अम्माजी का श्राद्ध – नीरजा कृष्णा

सुमन सुबह से दौड़भाग में लगी थी। आज सासूमाँ के श्राद्ध और तर्पण की तिथि थी। वो और उसके पति सुनील जी इसको बहुत विधिविधान से करने में विश्वास रखते थे और पूरी श्रद्धा से करते भी थे। फैक्टरी और घर के समस्त स्टाफ़ के अलावा कुछ नाते रिश्तेदार और कुछ खास खास मित्रमंडली के सदयों को भी अम्मा का प्रसाद और आशीर्वाद लेने के लिए आमंत्रित करते थे।

सुबह ही हलवाई भी आ गया था। अम्माजी की पसंद का पूरा भोजन बन रहा था…पूरा परिवार तर्पण और ब्राह्मण भोजन के पश्चात् ही प्रसाद ग्रहण करता है  पर उसे अचानक याद आया… हाय राम…ये हलवाई के चक्कर में बाऊजी को कुछ फलाहार तो देना भूल ही गई… तुरंत कुछ फल और मेवा सजा कर उनके कमरे में गई। वो अम्माजी की फोटो के आगे सिर टिकाए बैठे थे। उसका मन भर आया पर उन्हें हँसाने के लिए बोली,”क्यों बाऊजी, आज अम्माजी की बहुत याद आ रही है।  लीजिए कुछ खा लीजिए… तर्पण आदि होते होते बहुत देर हो जाएगी।”

“नही नही बेटी! इतनी भागदौड़ में भी तू भूलती नही है।  आज मन बहुत उदास है…बस बढ़िया चाय पिला दे।”


“आपके लिए चाय तो आ ही रही है।  पर ये सब भी थोड़ा खा लीजिए वर्ना आपकी तबीयत खराब हो जाऐगी।  फिर अम्माजी मुझसे नाराज हो जाऐगीं।”

“तो फिर इसमें से थोड़ा तू भी मेरा साथ दे वर्ना तेरी सास….।”कह कर वो हल्के से मुस्कुरा दिए..तभी हलवाई ने पुकार लिया।

सब तैयारी हो गई। लोग भी आने लगे पर ये क्या… पंडित जी तो नदारद है…फोन करने पर पता चला …थोड़ी देर में आऐगें।

घड़ी में तीन बज रहे थे। बाबूजी चाचीजी से बातें कर रहे थे पर चेहरा सूख गया था। रोज वो दो बजे तक खा लेते थे। वो बेचैन होकर बोली,”चाचीजी, पंडित जी तो आज बहुत देर कर रहे हैं… बाऊजी ऐसे भूखे प्यासे कब तक बैठे रहेंगे… उनकी तबीयत खराब हो जाएगी। मैं उन्हें तो भोजन करा दूँ?”

वो नाराज होकर चिल्ला पड़ी,”कैसी बात कर रही है तू सुमन! एक दिन भाईसाहब थोड़ा बर्दाश्त नही कर सकते…दीदी के तर्पण और पंडित  जी के जीमने के बाद ही घर के लोग खाते हैं।”

वो सहम कर चुप हो गई। वैसे चाची सही तो कह रही थी पर ज्यादा देर होते देख उसने भगवान को भोग लगाया और बाऊजी के आगे रख दिया।

“कोई कुछ भी कहे या सोचे पर आज अम्माजी की हर इच्छा का भी सम्मान करना है। वो बराबर कहती थीं,”तेरे बाऊजी को भूख बर्दाश्त नही होती है…मेरे बाद उनके खाने का ध्यान रखियो।”

नीरजा कृष्णा

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