इस शहर में रमिक की बदली हुए एक साल हो गया। सरकारी बैंक में बड़े पद पर जिम्मेदारी के साथ परिवार को सुविधाएं भी अधिक मिलती हैं। आज छोटी ननद मिलने आ रही थीं यूँ कहो दिसम्बर की छुट्टी बिताने आ रही थीं। सारा दिन उनके लियें व्यवस्था करने में बीत गया। उनका स्वभाव भी कुछ अलग सा है हर चीज़ में कुछ न कुछ कमी तलाश ही लेती हैं। साड़ी का रंग इतना अच्छा नहीं, सब्जी में थोड़ा गरममसाला ज़्यादा डाल दिया, हम तो इस रँग के पर्दे कभी न लगाएं।
सभी को उन के साथ बहुत औपचारिकता बरतनी पड़ती थी रिश्ता है छोड़ा तो नहीं जा सकता।
“आते ही शुरू हो गईं, भाभी इतने बड़े घर की क्या ज़रूरत आपको, छोटा ले लेते। बड़े शहर में खर्चे भी तो बहुत होते होंगें।”
“कितना समान भर रखा है किचेन को ठीक से नहीं लगाती नौकरानी, डांट कर रखा करो। मैं आ गई हूँ सबको सीधा करके ही जाऊंगी।” रमणी ख़ुद ही भाई के घर की सुपरवाइजर बन गई।
उनके इस व्यवहार से नवीना को डर लगने लगा। नौकर मिलना पहले ही बहुत मुश्किल है कहीं कोई भाग गया तो। रमणी दीदी को कुछ भी बोलने का मतलब उन्हें नाराज़ करना होगा।
चारों बच्चों को क्या खाना है, कहाँ घूमने जाना है , बाहर क्या खरीदना है सब रमणी की मर्जी से होने लगा। नवीना के दोनों बेटों ने एक दो दिन तो बुआ की सभी बातें मान ली पर ज़ल्दी ही नवीना से बात बात पर बुआ की शिक़ायत करने लगे।
बीस दिन का प्रोग्राम बना कर आई थीं रमणी पर सातवें दिन ही जाने को कहने लगीं। नवीना और तनुज से शिकायतें जो थीं उन्हें। नवीना पर चार्ज लगाया गया कि वो रमणी व बच्चों का ध्यान नहीं रखती। सारा कुछ रमणी ही देखती है अब नवीना क्या समझाए तनुज को कि आते ही दीदी ने ख़ुद सारे काम की जिम्मेदारी ली थी। उस में हिम्मत कहाँ थी दीदी को कुछ मना करने की।
तनुज नवीना को डांटते हुए बोला,” कौन सा दीदी रोज रोज़ यहाँ आने वाली हैं कितनी मुश्किल से तो आई हैं तुम उनका व रिंनी, चिंटू का ध्यान नहीं रख पाई। “
“मैंनें तो वही किया जो दीदी चाहती थी। उन्हें सम्मानित महसूस हो इसलिए सब कामों की निगरानी उन्हें दे दी।” नवीना ने कहा।
नवीना को बहुत गुस्सा आया। वह रमणी के स्वभाव को बहुत अच्छे से जानती थी पर चुप ही रही। राई को पहाड़ बनाना नवीना को पसंद नहीं।
“तुम दोनों क्यों लड़ने लगे। वैसे भी मेरा व बच्चों का मन नहीं लग रहा यहाँ।” रमणी ने कहा।
इससे पहले कि कोई और बोले रमणी का सात वर्षीय बेटा बोला, ” मम्मी हमें तो यहाँ बहुत अच्छा लग रहा है। अपको ही मामी जी के साथ और नहीं रहना आप को ही घर जाना है कल आप पापा से कह भी तो रही थीं कि नवीना तो आराम करती है सारा काम उसने मुझे सौंप दिया है। पापा कह रहे थे झूठ मत बोलो, तुम ही किन्हीं एडजस्ट नहीं कर पाती हो। रमणी की बोलती बंद हो गई।
गीतांजलि गुप्ता
नई दिल्ली