सोनाझुरी और कबीगुरु (भाग 8) – श्वेत कुमार सिन्हा : Moral Stories in Hindi

विडियो कॉन्फ्रेंस खत्म होने के बाद सुमित अपने बेटे के साथ गहरी नींद में सोया था। नींद टूटी तब रात के नौ बजे थे। फिर दोनों अपने कमरे से बाहर आए और रेस्टुरेंट की तरफ बढ़ गए जहाँ नमिता अपनी सभी सहेलियों के साथ पहले से ही मौजूद थी। इशारे से नमिता ने शौमित को बुलाया और अपने पास ही बिठा लिया। सुमित भी वहीं थोड़ी दूरी पर एक खाली कुर्सी पर जाकर बैठ गया।

ओरे लाल धुलार शोराने, ओरे शोराने

आमार सोंगे देखा होबे बाबूर बागाने

बोरो लोकेर बेटी लो लंबा लंबा चूल

एमोन माथाए बेधे देबो लाल गेंदा फूल

रेस्टुरेंट में मौजुद एक स्थानीय बाउल गायक एकतारे पर अपनी मधुर तान छेड़े हुए था, जो उस महौल को संगीतमय बना रहे थे।

“नमिता, देख न सुमित जी वहां अकेले बैठे हैं! उन्हे यहीं क्यूं नहीं बुला लेती या फिर तू ही उनके पास चली जा!”- बगल में बैठी आशा ने नमिता से धीरे से कहा। नमिता को अच्छे से पता था कि यदि उसने सुमित जी को अपनी सहेलियों के बीच बुला लिया तो आशा और नबनिता मिलकर उनदोनों की खींचाई करेंगी। इसलिए सुमित को अपने बीच बुलाने के बजाय उसने खुद ही उसके पास चले जाना बेहतर समझा।

बाउल गायक की तान रेस्टुरेंट में बैठे लोगों को मदमस्त कर रही थी।

देखे छिलम शोराने, ओरे शोराने

भालोबाशा दाड़िन छिलो माथा सिखाने

बोरो लोकेर बेटी लो लंबा लंबा चूल

एमोन माथाए बेधे देबो लाल गेंदा फूल

शौमित को अपने साथ लेकर नमिता उठी और सुमित के पास जाकर एक ही टेबल पर बैठ गई।

“हो गया आपका विडियो कॉन्फेरेंस खत्म? लगता है काफी लम्बी चली, है न?”- नमिता ने बेपरवाही से पुछ लिया।

“ह्म्म…”- सुमित ने धीरे से अपना सिर हिलाया और मुस्कुराकर नमिता की तरफ देखकर कहा- “आज डिनर में क्या ऑर्डर करना है?”

नमिता ने कुछ सोचा और फिर पास बैठे शौमित की तरफ देखकर बोली– “आज का ऑर्डर शौमित की पसंद का! बोलो बेटा, क्या खाओगे?” शौमित ने आंखें फैलाते हुए कहा – इलिस माछ (हिलसा मछली)।”

सुमित का ध्यान रेस्टुरेंट में मौजूद बाउल गायक के कर्णप्रिय शब्दों पर टिक गया, जिसमें खोकर रात्रिभोजन कर रहे सभी लोग अपनी जगह बैठे-बैठे झूम रहे थे।

जा केने कोथा जाबि ओर ओ जाबि

दू दिन पोरे आमार छाड़ा आर कारो बा होबि

बोरो लोकेर बेटी लो लंबा लंबा चूल

एमोन माथाए बेधे देबो लाल गेंदा फूल

इशारे से नमिता ने वेटर को पास बुलाया और शौमित का मनपसंद डिनर ऑर्डर किया। फिर सबके साथ इधर-उधर की गप्पे हाँकने में व्यस्त हो गई।

बातचीत के दौरान शौमित ने अपने पिता को हाट की बात बतायी। “पापा आपको पता है, हाट में आज माँ मिली थी। मासी और क्रिशु भैया भी उनके साथ थें। उन्होने आंटी और मेरे साथ काफी देर तक बातें की।” फिर अपना मुंह बनाता हुआ वह बोला- “पता है पापा, मुझे आंटी के साथ देखकर मासी बोली कि तुम किसके-किसके साथ घूमते रहते हो! उनकी बातें मुझे जरा भी अच्छी नहीं लगी, पापा।” शौमित ने सिकुड़े चेहरे से सारी बातें बतायी।

“छोड़ो, जाने दो! उनकी बातों पर ज्यादा ध्यान नहीं देते! ये बताओ कि तुम्हारी पढ़ाई कैसी चल रही है?” सुमित ने शौमित को दूसरी बातों में उलझा दिया। पर उसकी नज़रें नमिता पर टिकी थी और उसे डर इस बात का था कि कहीं उनलोगों ने नमिता से कुछ उलजलुल न कहा हो!

नमिता नज़रें नीची किए गुमसुम होकर बैठी थी। फिर सबों के चेहरे गम्भीर होते देख उसने बात बदलते हुए कहा- “कल हमलोग कोपाई नदी घुमने जा रहे हैं।”

कोपाई नदी सुन शौमित ने बड़ी उत्सुकता से अपनी आंखें चौड़ी करते हुए कहा- कोपाई नदी!!” फिर कोपाई नदी पर रबीन्द्रनाथ टैगोर की लिखी पंक्तियाँ दुहराते हुए बोला- “आमादेर छोटो नॉदि चले बांके बांके- वही वाला कोपाई नदी??”

“हाँ, वहीं वाला। सबने मिलकर वहीं जाने की प्लानिंग की है! आपलोग भी आइए न हमलोगों के साथ! हमें अच्छा लगेगा।”

“अरे नहीं! आपलोग एंजॉय करिये। हाँ, इसे जरूर साथ ले जाइए।”- सुमित ने शौमित की तरफ इशारा करते हुए कहा।

“नहीं पापा!! आप भी चलो न हमलोगों के साथ! बहुत मजा आएगा। आप नहीं जाओगे तो मैं भी नहीं जाऊंगा।”- यह कहते हुए शौमित ने मुंह बना लिया।

तभी उनके बीच कूदते हुए आशा बोली- “अरे मान भी जाइए, सुमित दा! बच्चे के लिए नहीं तो बच्ची के लिए ही सही!” नमिता ने उसे आंखें दिखायी तो हकलाती हुए उसने कहा- “म म मेरा मतलब है हम सारी बच्चियों अर्र…यानि सहेलियों के लिए ही सही!! आपके रहने से हमसब भी थोड़ा सेफ फील करेंगे! क्यूँ नमिता….अब मैंने सही कहा न?”

“हाँ पापा, मान जाओ न! प्लीज़!!”- शौमित ने कहा। नमिता की आशा भरी निगाहें भी सुमित पर टिकी थी। सबकी बातों को सुमित टाल न पाया और हामी में अपना सिर हिला दिया। तभी सहेलियों ने आवाज़ दिया और आशा उनके बीच चली गई। थोड़ी ही देर में वेटर ने खाना लगाया और तीनों भोजन करने में व्यस्त हो गए।

भोजन करने के बाद शौमित बाहर ठहलने की ज़िद्द करने लगा तो सुमित को उसे लेकर जाना पड़ा। नमिता भी साथ थी। शौमित जबतक इधर-उधर ठहलता रहा, नमिता और सुमित वहीं सोनाझुरी पेड़ के नीचे लगे एक बेंच पर बैठ बातचीत करते रहे।

“हाट में शौमित की माँ और मासी ने आपसे जो कुछ भी उल्टा-पुल्टा कहा, प्लीज़ उनकी बातों को मन से ना लगाये। उनसब की तरफ से मैं माफी मांगता हूँ।”- सुमित ने नमिता की आंखों में झांकते हुए कहा।

“यूं माफी मांगकर आप मुझे शर्मिंदा कर रहें हैं, सुमित जी। प्लीज़ ऐसा मत करिये।” -नमिता ने कहा। फिर वहीं टहल रहे शौमित को अपने पास बुलाकर उससे बात करने लगी। “चलो शौमित बेटा, तुम मेरे कमरे में ही सो जाना। हमलोग आज ढेर सारी बातें करेंगे।”

शौमित ने अपने पिता की आँखों में झाँका, जो उससे नमिता के साथ जाने की अनुमति मांग रहे थे।

“ठीक है, जाओ। पर आंटी को ज्यादा परेशान मत करना।”- सुमित ने कहा, जिसे सुन शौमित के चेहरा खिल उठा।

सुमित को अगली सुबह जल्दी तैयार होने के लिए बोल नमिता शौमित को साथ लिए अपने कमरे की तरफ बढ़ गयी। सुमित भी अपने कमरे में आ गया और बिस्तर पर आते ही नींद ने उसे अपने आगोश में ले लिया।

***

अगले दिन। सुबह के आठ बजे।

सुमित अपने कमरे में गहरी नींद में सोया था जैसे बीती रात मौत से सौदा करके लौटा हो। काफी देर तक किसी के दरवाजा खटखटाने के बाद ही उसकी नींद खुली और भागकर दरवाजा खोला। आँखें मलता हुआ सामने देखा तो सौमित और नमिता उसे घूरते हुए खड़े थे।

“गुड मॉर्निंग!”- सुमित ने जम्हाई लेते हुए कहा।

“गुड मॉर्निंग?? जरा टाइम देखिए क्या हो रहा है! कब से हमदोनों दरवाजा पीटे जा रहे हैं और आप हैं कि घोड़े बेचकर सोए हैं!”- नमिता ने शिकायत भरे लहजे में कहा।…

सोनाझुरी और कबीगुरु (भाग 9) अंतिम भाग – श्वेत कुमार सिन्हा : Moral Stories in Hindi

written by Shwet Kumar Sinha

© SCA Mumbai

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