बड़ा भाई पिता जैसा ही होता है – अनुपमा

शमिता आज फिर छोटी स्कर्ट पहनी है तुमने , कितनी बार बोला है कॉलेज जाते वक्त ऐसे कपड़े मत पहना करो , पीछे से सुधा ने उसे आवाज देते हुए कहा तो शलभ ने मां का हाथ पकड़ के बोला रहने दो मां , पहनने दो उसे जो पहनना चाहती है ।  शमिता तो बिना … Read more

अम्माजी का श्राद्ध – नीरजा कृष्णा

सुमन सुबह से दौड़भाग में लगी थी। आज सासूमाँ के श्राद्ध और तर्पण की तिथि थी। वो और उसके पति सुनील जी इसको बहुत विधिविधान से करने में विश्वास रखते थे और पूरी श्रद्धा से करते भी थे। फैक्टरी और घर के समस्त स्टाफ़ के अलावा कुछ नाते रिश्तेदार और कुछ खास खास मित्रमंडली के … Read more

बेटी बेटे सी.. – विनोद सिन्हा “सुदामा”

सरीता देवी लगातार बेचैनी भरी नज़रो से दरवाजे की ओर बार बार देख रही थी,अभी तक उनका बेटा आनंद आया नहीं था,कह कर गया था कि अभी दवाई लेकर आता हूँ.। काफी देर हो गयी थी पर लौटा नहीं था अभी तक जबकि हास्पिटल वाले बार बार आकर सरीता देवी से उनकी दवाईयों के बारे … Read more

गांव बड़ा प्यारा, – सुषमा यादव

एक, एक करके सबके जाने के बाद, मेरे श्वसुर अकेले हो गए,, गांव से मैं उनको लेकर म, प्र, अपने कार्य स्थल शहर में ले आई, साथ में अपने पिता जी को भी उनका साथ देने और अकेलापन दूर करने के लिए गांव से ही ले आई,,मेरा मायका, ससुराल, पास, पास ही है,, इनके और … Read more

अंत भला तो सब भला – सरला मेहता भाग (1)

विभा मध्यमवर्गीय परिवार की सर्वगुण संपन्न बेटी है। प्रारम्भ से ही प्रतिभाशाली रही विभा ने इस वर्ष बी ए की परीक्षा में सर्वोच्च स्थान प्राप्त किया है। पिता गुप्ता जी सेवानिवृत्ति के पूर्व उसके हाथ पीले करना चाहते हैं। ताकि छोटी बेटी श्रेया को भी शिक्षित कर  सके। संयोग से उन्हें अच्छी हैसियत वाले एक … Read more

दिल की कील – ज्योति व्यास

ननद रानी आज भात रखने आई है।बड़े बेटे की शादी है यानी परिवार में इस पीढ़ी की पहली शादी ।धीरे से एक लिस्ट भी दे गई कपड़ों और गहनों की  भात में रखने की! बेचारे भाई -भाभी !स्थिति अच्छी नहीं थी फिर भी  लिस्ट में दिए गए कपड़ों ,गहनों की व्यवस्था कर शादी में खुशी … Read more

मनमानी – मीनाक्षी चौहान

चार दिन नहीं हुए इस नई नवेली बहुरिया को घर में आए कि अपनी मनमानी करनी शुरू कर दी। कैसे ना कैसे मुझ से अपनी बातें मनवा ही लेती है और मैं भी उसकी प्यारी-प्यारी, मीठी-मीठी बातों में आकर हाँ में हाँ मिला ही देती हूँ। परसों पहली बार मेरी रसोई में गोल की बजाय … Read more

हक हमारा – रचना कंडवाल

हमेशा जब भी मैं लिखती हूं तो संडे के बारे में ‌ही लिखती हूं क्योंकि एक हाउस वाइफ का‌ तो संडे मंडे कुछ नहीं होता पर कुछ प्राणी ऐसे हैं जिनका संडे चिल डे होता है। ऐसे ही एक संडे मैं उठी पतिदेव को पानी गर्म करके पीने को दिया और साथ में बेड टी … Read more

रिश्तों के रूप – रचना कंडवाल

गरिमा तुम मेरी बेटी की तरह हो।” ये सुनकर गरिमा को काटो तो खून नहीं। प्रोफेसर श्रीनिवास की आवाज ने उसे सहमा कर रख दिया। गरिमा का कालेज में नया दाखिला हुआ था। गरिमा दिखने में बेहद खूबसूरत थी। चंप‌ई रंग,कत्थ‌ई आंखें, मोहक हंसी,कमर तक लहराते हुए बादामी कलर के बाल उस पर सोने पर … Read more

जीना यहां मरना यहां – रचना कंडवाल

आज शाम को जब पतिदेव के आफिस से आने पर उन्हें चाय बना कर दी तो विचार आया कि चाय पर चर्चा कर लूं। पर किस चीज पर? राजनीति पर पूरा देश कर रहा है।मी टू पर सारी दुनिया में घमासान मचा है। तो ऐसा करती हूं अपने बारे में चर्चा ठीक रहेगी। मैंने शुरू … Read more

error: Content is Copyright protected !!