सफ़र – कंचन श्रीवास्तव
कविता क्या कर रही हो कहते हुए सुलेखा ने कमरे में कदम रखा।और जैसे ही उन्होंने कदम रखा वो छुटकर पैर छूते हुए कुर्सी पर बैठने का इशारा किया।वो बैठी ही थी कि राम आ गया तो इसने शिकंजी का गिलास पकड़ाते हुए कहां ये लीजिए। पर उसका मुंह देखने लायक था। जिसे देख वो … Read more