तपस्या (भाग 2) – शिव कुमारी शुक्ला : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : यदि तूने  मेरी बात नहीं मानी तो में तुमसे अपना रिश्ता खत्म कर दूँगा? तुझे घर से निकाल दूंगा। मेरी प्रापर्टी और पैसों में से तुम्हें एक पाई भी नहीं दूंगा। जा हो जा मेरी आँखों से दूर और जो तुझे करना हे कर।

ठीक है पापा चला जाऊंगा। और मुझे आपका एक पैसा भी नहीं चाहिए कुछ बनकर ही आप को दिखाऊँगा। यदि आप जिद्दी है तो मैं भी आपका ही बेटा हूँ उतना ही जिद्दी में भी हूँ। में मम्मी नहीं हूँ-जिन्हें विवश कर आप अपना मनचाहा करवा लेते हैं,मैं आपका बेटा हूं बेटा। कह कर वह वहाँ से चला गया।

मेधा जी सब सुन  रहीं थीं सोचने लगी कि इस परिस्थिती को कैसे सम्हाला जाए। उन्होंने फोन कर अपने छोटे भाई को सब कुछ बताया।

वह बोला दीदी अमन को यहां भेज दें, में यहां उसका, जिसमे वह चाहेगा एडमिशन करवा दूंगा  । यहां रह कर  पढ लेगा। 

मेधा जी  बोली नहीं चीनू तू अपने जीजाजी का स्वभाव तो जानता है  वे वहीं आकर बखेड़ा कर देगें मैं नहीं चाहती कि तुम लोगों से सम्बन्ध खराब  हों ,अतः तुम कहीं दूर दूसरे शहर में उसका एडमिशन करवा कर उसका होस्टल में रहने का प्रबंध करा दो। में तुम्हें पैसे भेजती रहूँगी और तुम उसे भेज दिया करना।

 चीनू बोला दीदी आप पैसों की चिन्ता न करें। मुझे तीन-चार दिन का समय दे में सब व्यवस्था करता हूँ। हाँ आप एक बार मेरी बात अमन से जरूर करवा दें ताकि मैं उसकी इच्छा जान सकूँ कि वह क्या चाहता है ।

मेधा जी भले ही एक होम मेकर थीं किन्तु वे पढी लिखी सुलझे विचारों वाली महिला थीं। घर की शान्ति बनाए रखने के खातिर ही वे कभी अपने पति से अनावश्यक बहस नहीं करतीं थीं। अभी भी बाप-बेटे के बीच हो रही तकरार का उन्होंने सुगम तरीका निकाला  कि अमन को घर से  दूर भेज दिया जाए और इस कार्य में अपने भाई की मदद ली। भाई ने उनकी इच्छानुसार उसका एडमिशन दिल्ली में एक कालेज में करवाया ताकि पढाई के साथ-साथ आगे की प्रतियोगी परीक्षा की  तैयारी भी किसी कोचिंग से कर सके।

हफ्ते भर बाद फिर तरुण जी ने अमन से कोटा जाने की बात करी। वह उखड गया पापा मैंने कह दिया कि मैं वहां  की पढ़ाई नहीं कर पाऊंगा, मेरा मन इन विषयों में नहीं लगता है मेरी समझ मैं कुछ नहीं आता है तो अच्छे नम्बर कैसे  आएंगे। में अपना साल खराब नहीं करना चाहता आप मेरी परेशानी समझ क्यों नहीं रहे हैं। परेशानी तो मेरी तू नहीं समझ रहा है बेटा। मेरी भी इच्छा है कि तू डाक्टर इंजीनीयर बने औरों के बच्चों की तरह कोचिंग जाकर अच्छे से तैयारी करे. मुझे बहुत शर्म महसूस होती जब कोई मुझसे पूछता है कि शर्मा जी आपका बेटा कोचिंग नहीं ले रहा है। 

पापा आपको दूसरों के पूछने की चिंता है पर अपने बेटे की परेशानी नहीं समझ रहे कि मैं वह पढाई नहीं कर सकता। मेरा मन ही नहीं लगता तो मेरे अच्छे नम्बर कैसे आयेंगे।

तरुण जी को बहुत ग़ुस्सा आया और बोले जाना तो तुझे  पड़ेगा नहीं तो मेरे घर से निकल जा, जो तेरे मन में  आए  कर।जब दर-दर  की ठोकरें खाएगा तब घर  की अहमियत तेरे समझ में आयेगी। मैं अपनी सम्पत्ति से तुझे बेदखल करता हूं आज से तेरा मेरे से, इस घर से कोई नाता नहीं है 

मुझे भी आपके साथ रहने का कोई शौक नहीं है। रखिये अपनी धन-दौलत अपने पास में जा रहा हूं, यदि  जिन्दगी में कुछ बन गया तो लौट कर आऊँगा नहीं तो कभी अपना मुंह नहीं दिखाऊँगा. यह कह अमन अपने कमरे में गया ,वह कपडे और आवश्यक सामान बैग में डालने लगा।

तभी मेधा जी कमरे में आई और उसे समझाने लगीं,  बेटा गुस्सा मत कर पापा नहीं मान रहे तो तू तो सब्र रख दो चार दिन में मामा का जबाव आ जाएगा और तुम चले जाना अपनी इच्छानुसार  पढ़ने के लिए। बेटा अपनी माँ को इतना तो समय दे  कि मैं तुम्हारी सही से व्यवस्था कर सकूं।

वह मां की गोद में सिर रख रो पड़ा । मां मैं पापा से यह सब नहीं कहना चाहता था  , किन्तु वे मेरी परेशानी समझ ही नहीं रहे।

उसके बालों में प्यार से हाथ फेरती मेधा जी बोली मैं तो अपने बच्चे को समझ रही हूं तू चिंता मत कर सब ठीक हो जाएगा ।

तीसरे दिन मामा का फोन आ गया, उन्होंने सारी व्यवस्था कर दी और उसे बुलाया था।

मेधा जी ने अपने पास रखे पैसे उसे दिए और रात को चुपचाप भेज दिया। सुबह ऐसे दिखाया कि जैसे उन्हें कुछ मालूम ही न हो कि अमन कब और कहां चला गया। 

उसके जाने के बाद घर में सन्नाटा पसर गया ।मेधाजी एवं तरुण जी दोनों ही आपस में कोई बात नहीं करते । गुमसुम से विचारों में खोए रहते। कभी तरुणजी को अपने किए पर पछतावा  होता पर चुप रहते सोचते उन्हीं की जिद के  कारण अमन को घर छोडना पड़ा। कहां होगा, किस हाल में होगा बिना पैसों के  क्या  करता होगा। किन्तु मेधा जी की चुप्पी से उन्हें डर लगता।   वे उन्हें दुखी देखकर उनसे कुछ न कहते ।समय पंख लगाए उड़ता जा रहा था ऐसे ही  देखते-देखते चार वर्ष बीत गए।मेधाजी अपने बच्चे को  एक नजर देखने को  तड़पती किन्तु घर नही बुला  सकती थीं ।उसे अपने भाई के घर बुलाकर मिल आतीं ।  वे उसकी पढ़ाई में खलल नहीं डालना चाहतीं थीं। वह बडे ही ध्यान से पढाई कर रहा था ।सिविल सर्विसेज की परीक्षा में प्रथम प्रयास में ही पैंतालीसवीं  रैंक हासिल कर चयनित हो गया।

सुबह का पेपर पढ़ते समय चयनित छात्रों में अमन का फोटो देख कर आश्चर्य चकित हो गये। मेधा जी को आवाज लगाई सुनो मेधा इधर आओ,देखो हमारे अमन का फोटो छपा है,उसका चयन हो गया।

 

 मेधा जी की आँखों से खुशी में आंसू निकल पड़े। आज मम्मी और बेटे की तपस्या  पूरी हुई। जो वह चाहता था उसने

कर दिखाया।

तरुण जी बोले मेधा तुम रोती रहोगी कुछ बोलोगी  नहीं हमारा  बेटा IAS बन गया है। वे आंसू  बहाते केवल उन्हें देख रहीं थीं , उनके मन में न जाने कितने द्वंद छिड़े थे कुछ कह नहीं पा रहीं थीं।बेटे को इस सफलता पर गले लगाना चाहतीं थीं किन्तु वह दूर था। पति से इतना सब छिपाया उसका भी मन में अपराध बोध  था। उनकी बड़ी विचित्र मनःस्थिति हो  रही थी, समझ नहीं पा रहीं थीं कि उन्होंने 

क्या  ग़लत  किया क्या सही ।

तभी फोन की घंटी बजती  है , दीदी मैं अमन के साथ ही हूं, और उसे लेकर अभी दो घंटे में पहुंच जाऊंगा।

तरूण जी बोले किसका फोन था, अमन का ,आरहा है न वह। अपने पिता को माफ नहीं करेगा क्या।

मेधा जी बोली चीनू का फोन था वह अमन को लेकर आ रहा है।

अमन के आते ही  घर में खुशियों की  लहर दौड़ गई। तरुण जी ने दौड़कर  उसे गले लगाया आज उनकी आंखों से भी पछतावे  के आँसू निकल रहे  थे बोले बेटा मैंने तुझे समझने में भूल की मुझे माफ कर दे।

नहीं पापा आप माफी माँगकर मुझे शर्मिन्दा  न करें। सब भूल कर खुश हों आपका बेटा सफल हो गया। अब आपसे कोई कुछ नहीं पूछेगा, नआपको शर्मिन्दा होना पडेगा। पापा मेरी इस सफलता का पूरा श्रेय मेरी मम्मी और मामा को जाता है जिन्होंने मुझे समझा और मेरी इच्छानुसार मेरे पढ़ने की व्यस्था करी, नहीं तो आज मैं न जाने कहाँ भटक रहा होता।

तरुण जी गर्व भरी मुस्कान से मेधाजी को निहार रहे थे, बोले मेधा में किन शब्दों में तुम्हारा आभार मानूं तुमने मेरे बेटे की जिन्दगी बना दी। किस्मत वाला हूँ जो ऐसी सुयोग्य पत्नी मिली। मैंने जिन्दगी भर तुम्हें दबाया, परेशान किया सिर्फ अपने अहम के कारण किन्तु वास्तविक प्रशंसा की पात्र तो तुम हो।

तभी अमन बोला पापा मम्मा खुश होओ अब सब कुछ ठीक हो गया । बीती ताहि विसार दे। मेरे मामा का भी तो धन्यबाद करो जिन्होंने पग-पग पर मेरी सहायता कर मेरा साथ दिया, कहते हुए मामा के गले लग भावुक हो गया।

शिव कुमारी शुक्ला

9-1-24

स्व रचित मौलिक एवं अप्रकाशित i

साथीयों यह जरूरी नहीं कि छोटे हमेशा ग़लत हैं और बड़े सही। वर्तमान में बच्चे काफी सजग है, वे सोचने समझने कि क्षमता रखते हैं। अतः बड़ों को उनकी कही बात पर गौर करने के बाद ही सही ग़लत का फैसला करना चाहिए। हमें अपनी अधूरी इच्छाएं, सपने उन पर नहीं थोपने चाहिए।वे कोई रोबोट नहीं हैं जो हमारी इच्छा से चलेंगे। उनके अपने भी विचार हैं, सोच है। अतः हमें उनका दोस्त बन कर,उनका नजरिया समझ कर सही मार्गदर्शन करना चाहिए।

कहानी में तो मां के पास  पैसा था,मामा सहयोग के लिए तैयार थे किन्तु सबको ऐसा सहज सहयोग नहीं मिल सकता, अतः उस स्थिति में बच्चा भटक जाता है।बड़े अपने अहम को त्याग कर सही निर्णय लें तो परिवार के लिए सुखद वातावरण बनता है, और बच्चा  भी खुश हो सही राह पकड़ता है।

आपके विचारों की प्रतीक्षा रहेगी।

2 thoughts on “तपस्या (भाग 2) – शिव कुमारी शुक्ला : Moral Stories in Hindi”

  1. बहुत से घरों में होने वाली वास्तविक समस्या का यथार्थ समाधान

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