसला कर लो बुढ़ा बाप चाहिए या बीवी बच्चे !” पल्लवी ने कहा और मुंह फेर कर सो गई। विवेक बहुत देर तक सोचता रहा। 

” पिताजी चलो आपको हरिद्वार घुमा लाता हूं इस इतवार को !” अगले दिन विवेक पल्लवी की तरफ लाचारी से देखता हुआ अपने पिता से बोला। पल्लवी उसकी बात सुन विजयी भाव से मुस्कुरा दी।

” सच तू मुझे हरिद्वार लेकर जायेगा … जुग जुग जियो बेटा आज के कलयुग में तुम तो मेरे श्रवण कुमार हो !” विवेक के पिता कमलनाथ जी उसे आशीर्वाद देते हुए बोले।




इतवार की सुबह विवेक कमलनाथ जी को लेकर निकल गया हरिद्वार । अमावस का दिन होने के कारण हरिद्वार में बहुत भीड़ थी वैसे भी लोग भले अपने घर के बुजुर्गों को सम्मान दे ना दे पर सोचते है गंगा में स्नान कर हमारे सभी पाप धुल जाएंगे वो ये नहीं सोचते अंत में इसी गंगा में राख का ढेर बनकर आना है तो भले जीतेजी गंगा मत नहाओ पर अपने घर के बुजुर्गों का तिरस्कार मत करो। खैर भीड़ में विवेक का हाथ कमलनाथ जी पकड़ कर चल रहे थे। उसने कितनी बार उनसे हाथ छुड़ा वहां से निकलने की सोची पर कमलनाथ जी विवेक का हाथ मजबूती से पकड़े थे ठीक ऐसे ही जैसे बचपन में सड़क पार करवाते हुए या मेले की भीड़ में पकड़ते थे।

” पिताजी मेरा हाथ थोड़ा हल्के से पकड़ो मैं कौन सा भागा जा रहा हूं !” विवेक अचानक बोला।

” पर बेटा देख यहां कितनी भीड़ है तू खो गया तो !” कमलनाथ जी मासूमियत से बोले।

” बुढ़ापे में भी पिताजी को मेरी फिक्र है और मैं…क्या करने चला था मैं ये भी नही सोचा यहां भीड़ में उनके साथ कोई हादसा हो जाता तो ?” विवेक की अंतरात्मा उसे कचोटने लगी और वो हाथ छुड़ा कर भाग नही सका । गंगा स्नान हो गया और वो लोग धर्मशाला में आ गए आराम करने।

” बेटा अब तू जा सकता है !” अपने बिस्तर पर लेटे शून्य में निहारते हुए कमलनाथ जी विवेक से बोले।

” कहां पिताजी ?” विवेक उनका आशय ना समझते हुए बोला।

” तू मुझे यहां छोड़ने आया था ना वहां भीड़ में मुझे डर था जल्दबाजी में तू अपना अहित न कर ले बचपन से भीड़ में डर जो लगता था तुझे। पर अब यहां कोई भीड़ नही मुझे भरोसा है तू आराम से घर पहुंच जाएगा।” कमलनाथ जी बिना उसकी ओर देखे बोले।




विवेक के मुंह से कोई शब्द नहीं निकले वो बस अपने पिता को देखने लगा।

” ऐसे क्या देख रहा है मैंने तेरी और बहू की सारी बातें सुन ली थी कि तू मुझे यहां छोड़ कर चला जायेगा तो अब जा ना !” कमलनाथ जी ने इतनी देर में पहली बार उसकी तरफ देख कर बोला।

” आपने सब बात सुन ली थी फिर भी ना केवल मेरे साथ हंसी खुशी चले आए बल्कि मुझे ढेरो आशीर्वाद भी दे रहे थे !” हैरानी की प्रकाष्ठा में विवेक के मुंह से निकला।

” आशीर्वाद तो तुझे इस लिए दे रहा था क्योकि मैं खुद तंग आ चुका था तिरस्कार सहते सहते। रही यहाँ आने की बात  हर बेटा मरने के बाद अपने बाप को गंगाजी में छोड़ कर जाता है तू जीतेजी छोड़ने आया था तो मैं क्यो ना आता … वैसे भी मर तो मैं उस दिन ही गया था जब तूने बहू की बात मान हां की थी। आज मैं यहां हूं कल तुझे और बहू को भी यही आना है मैं जीतेजी आया बस तुम्हे जीतेजी न आना पड़े ये दुआ करूंगा भगवान से …चल जा अब !” कमलनाथ जी बोले और मुंह फेर लिया।

” पिताजी मुझे माफ कर दो मैं सच में एक बुरा बेटा हूं !” विवेक पिता के पैरों में गिर कर बोला।

” माफ तो मैं तुझे उसी दिन कर चुका था अब तू जा और अपने परिवार के साथ खुशी खुशी रह !” कमलनाथ जी बोले।

” नही पिताजी आप मेरे साथ चलोगे मैं अब पल्लवी की भी कोई बात नही सुनूंगा बस मुझे मेरे पिताजी चाहिए !” विवेक रोता हुआ बोला।

” ना रे सारी जिंदगी सम्मान से जिया हूं बुढ़ापा मत खराब कर मेरा यहां कम से कम किसी का तिरस्कार तो नही सहूंगा उधर तुम भी खुश बहू भी …जा तू !” कमलनाथ जी बोले।

विवेक ने उन्हें बहुत मनाने की कोशिश की पर वो टस से मस नहीं हुए अपने स्वभिमान की रक्षा के लिए उन्होंने बाकी का जीवन हरिद्वार में बिताने का निश्चय किया । जरूरत भर का पैसा उनके अकाउंट में था ही। विवेक को कसम दे उन्होंने वापस भेज दिया और खुद वहीं रहने लगे। जहां दिखावे को कोई अपना नहीं था पर आत्मसम्मान था अपने साथ।

दोस्तों मेरी नजर में कमलनाथ जी ने बिल्कुल सही फैसला किया बच्चों का तिरस्कार सह साथ में रहने से अच्छा है अकेले जिंदगी बिता ली जाए। वैसे भी वो विवेक के साथ वापिस चले भी जाते तो सारी जिंदगी बहू के हाथो तिरस्कृत होते या खुद को बेटे का घर तोड़ने का दोषी समझते रहते। आपकी इस बारे में क्या राय है मुझे बताइएगा जरूर ।

आपकी दोस्त

  संगीता अग्रवाल 

 

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!