सुंदरता व्यवहार में होती है – संगीता त्रिपाठी

  सलोनी अपने हाथों की रंगबिरंगी चूड़ियाँ देख मुग्ध हो रही थी, “ये तुम्हारे ऊपर नहीं बड़ी बहू संजना के उजले हाथों में अच्छी लगेगी “सासु माँ की व्यंग भरा स्वर सुन सलोनी का चेहरा अपमान से काला पड़ गया। कुछ ना बोल वो वहाँ से हट गई, उसी समय उमेश ऑफिस से लौटा था दरवाजे के बाहर खड़े हो उसने भी अपनी माँ का व्यंग सुना।

 

     कमरे में जब आया तो सलोनी चूड़ियाँ उतार चुकी थी, उमेश को देख, अपनी भीगी आँखों को पोंछ मुस्कुरा कर बोली -अरे आप कब आये। उसकी नम आँखों को पोंछते दुखी स्वर में उमेश बोले -जब माँ तुमको सुना रही तभी कि उनकी उजली बहू पर ये चूड़ियाँ अच्छी लगेगी। माफ करना सलोनी, मेरी वजह से तुमको इतना सुनना पड़ता है। पर मुझे तुम बहुत सुन्दर लगती हो, ये चूड़ियाँ जब तुम पहनती हो तो दुनिया की सबसे सुन्दर कलाई मुझे यही लगती है। तुम इसे पहनो मेरे लिये, तुम मुझे दिल से प्रिय हो इसलिये किसी की बात पर ध्यान मत दो।एक दिन माँ को भी तुम्हारी सुंदरता जरूर दिखेगी “।

 

   “आप माँ की बातों का बुरा क्यों मान रहे है, माँ की डांट और व्यंग में भी प्यार छुपा होता है,। सलोनी ने उमेश को समझाते हुये कहा।उमेश ने अपनी भोली प्रिया को गले से लगा लिया जो इतना अपमान सह कर भी, कोई शिकायत नहीं करती। यूँ सलोनी का रंग ही कम था , बाकी उसके नाक -नक्श बहुत कटीले थे।

 

    ये थी साँवली सलोनी, जिसे उसके पिया उमेश ने पूरे परिवार के विरुद्ध जा कर शादी की थी। सलोनी की भोली सूरत ने उमेश का दिल चुरा लिया था तभी तो क्लास में किताबों की ओट से मुग्ध हो देखता था।पढ़ाई खत्म कर उमेश प्रतियोगिता की तैयारी में लग गया। और जब सफल हो गया तो सलोनी का हाथ मांगने उसके घर पहुँच गया। सलोनी के माता -पिता बेटी के रंग की वजह से वर पक्ष द्वारा नापसंद किये जाने से परेशान थे। ऐसे में सरकारी नौकरी में उच्च पद वाला लड़का स्वयं आकर हाथ मांग रहा ये उनको अपना सौभाग्य लगा तुरंत हाँ कर दिया।उमेश को अपने घर वालों को मनाने में बहुत समय लगा। उमेश के घर में सब लोग गोरे -चिट्टे थे स्वयं उमेश का रंग भी बहुत साफ था इसलिये उसके माता -पिता इस शादी के लिये राजी नहीं थे। उमेश की जिद में वो सलोनी को बहू बना लाये पर दिल से उसे वो मान नहीं दे पाये जिसकी हक़दार वो थी।

 


       सासु माँ को जब मौका मिलता वो सलोनी के रंग को लेकर व्यंग करने से बाज नहीं आती। संजना अपनी सुंदरता की तारीफ सुन और इतरा उठती। हर दिन की यही कहानी संजना की तारीफ और सलोनी को अपमान…. यही चलता था। कोरोना काल आया। घर में कामवाली का आना -जाना बंद, ससुर जी का कारोबार ठप हो गया, बड़े भाई महेश की नौकरी छूट गई,संयुक्त परिवार के खर्च, ऊषा जी और सुधाकर जी की दवाइयों का खर्च, संजना के दो बच्चों की पढ़ाई का खर्च, सब उमेश के वेतन से पूरा ना पड़ता। संजना पहले भी अपने रूप रंग को संवारने में बहुत खर्च करती थी,बचत की तरफ उसने कभी ध्यान ही नहीं दिया।संयुक्त परिवार में रहने की वजह से उसके ऊपर खर्च का कोई भार ना था।महेश की नौकरी छूटते ही कुछ दिन बाद घर की आर्थिक व्यवस्था चरमरा गई।घर की आय का स्रोत्र सिर्फ उमेश की आय ही रह गई। ऐसे कठिन समय में सलोनी ने हिम्मत नहीं हारी। घर से उसने टिफ़िन सर्विस शुरु की। खाना अच्छा बनाती ही थी और जब खाना मन से बनाया जाये तो स्वादिष्ट बनता है।धीरे -धीरे उसका टिफ़िन सर्विस चल निकला। अब संजना और महेश भी उसको सहयोग देने लगे। ऊषा जी को सलोनी के गुणों की सुंदरता दिख गई। उनको अपना व्यवहार कचोटने लगा। जिस दिन सलोनी के रेस्टोरेंट का उदघाटन था। सलोनी ने फीता सासु माँ से ही कटवाया। ऊषा जी से रहा ना गया सलोनी को गले लगा फफक पड़ी। जिसके संवाले रंग का अपमान कर वे खुश होती थी आज वो सबसे उजली दिख रही थी क्योंकि उसके संवाले तन में उजला मन था…।और अब ऊषा जी को समझ में आ गया सुंदरता रंग में नहीं व्यवहार में होती है..।

 

       हमारे समाज में आज भी आधुनिक सोच होने के बावजूद रंग -भेद आज भी एक आम सामाजिक समस्या है। हम सुंदरता का मतलब गोरा रंग समझते है। भगवान ने सबको एक जैसा नहीं बनाया तो रंग कैसे एक जैसा देगा। आइये रंग -भेद से ऊपर उठे, इंसान का सम्मान करें ना कि अपमान..।

#अपमान 

                  ..—–संगीता त्रिपाठी 

 

 

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