सुख – दुःख तो धूप और छांव हैं मगर माता – पिता तो भगवान है !! – स्वाति जैंन : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi: हे भगवान , ना जाने कौन से जन्म के कर्मो की सजा मिली होगी ईश्वर चंद्र जी को , इतने भले मानस तो मैंने अपनी जिंदगी में कभी देखे ही ना थे , भगवान इनकी आत्मा को शांती दे , ० रो मत सरला , देखना यह पुण्य शाली आत्मा बहुत अच्छी जगह जन्म लेगी और तूने तो इनकी सेवा में कोई कसर नहीं छोड़ी थी , पुरे दस महिने तु इनका साया बनकर इनके साथ चली , यह दिन तो आना ही था यह सभी पहले ही जान चुके थे और इनके शरीर को भी तो कितना कष्ट था , भगवान ने मुक्ति दे दी इनको , सरला तु चुप हो जा , ऐसी पुण्य शाली आत्मा धरती पर कम ही होती हैं , सरला की पड़ोसन सरला को ढाढस बंधाते हुए कहे जा रही थी !!

उतने में सरला जी का बेटा राकेश भी अपने पिता के मृत शरीर को अग्नि देने वहां पहुंच गया , बेटे को देखकर सरला जी फूट – फूटकर रो पड़ी और रोते हुए बोली बेटा , तेरे पापा ने तुझे बहुत याद किया , अंतिम वक्त में तुझे देखने की चाह थी उनकी मगर यह चाह पुरी ना हो पाई , जब से बीमार पड़े थे एक ही रट लगाए हुए थे कि मुझे राकेश से मिलना हैं इसिलिए कभी – कभी तुझे विडियो कॉल लगा देते थे मगर विडियो कॉल से संतुष्ट नहीं हो पाते थे , कहते थे बस एक बार राकेश रूबरू मिलने आ जाए फिर में शांती से मर पाऊंगा !!

बहुत राह देखी बेटा तेरी , अंतिम समय में भी बस तेरा ही नाम उनकी जुबान पर था !!

राकेश अपनी मां को संभालते हुए बोला मां होनी को कौन टाल सकता हैं ?? हम सभी यह बात जानते थे कि एक ना एक दिन यह दिन जरूर आएगा , पापा की बीमारी ही ऐसी थी , आप संभालिए अपने आप को !!

सरला जी लगातार रोए जा रही थी , नाती – रिश्तेदार , पड़ोसी सब उन्हें संभालने में लगे थे !! राकेश ने अपने पिता के मृत शरीर के पांव छूए और उन पर फूल – माला चढ़ाकर एक जगह बैठ गया !!

दूसरी ओर औरतों के समूह में राकेश को देखकर काना – फूसी हो रही थी , उनके बगल में रहने वाली शोभा दूसरी औरतों से बोली – अब आया हैं विदेश से जब पिता परलोक सिधार चुके हैं बेचारी सरला हर फोन पर इसे आकर अपने पिता से मिलने का कहती मगर यह एक बार ना आया ,पुरे दस महिने ईश्वर चंद्र जी बीमार रहे और हर बारी ईश्वर चंद्र जी भी यही कहते एक बार राकेश को देख लेता उसके बाद भले प्राण चले भी जाए तो कोई बात नहीं !! बेटे को पिता की इतनी गंभीर बीमारी में भी उनसे मिलने तक का समय नहीं मिला , वह तो अच्छा हुआ ईश्वर चंद्र जी के नौकर का बेटा राजू और उसकी पत्नी माया साथ थे वर्ना बिचारी सरला अकेले कैसे इतना सब संभालती ??

समूह में से दूसरी औरत बोली इसके बीवी – बच्चे विदेश से क्यूं नहीं आए ?? पिता के मरने पर ही कम से कम अपने परिवार संग आता और देखो तो जरा आंख में एक आंसू नहीं है इसके ,ऐसे लग रहा है जैसे बस क्रियाकर्म का भार उतारने चला आया हो !!

शोभ फिर बोली अरे बच्चे , विदेश जाकर ऐसे ही हो जाते हैं , फिर इन्हें थोड़ी अपने माता – पिता के प्रति लगाव होता है बस अपनी बीवी के होकर रह जाते हैं , एसे समय में भी बीवी साथ नहीं आई , इसकी पत्नी तो बस विदेश ही रहना चाहती थी , शादी के बाद भी कभी यहां सरला जी के साथ ना रही , किस्मत वाली हैं इनकी बहू जो इतने अच्छे सास – ससुर मिले कि खुशी – खुशी बेटे के साथ विदेश भेज दिया , एक बार भी यहां रहने की जिद नहीं की मगर आज ससुर जी के मरने पर भी भारत नहीं आई यह बात तो गले ही नहीं उतर रही !! जब इस समय भी वह भारत नहीं आई तो बिचारे ईश्वर चंद्र जी को बीमारी में मिलने क्या खाक आते यह लोग, बेटा भी बस फार्मलेटी पुरी करने आया हैं उसको देखकर ऐसा लग रहा हैं !!

पंडित जी ने राकेश से कहा तुम अग्निसंस्कार की तैयारी कर लो !!

राकेश ने पंडितजी के कहे अनुसार क्रियाकर्म का सारा विधि – विधान खत्म किया और ईश्वर चंद्र जी की चिता को शमशान में जाकर अग्नि -संस्कार दे दिया !!

शमशान से आकर सभी लोग नहा – धोकर वहां आकर बैठ गए , जहां पंडित जी अभी आगे के विधि – विधान बता रहे थे !! सरला जी के घर में रहने वाले राजू और उसकी पत्नी माया ने सभी के लिए चाय बनाई !!

राजू के पिता बंसीलाल जी ईश्वर चंद्र जी के यहां काम किया करते थे , लगभग बीस साल पहले बंसीलाल की एक हादसे में मृत्यु हो गई थी , तब से उसके अनाथ बेटे राजू को ईश्वर चंद्र जी और सरला ने ही पाला – पोसा और उसकी शादी भी करवाई थी !! सरला जी का खुद का बेटा राकेश तो वैसे भी  नौकरी के सिलसिले में विदेश में जा बसा था मगर यहां राजू के रहते कभी ईश्वर चंद्र जी और सरला को कोई मुश्किल नहीं आई थी !!

राजू और उसकी पत्नी ने इन दस महिनों ईश्वर चंद्र जी और सरला दोनों का खुब ध्यान रखा था !!

ईश्वर चंद्र जी को दस महिने पहले कैंसर हो गया था , तब से ही वे बहुत बीमार रहने लगे थे , सभी आस – पड़ोस के लोग भी यहीं कहते जिस इंसान ने कभी किसी का बुरा नहीं चाहा , भगवान ने उसे ना जाने कौन से जन्मों के पापों की सजा दी होगी !!

ईश्वर चंद्र जी जैसे दयालु और सबकी मदद करने वाले इंसान आजकल कहां देखने मिलते हैं ??

सरला जी ने हिम्मत ना हारते हुए ईश्वर चंद्र जी की खुब सेवा की थी और इसमें उनका साथ दिया राजू और माया ने !!

राजू और माया घर में हंसी- खुशी का माहौल भी बनाए रखते जिससे इतनी बड़ी बीमारी से उभरने में ईश्वर चंद्र जी को मदद मिल पाए !!

राजू तो वैसे भी बहुत हंसी – मजाक करने वाला इंसान हैं , वह ईश्वर चंद्र जी को हंसाने का हर प्रयास करता ताकि वे अपनी गंभीर बीमारी को कुछ पल के लिए भूल पाए !!

सरला जी जब अकेले में खूब रोती तब माया उन्हें सहारा देती

और हमेशा उनका दाहिना हांथ बनकर उनका हर काम में सहयोग करती !! सरला जी माया से कहा भी करती थी अगर तुम और राजू ना होते तो ना जाने मैं अकेले कैसे मेरे पति को संभाल पाती ?? राकेश और उसकी पत्नी को तो पिता से मिलने आने तक की फुर्सत नहीं हैं !!

सरला जी की खुद की बहू जो विदेश में रहती थी , उसे तो सरला जी से मतलब ही कहां था !!

राकेश की नौकरी जब से विदेश में लगी थी , तब से उसने भारत का रुख करना ही बंद कर दिया था !! सरला जी बेटे की शादी करवाना चाहती थी इसलिए उसे बार – बार भारत आने कहती मगर हर बार की तरह राकेश कोई ना कोई बहाना बना देता !! सरला जी ने राकेश को उसके मामा के लड़के की शादी में शामिल होने भारत बुलाया था और कह दिया था इस बार वे राकेश के लिए भी लड़की पसंद करना चाहती हैं , उनके बड़े अरमान हैं बेटे की शाही देखने के , राकेश इस बार मां की जिद के आगे हार गया और बस उसी शादी में राकेश और माही ने एक – दूसरे को पसंद कर लिया था और ईश्वर चंद्रजी और सरला जी ने खुब घुमधाम से दोनों की शादी करवाई थी !!

माही एक पढ़ी- लिखी आधुनिक विचारो वाली लड़की थी , वह पहले से ही एक ऐसे लड़के से शादी करना चाहती थी जो विदेश में अकेले रहता हो ताकि उसे यहां सास – ससुर के साथ ना रहना पड़े , वह बस अपने बारे में ही सोचती थी , शादी होने के बाद जब राकेश ने माही से कहा था कि एक बार विदेश जाने के बाद जल्दी भारत आने नहीं मिलेगा इसलिए वह अभी छः महिने यहां मां – पापा के साथ रूकेगा , तब माही ने घर में बहुत बड़ा हंगामा शुरू कर दिया था वह बोली राकेश मैंने तुमसे शादी विदेश में रहने के लिए की थी और उसे यहां मां – पापा के साथ ही रहना था तो शादी की इतनी जल्दी क्यूं की ?? जब विदेश जाने का समय आता तब शादी करता ताकि शादी होते ही उसे विदेश ले जा सके !!

राकेश ने उसे समझाने का प्रयास किया था मगर वह शादी के पंद्रह दिनों बाद ही अपने मायके जाकर बैठ गई थी और उसने राकेश के सामने यह शर्त रख दी थी कि जब विदेश जाने का समय आ जाए तब राकेश उसे लेने आ जाए , वह यहां सास – ससुर के साथ नहीं रहेगी , वैसे भी उसका कहना था कि उसने शादी लड़के से की हैं , लड़के के परिवार से नहीं , वह यहां रहकर अपना बहू वाला कोई फर्ज नहीं निभाएगी !!

वह कभी सास – ससुर वाले परिवार में नहीं रहेगी , उसकी अपनी जिंदगी हैं और वह इसे सिर्फ अपने पति के साथ ही जिएगी !!

सरला जी ने तब प्यार से राकेश से कहा था कि तुम लोगों की नई – नई शादी हुई हैं , ऐसे में बहू मायके जाकर बैठ जाए अच्छा नहीं लगता , राकेश तू बहू को लेकर जल्दी विदेश चला जा और जब भी समय मिले हम लोगो से मिलने आ जाना !!

बहू भी अभी नासमझ है धीरे-धीरे शायद उसे भी अकल आ जाए और वह भी यहां हमारे साथ रहने राजी हो जाए !!

राकेश ने भी मां की बात मान ली थी और वह माही को लेकर जल्दी विदेश के लिए रवाना हो गया था , उसके दो साल बाद माही और राकेश कुछ दिनों के लिए भारत आए थे !!

तीन दिन ससुराल में रहने के बाद माही वापस अपने मायके चली गई थी और वहीं उसने अपने मा – पापा के साथ एक महिना बीता दिया , राकेश जब माही को वापस ससुराल लेकर आया तो उसने आते ही विदेश जाने के लिए कपड़ों की पैंकिंग करना शुरू कर दिया था !!

सरला जी ने जब माही को रोकने की कोशिश की तब माही ने एक टूक जवाब दे दिया था , मम्मी जी मैंने शादी आपके लड़के की काबिलियत देखकर की हैं , आप लोगों के साथ रहने नहीं की , इसलिए बेहतर होगा कि आप मुझसे बहुओं वाली अपेक्षा ना ही रखें और जब सरला जी ने राकेश को माही द्वारा बोले शब्द बताएं तब राकेश बोला माही सही ही तो कह रही हैं मां , एक बार इंसान विदेश में रहने का आदि हो जाए फिर उसे भारत कहां सुहाता हैं ?? आपकी जिद के कारण हमें यहां आना पड़ता हैं वर्ना आप तो जानती ही हैं मुझे भारत बिल्कुल नही पसंद और माही उसने तो मुझसे शादी विदेश में रहने के उसके सपने के कारण ही की थी , उसे तो अब भारत आना बिल्कुल पसंद नही हैं फिर भी मन मारकर आ गई !!

सरला जी सोचने लगी बहू अपनी मां के घर तो एक महिना रहकर आई , उनका घर भी तो भारत में ही हैं और जो बच्चे यहीं पले – बढ़े हो उनका यहां से ही मोह कैसे खत्म हो जाता होगा खैर उसके दो दिन बाद ही राकेश और माही विदेश के लिए रवाना हो गए थे !!

दिन ,महीने , साल बीतते गए बहू का तो वैसे भी कभी फोन नहीं आता था अब तो बेटे ने भी फोन करना बंद कर दिया था !!

ईश्वर चंद्र जी और सरला जी कभी कभार सामने से ही फोन लगा दिया करते थे , उसमें भी माही कितनी बार तो फोन पर बात नहीं करती थी और राकेश के पास बात करने का कभी समय नहीं होता था !!

यहां भी राजू और माया की वजह से ईश्वर चंद्र जी और सरला जी को कभी कोई परेशानी नहीं आती थी !!

ईश्वर चंद्र जी सरला से हमेशा कहा करते थे , सरला कल के दिन अगर मैं मर भी गया तो क्या पता तुम्हारे बेटे के पास मेरे अंतिम संस्कार के लिए भी समय होगा या नहीं क्योंकि इतने महिनों से बीमार पड़ा हूं फिर भी तुम्हारे बेटे को मुझसे मिलने आने का समय नहीं मिल पाया है !!

एक काम करना सरला , मेरी चिता को आग लगाने तुम्हारा बेटा अगर विदेश से ना आ पाया तो हमारे दूसरे बेटे राजू से ही सारी क्रिया कर्म की विधि करवा लेना क्योंकि जिस तरह से उसे हमसे फोन पर बात करने तक का समय नहीं हैं , मुझे लगता है उसे तो मेरी चिता को आग लगाने का भी समय नहीं मिलेगा !!

सरला जी तुरंत कहती आप ऐसी अशुभ बातें क्यों करते हो जी ?? देख लेना आपको कुछ नहीं होगा !! आप जल्दी ही ठीक हो जाएंगे !!

आज ईश्वर चंद्र जी के ना रहने पर सरला जी को बार-बार ईश्वर चंद्र जी की सारी बातें याद आ रही थी !!

सरला जी को अब यही आस थी कि शायद राकेश उन्हें भी हमेशा के लिए विदेश ले जाएगा क्यूंकि अपनी मां को यहां अकेले थोड़ी छोड़ेगा , भले ही राजू और माया है मगर सगा बेटा तो सगा ही होता है ना , अब शायद राकेश और माही मेरे बारे में सोचेंगे , कोई बेटे – बहू भला इतने निर्दयी नहीं हो सकते !! उतने में पंडित जी की आवाज से सरला जी की तंद्रा टूटी पंडित जी ने राकेश से कहा कि क्रियाकर्म की सारी विधि संपन्न हुई अब बारह दिन बाद ईश्वर चंद्र जी के नाम पर एक पुजा का आयोजन किया जाएगा जिसमें तुम्हें बैठकर सारी विधि संपन्न करनी होगी !!

राकेश बोला पंडित जी मेरे पास इतना समय नहीं है , वहां विदेश में मेरी बीवी अकेली है इसीलिए मैं तो कल ही वापस निकल रहा हूं , पुजा आप आज ही रख लीजिए !!

पंडित जी बोले बेटा पुजा का आयोजन बारह दिन बाद ही किया जा सकता है , शास्त्रों के हिसाब से ही विधि-विधान करना होगा !!

राकेश बोला , फिर एक काम कीजिए यह सब विधि विधान आप मां से ही पूरा करवा दीजिएगा क्योंकि मेरे पास इन सब चीजों के लिए इतना समय नहीं हैं !!

अब सरला जी के सब्र का बांध भी टूट चुका था , वे सभी के सामने बोली – बेटा कल क्यों तू आज ही वापस चला जा , जो बेटा अपने पिता के कैंसर में उनसे एक बार मिलने ना आ पाया , जो बेटा उनके अंतिम समय में भी उनके साथ ना था , वह बेटा अब उनकी पुजा की विधि में भी नहीं रहेगा तो क्या फर्क पड़ जाएगा ??

पंडित जी बोले यह क्या कह रही हैं आप ?? पिता के मरण के पश्चात उनके क्रियाक्रम से लेकर पूजा की विधि सभी एक बेटे द्वारा ही संपन्न की जाती हैं इसलिए आपके बेटे राकेश को यह सारा विधि विधान करना होगा !!

सरला जी बोली पंडित जी यह सारी विधि विधान हमारा दूसरा बेटा राजू कर लेगा , वैसे भी अब तक हमारे बुढ़ापे का सहारा राजू ही बना हुआ हैं तो आगे भी राजू सब संभाल लेगा , और हां राकेश यह भी सुनते जाओ तुम्हारे पिताजी की सारी जायदाद पर अब राजू का ही हक होगा इसलिए तुम कभी इस जायदाद में हिस्सा मांगने की चेष्टा मत करना !!

राकेश बोला मां मैं अपने बिजी शेडयूल में से वक्त निकालकर यहां आया था मगर आप नहीं समझेंगी , आप लोगों को तो बस यह पुजा , अनुष्ठान करवाने हैं , जाने वाला तो चला गया अब उनके नाम पर इतना रोना – धोना और धर्म के नाम पर रीति – रिवाज करने यह सब खोखलापन हैं !!

सरला जी रोते हुए बोली हां बेटा , तेरे लिए यह सब खोखला पन हैं , तभी तो तू इन दस महिनों में एक बार भी अपने पिता से मिलने तक ना आ सका , जा चला जा यहां से कहकर वे जोर – जोर से रोने लगी !! यह सब सुनकर राकेश अब यहां पल भर भी ना रुका , उसे देखकर तो यही लग रहा था कि शायद वह आना भी नहीं चाहता था मगर लाक – लोज की शर्म के कारण आ गया था !!

उसे यहां रहते अपने अकेले मां-बाप की एक बार भी चिंता नहीं हुई थी मगर आज आते ही एक दिन में अपनी अकेली बीवी की चिंता हो रही थी वह भी उस बीवी की जो पूर्ण रूप से स्वस्थ हैं और जानबूझकर ससुर जी के मरने पर भी भारत नहीं आई क्योंकि उसे तो इन लोगों से मतलब ही नही था ,अब यह लोग यहां जिए या मरे उसे क्या फर्क पड़ता था ??

बहु तो बहु मगर जब बेटा भी अपने माता – पिता के प्रति फर्ज भूल जाए तो ऐसे बेटे से वास्ता रखकर क्या फायदा ??

सरला जी के इस फैसले पर सभी आस पड़ोस की औरतें खुश थी क्योंकि उन्होंने पल पल इन लोगों को अपने बेटे का इंतजार करते हुए देखा था !!

दोस्तों , जब औलाद अपने माता-पिता के प्रति सारे फर्ज भूल जाए तो माता-पिता को भी पूरा अधिकार है कि ऐसे बच्चों को वे अपनी जमीन जायदाद से बेदखल कर दें और उनसे कोई वास्ता ना रखें !! बच्चे बड़े होकर शायद यह भूल जाते हैं कि उनके माता – पिता ने कितने दुःख सहन करके उनको बड़ा किया होता हैं मगर माता – पिता फिर भी निस्वार्थ भाव से अपने बच्चों के लिए अपना फर्ज निभाते चले जाते हैं , उनकी बड़ी से बड़ी गलती माफ कर देते हैं मगर अति हो जाने पर उनके दिल को भी चोट पहुंचती हैं और वे भी ऐसे बेटे – बहू से रिश्ता तोड़ देते हैं !!

दोस्तों आपको यह कहानी कैसी लगी कृपया अपनी प्रतिक्रिया जरूर दीजिएगा तथा मेरी अन्य कहानियां पढ़ने मुझे फॉलो अवश्य करिएगा !!

आपकी सखी

स्वाति जैंन

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