तीसरा मोड़ – बालेश्वर गुप्ता  : Moral Stories in Hindi

     बंद कमरे में दिनेश जी दहाड़ मार कर रो पड़े।भगवान से शिकायत करते करते बुदबुदा रहे थे,आखिर हमने क्या पाप किये हैं, जिनकी सजा मेरे बेटो को मिल रही है।रोते रोते पता नही कब दिनेश जी की आंख लग गयी।

        अच्छे भले कारोबार के स्वामी दिनेश जी के पास सब कुछ था, धन,घर,कार, सम्मान,लोकप्रियता।पर कारोबार में साझीदार की बेईमानी ने सबकुछ तबाह कर दिया।काफी प्रयत्न के बावजूद दिनेश जी अपने व्यापार को संभाल नही पाये।कर्ज इतना बढ़ गया था,कि घर से निकलना भी दुश्वार हो गया था।

आज जब बड़े बेटे अनुज ने अपने पिता दिनेश जी को अपनी तरफ से खुशखबरी दी कि पापा मेरी नौकरी लग गयी है,अब आपको मेरी और छोटे की चिंता करने की जरूरत नही है,आप अपने व्यापार पर पूरा ध्यान दो पापा।दिनेश जी अनुज को मौन आशीर्वाद दे अपने कमरे में आ कर जोर जोर से रोने लगे थे।

उनका बेटा अनुज कितना बड़ा हो गया था,उनसे भी बड़ा,अपने पापा के बोझ को हल्का करने का प्रयत्न कर रहा था।किसी कार शो रूम में सेल्स मैन की मात्र तीन हजार रुपल्ली की नौकरी भी स्वीकार कर वह अपने पापा का हाथ बटाने की हिम्मत कर रहा था।दिनेश जी को मलाल इसी बात का था कि जीवन के इस मोड़ पर उन्हें अपनी संतान को प्रश्रय देना था,उन्हें अच्छी शिक्षा दिलानी थी,पर वे तो कुछ भी ना कर पाये।

        दिल पर पथ्थर रख दिनेश जी बेटे अनुज द्वारा इस नौकरी को करना स्वीकार कर अपने व्यापार को पुनः जमाने में जुट गये।पहली गुडविल और ईमानदार छवि के कारण दिनेश जी का व्यापार कुछ बेहतर होने लगा।उधर अनुज का कार शो रूम में अपनी मेहनत के बल पर अपनी छाप मालिक पर छोड़ता जा रहा था। तब भारत में मोबाइल फोन अपने को स्थापित करने की होड़ में थे।उस समय की एक मोबाइल फोन कंपनी एस्कॉटल ने अपने अधिकारियों के लिये कार दिये जाने की योजना बनायी, इस योजना के अंतर्गत अनुज ने उस कंपनी को टैकिल कर समस्त कार खुद बेच दी।इस डीलिंग से प्रभावित हो शो रूम मालिक ने तो अनुज का वेतन बढ़ाने की घोषणा की ही वही एस्कॉटल मोबाइल कंपनी के एक अधिकारी ने अनुज को अपनी कंपनी में कार्य करने का आफर दे दिया।अनुज ने अपने पापा से विचार विमर्श कर एस्कॉटल कंपनी का ऑफर स्वीकार कर लिया।अब अनुज का वेतन पंद्रह हजार हो गया था।सबसे बड़ी बात थी वेतन मिलते ही अनुज अपनी माँ के हाथ मे वेतन रख देता।आर्थिक संकट हल होते जा रहे थे।दिनेश जी के जीवन मे यह दूसरा मोड़ आ गया था।

       अनुज की सहायता से दिनेश जी का दूसरा बेटा सनी भी नौकरी करने लगा था।आशा के विपरीत छोटा बेटा भी धीर गंभीर और मेहनती निकला।वह भी प्रगति पथ पर अग्रसर हो रहा था।समय अपनी गति से दौड़ रहा था।दिनेश जी की आयु 75 वर्ष की हो गयी थी,दोनो बेटे अपनी अपनी कंपनी में उच्चाधिकारी हो चुके थे।एक दिन अनुज अपने पापा से बोला पापा जरा तैयार हो जाओ आपको और मम्मी को कहीं लेकर जाना है।बहुत पूछने पर भी उसने ये नही बताया कि कहां लेकर जाना है,बस बोला सरप्राइज है। अपने पापा और मम्मी को लेकर अनुज उन्हें एक कार शो रूम में लेकर गया।दिनेशजी सोच रहे थे इस पर कार है तो फिर अभी से क्या फिर कार खरीदने जा रहा है।तभी कार शो रूम के स्टाफ ने हमारा स्वागत किया और हम सबको आवरण में ढकी एक कार के सामने ले जाकर खड़ा कर दिया और एक रिमोट अनुज ने अपने पापा के हाथ मे दे दिया।धीरे धीरे आवरण हटा तो पाया कि बेटे ने 64 लाख की ऑडी खरीद की है।दिनेश की आंखों में आंसू छलक पड़े,मारुति 800 बेचने के लिये चिरौरी करने वाला अनुज आज ऑडी का खुद मालिक था।ये दिनेश जी के जीवन का तीसरा मोड़ था।

      ईश्वर कब क्या करा दे क्या कोई कभी जान पाया है?

बालेश्वर गुप्ता, पुणे

सच्ची घटना पर आधारित, अप्रकाशित।

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