*परिवार फिर एक हो गया *-पुष्पा जोशी : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi: मोहिनी जी और उनकी बहु रूपा बहुत प्रेम से रहती थी।रूपा ज्यादा पढ़ी लिखी नहीं थी, मगर हर काम में दक्ष ,और व्यवहारिक थी। दोनों सास बहू सारे तीज त्यौहार बड़े प्रेम से मनाती। उनकी पड़ौसन मालती जी हमेशा अपनी बहू रोहिणी के आगे, रूपा के गुण का बखान करती थी। मालती और रोहिणी की आपस में नहीं बनती थी।

रोहिणी बिना कारण रूपा से द्वेष रखती थी, वह चाहती थी कि रूपा और उसकी सास का झगड़ा हो जाए, वह अवसर की तलाश में रहती। रूपा की दो लड़कियां थी दीपा और नैना। रूपा के देवर श्याम का विवाह हुआ उसकी पत्नी सौम्या पढ़ी लिखी थी, नौकरी करती थी। उसके ससुर दीनानाथ जी ने कह दिया कि ‘बहू की नौकरी का एक पैसा भी हम घर के खर्चे में नहीं लेंगे।

बहु के खर्चे पानी की जिम्मेदारी हमारी है। वह नौकरी करे, मगर रूपा के काम में बराबरी से मदद करे।’ सौम्या संस्कारी लड़की थी। वह सुबह जल्दी उठकर घर का सारा काम करके दस बजे स्कूल जाती और पॉंच बजे स्कूल से आने के बाद फिर काम में लग जाती। एक दिन घर में कथा थी, आसपास की महिलाऐं आई थी, उनके सामने मोहिनी जी सौम्या की तारीफ कर रही थी।

रोहिणी को अवसर मिल गया रूपा को पट्टी पढ़ाने‌ का। वह किसी बहाने से घर आती या घर के बाहर रूपा मिलती तो उसके सामने कहती ‘तेरी सासु जी हमेशा रूपा की तारीफ करती है।देख तू भी तो दिनभर घर के काम काज मे खटती रहती है,पर वे अब तेरी तारीफ नहीं करती। वह पढ़ी लिखी है, नौकरी करती है अच्छा पैसा जमा कर लिया होगा उसने।

ऐसा न हो कि वो सास ससुर‌ को पटा कर मकान और जायदाद अपने काम करा ले। रूपा मुझे तेरी चिंता होती है, कहीं उसने ऐसा कर लिया तो तू क्या‌ करेगी? किशोर भाईसाहब भी बहुत सीधे हैं।’ जब बार-बार ऐसी बाते सुनती तो उसका मन विचलित होने लगा। वह कच्चे कान की थी,रोहिणी की बातों में आ गई, उसे अब बस रोहिणी ही उसकी सगी लगने लगी थी।

उसके बहकावे में आकर उसने घर में झगड़ा करना शुरू कर दिया, और अपने हिस्से की मांग करने लगी, किशोर ने बहुत समझाया मगर वह नहीं मानी। रोज के कलह से घबराकर घर का बटवारा हो गया।
किशोर की बड़ी बेटी दीपा विवाह लायक हो गई। किशोर ने अपने पिता से बात की बोला -‘पापा किसी महाजन से शादी के लिए कर्ज लेना है।’  दीनानाथ जी ने कहा -‘बेटा महाजन बहुत ब्याज लेगा, उसे चुकाने में कमर टूट जाएगी।’ सौम्या यह बात सुन रही थी, बोली -‘भाई साहब आपको कर्ज लेने की जरूरत नहीं है, मैंने दीपा के नाम से पैसा बैंक में जमा किया‌ है।

बाबूजी ने मेरी कमाई‌ का एक पैसा भी घर खर्च में नहीं लिया, पर अपनी बेटियों के लिए तो वे पैसे खर्च किए जा सकते हैं, दीपा मेरी भी बेटी है। सौम्या की बात सुनकर दीनानाथ जी और किशोर का चेहरा खिल उठा। उन्हें अपनी बहू की सोच पर बहुत गर्व हो रहा था।

सौम्या ने दीपा के नाम जमा किए पैसो की एफ डी किशोर के हाथ में देते हुए कहा ‘भाई साहब यह  एक महिने बाद पक जाएगी। मैंने नैना के नाम से भी पैसे जमा किए हैं।आप मना मत करना भाई साहब नहीं तो मैं समझूँगी की दीपा और नैना पर आप मेरा जरा भी अधिकार नहीं समझते हैं। भाई साहब एक और प्रार्थना थी आपसे,हमारे आंगन के बीच जो दीवार है उसे हटा दीजिये, हम अपनी दीपा का विवाह एक साथ मिलकर बड़ी धूमधाम से करेंगे।

किशोर की ऑंखों में खुशी के ऑंसू आ गए। वे बोले सौम्या तुमने मुझे बहुत बड़े संकट से बचा लिया। जब रूपा को यह बात मालुम हुई तो उसे अपनी करनी पर बहुत शर्म आई। वह बोली -‘सौम्या मुझे माफ करना, रोहिणी ने तुम्हारी बुराई की, मैं कच्चे कान की निकली उसके बहकावे में आकर मैंने घर को दो भागों में बाट दिया।’ दीदी आप मॉफी न मॉंगे आप बड़ी हैं, जो होना था हो गया। अब तो हम मिलकर मम्मीजी से पूछकर दीपा की शादी की तैयारी करते  हैं।घर में फिर से खुशिया आ गई थी।

प्रेषक-
पुष्पा जोशी
स्वरचित, मौलिक, अप्रकाशित

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