तपस्या (भाग 1) – शिव कुमारी शुक्ला : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : मम्मी समझाओ न पापा  को मुझे कोचिंग नहीं करनी है क्यों मेरे पीछे पड़े हैं। मैं कोटा नहीं जाउंगा। मुझे नहीं बनना डाक्टर , इन्जिनियर ।  मैं वहीं करूंगा जो मुझे पसंद है। मैं सिविल सर्विसेज में जाना चाहता हूं अतः उसकी ही तैयारी करूंगा।

मम्मी में किसे समझाऊं तुझे या तेरे पापा को ।अभी वे आयेंगे और कहेंगे समझाओ अपने  बेटे को,कि वह कोचिंग के लिए कोटा जाए ।तुम दोनों बाप-बेटे के बीच में, मैं पीस रही हूं। तू ही पापा की बात मान ले और  चला जा ।यह कभी नहीं हो सकता कहते वह चला गया ‌।

तभी अमन के पापा आए बोले सुनती हो   समझा दो अपने बेटे को कोचिंग के लिए  चला जाए। तुम्हारे लाडप्यार ने ही उसे – जिद्दी बना दिया है। सुनने को ही तैयार नहीं है। 

मेधा जी (मम्मी) बोलीं मैं किसे समझाऊँ, अभी  वह भी यही कह गया पापा को समझाओ।  यदि वह नहीं चाह रहा तो आप जिद छोड, करने दो उसे जो उसका मन कर रहा  है ।

अरे ऐसे कैसे छोड़ दूं। बाप हूँ उसका उसे वही करना होगा जो में चाहूंगा। तुम तो घर बैठी हो, बाहर मेरी कुछ इज्जत है, मेरे  ज्यादातर कलीगस के बच्चे कोचिंग कर रहे है वे मुझ से पूछते हैं कि शर्मा जी आपका बेटा कोटा कब जा रहा है, कोचिंग के लिए। अरे बेटे की बात तो छोडो, नवीन एवं सुधांशु की तो बेटियाँ कोचिंग कर रहीं है,और यह नालायक कहता है कोचिंग नहीं करेगा। में भी  देखता हूं कैसे नहीं जाता। मेधा जी परेशान हो गई। बाप बेटे दोनों ही जिद्दी अपनी अपनी जिद पर अडे हैं अब वे  क्या करें कुछ समझ नहीं आ रहा था। 

एक दो दिन बाद थोडा माहौल ‌शान्त होने पर उन्होंने बेटे को समझाना चाहा। बेटा क्यों जिद कर रहा है अपने पापा की बात मान ले और चला जा कोचिंग करने।

मम्मी आप भी मेरी बात या तो समझ नहीं रहीं या समझना नहीं चाहतीं पापा के दबाव के कारण। वे हमेशा आप पर हावी रहते हैं और वही करते हैं जो वे चाहते हैं। किन्तु में अपने साथ ऐसा नहीं होने दूंगा। मेरा मन कोचिंग के लिए तैयार नहीं है जिसमें मुझे रुचि है वही मन लगाकर करूंगा तो मुझे सफलता मिलेगी। कोचिंग में अच्छा न कर पाने के कारण मैं नर्वस हो जाँऊं, अवसाद में चला जांऊँ और उस अवस्था  में गलत कदम उठा लूं तो आप अपने बेटे से हाथ धो बैठेंगी। इसलिए मेरे साथ इतनी जबरजस्ती न करें। 

जब मेधा जी ने यह बात तरुण जी को समझाने  का प्रयास किया तो वे उखड गये। और उन्हें बहुत कुछ उल्टा सीधा  कहा। देखता हूँ उसे कैसे नहीं जाता मेरी इच्छा और इज्ज़त  का सवाल है।

मेधा जी बोली जब हमारा बच्चा ही नहीं रहेगा तो क्या आपकी इच्छा और इज्जत रह जायेगी।

 तुम चुप रहो  वह तुम्हें इमोशनली ब्लेक मेल कर  रहा है।

नहीं,  वह पढ़ना तो चाह रहा है पर वही जिसमें उसका मन लगता है। तो हम अपनी इच्च्छा उस पर क्यो थोपें।

वह वही पढ़ेगा जो में पढ़ाना चाहता हूं कह कर गुस्से में पैर पटकते चले गए। बड़ा ही तनावपूर्ण माहौल था घर का। मेधा जी समझ नहीं पा रहीं थीं किसको कैसे मनाएं  की सबकुछ ठीक हो  जाए ।

 दो-तीन दिन बाद तरुण जी ने बेटे से बात करने का मन बनाया। उसे प्यार से समझाया कि बेटे सबके बच्चे डाक्टरी ,इंजीनीयरिंग की तैयारी कर रहे हैं। तुम्हें क्यों आपत्ति है। पैसा में खर्च करने को तैयार हूं। में अपनी जिन्दगी में जो नहीं बन पाया चाहता हूँ तुम मेरी यह अधूरी इच्छा पूरी करो।

पापा मैं भी पढ़ना चाहता हूँ कुछ अच्छा करना चाहता हूं किन्तु जिस विषय को पढ़ने में मेरा मन ही नहीं लगता उसे कैसे पढुं। भेडचाल की तरह, पड़ोसी के, रिश्तेदार के कलीग के बच्चे  जो कर रहे हैं वही मैं भी करूं यह जरूरी  तो नहीं। जिसमें मेरा मन लगता है, उस क्षेत्र में ,मैं अच्छा कर सकता हूँ तो वह क्यों न करूं। लीक से हटकर कोई काम करने में बुराई है क्या।

पर बेटा मेरी इच्छा—- पापा को बीच में ही रोकते बोला आपकी इच्छा से तो मैं नहीं पढ़ पाऊंगा पढ़ना तो मुझे है।  

यह सुन तरुण जी अगवबूला हो गए बोले करना तो तुम्हें वही पडेगा जो मैं चाहूंगा।

और वह मैं नहीं कर पाऊंगा पापा आप मुझे समझने की कोशिश करें। 

अगला भाग

तपस्या (भाग 2) – शिव कुमारी शुक्ला : Moral Stories in Hindi

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!