सोनाझुरी और कबीगुरु (भाग 6) – श्वेत कुमार सिन्हा : Moral Stories in Hindi

“अरे नहीं-नहीं नमिता जी!! ये आप कैसी बातें कर रही हैं! मैं ऐसा-वैसा कुछ भी नहीं सोच रहा! बल्कि आपकी वजह से शौमित के चेहरे पर जो खुशी मैंने आज देखी है, मैं तो उसके बारे में सोच रहा था। मैं कैसे आपका शुक्रिया अदा करूँ, ये मैं नहीं जानता!”- सुमित ने भावुक होकर कहा।

“किसी ने कहा आपको शुक्रिया करने के लिए?? नहीं न…! तो फिर क्यूँ ये सब फालतू की बातें सोचते रहते हैं! चलिए मेरे साथ, यहाँ अकेले बैठे रहेंगे तो उलजलूल बातें फिर से आपके दिमाग में घूमने लगेगी।”- आँखें फैलाकर नमिता ने सुमित से कहा और उसे अपने साथ लेकर स्टॉल की तरफ बढ़ गई, जहां शौमित स्टॉल पर खडा वहां सजे सामानों को निहार रहा था।

“शौमित, चलो अब हमलोग थोड़ा नृत्य-संगीत का आनंद लेते हैं।”– नमिता ने कहा और शौमित का हाथ थामे हाट के दूसरे तरफ बढ़ने लगी, जहां स्थानीय कलाकार बाउल गान पर लोकनृत्य प्रस्तुत कर रहे थे। सभी कलाकार एक-दूसरे का हाथ थाम अपने कदम थिरका रहे थे। उन्हे देख वहां खड़े पर्यटकों के कदम भी थिरकने को मजबूर होते दिखे। तभी नमिता की सहेलियाँ वहाँ आ पहुंची और बिना किसी शक-ओ-शुबह के एक-दूसरे का हाथ थाम नृत्य करने लगी। आशा ने इशारे से पास खड़े नमिता और सुमित को बुलाया तो उन्होने मुस्कुराकर मना कर दिया। पर शौमित आगे बढ़कर उनके समूह में शामिल हो गया और सभी अपने पैर और कमर में तालमेल बिठाकर झूमने लगे।   

बाउल गायक ने अपनी मधुर तान छेड़ रखा था, जिसमें सभी खोए हुए थे।

वने जोदि फुटलो कुसुम,

नेई केनो सेई पाखी नेई केनो

कौन सुदूरेर आकाश होते,

आनबो तारे डाकि ।।

नमिता के साथ खड़ा सुमित कबीगुरु की पंक्तियों में गोते लगा रहा था। इकतारे के साथ लगते ढोलक के थाप और नृतकों के पैरों के घुंघरूँ उसके मन में दबे उद्गार को बाहर लाने पर तुले थे।

नृत्य-संगीत से उबरकर सबने फिर जमकर खरीददारी की। नमिता और सुमित ने भी साथ मिलकर ढेर सारे सामान खरीदे। अभी उनकी ख़रीददारी पूरी भी नहीं हुई थी कि तभी सुमित का मोबाइल घनघनाया। जेब से मोबाइल निकालकर देखा तो यह उसके ऑफिस से वीडियो कोंफेरेंस का मैसेज था, जो मोबाइल के स्क्रीन पर फ्लैश कर रहा था। मुंह बनाते हुए उसने सारी बातें शौमित और पास खड़ी नमिता को बतायी, तो शौमित का खिला चेहरा मुरझा गया क्युंकि हाट से वापस जाने का उसका अभी बिल्कुल भी जी नहीं था।

शौमित को मायूस होता देख नमिता ने उसके कंधे पर हाथ रख उसे दिलासा दिया और सुमित की तरफ देख दृढ़ता से बोली- “हाँ तो ठीक है न….आपकी मीटिंग है तो आप जाइए! मैं हूँ न अभी यहाँ! शौमित मेरे साथ रहेगा!” फिर शौमित के चेहरे पर निगाहें टिकाकर बोली- “क्यों शौमित बेटा! मेरे साथ हाट में घूमने में तुम्हें कोई परेशानी तो नहीं होगी न?” नमिता की बातें सुन शौमित का चेहरा खुशी से खिल उठा और सुमित को आश्वस्त करता हुआ बोला- “पापा, आप जाइए। मैं आंटी के साथ आ जाऊंगा।”

निश्चल मन से सुमित वापस रिसोर्ट की तरफ लौट गया। शौमित को साथ लेकर नमिता और उसकी सहेलियाँ पूरे हाट में काफी देर घूमती रहीं। कभी वे किसी ठेले पर रुककर आलू कावली खाती, तो कभी फूचके का मजा उठाती। हाट में ही चेहरा देखकर उसकी तस्वीर कैनवास पर उतारनेवाला एक माहिर चित्रकार बैठा था, जिससे बोलकर नमिता ने शौमित का स्केच बनवाया, जो शौमित के लिए बिल्कुल जुदा एहसास था। 

वहीं थोड़ी दूर पर लगे टिक्की चाट का एक स्टॉल देखकर शौमित ने उसे खाने की इच्छा जाहिर की तो नमिता उसे लेकर स्टॉल की तरफ बढ़ी। जबकि सभी सहेलियाँ चित्रकार के पास बैठी अपनी तस्वीर उतरवा रही थी।

चाटवाले के पास आकर नमिता ने एक प्लेट चाट बनाने को कहा और वहीं रखे बेंच पर बैठ इंतज़ार करने लगी।

तभी भीड में किसी को देख नमिता के साथ बैठा शौमित उठ खड़ा हुआ और ज़ोर से आवाज़ लगाने लगा। उसकी आवाज़ सुन कुछ लोग उसकी तरफ आते दिखे, जिनमें दो स्त्रियाँ और पंद्रह-सोलह वर्ष की उम्र का एक लड़का था। वे सब शौमित के पास आकर खड़े हो गए और सवालिया निगाहों से उसे और नमिता को घूरने लगे।

शौमित ने नमिता का उन सबसे परिचय कराया। उनलोगों में एक शौमित की माँ परिधि थी, जबकि साथ वाली स्त्री उसकी बड़ी मासी और वह लड़का उसकी मासी का बेटा यानि उसका मौसेरा भाई था।

“तुम इहाँ का कर रहा है जी…. और ओ भी अकेले? केकरा (किसके) साथ आया है?” शौमित की बड़ी मासी ने भौवें तानकर अपने ठेठ अंदाज़ में उसपर सवालों का बौछार करना शुरू कर दिया, जिससे शौमित असहज होता दिखा।

शौमित ने झिझकते हुए कहा– “पापा के साथ आया हूँ। उन्हे जरूरी काम से होटल जाना पड़ा। इसलिए आंटी के साथ घूम रहा था।”

शौमित की बातें सुन उसकी मासी ने भौवें चढ़ाकर नमिता पर अपनी घृणित निगाहें डाली। जबकि परिधि के चेहरे पर व्यंग्यातमक मुस्कान बिखरी थी।

“दरअसल सुमित जी को ऑफिस का एक जरूरी विडियो कॉन्फ्रेंस अटेंड करना था। इसलिए वो रिसोर्ट वापस चले गये और शौमित को मैंने अपने पास रोक लिया।”- नमिता ने उन्हे बताया।

नमिता की बातें सुन परिधि के चेहरे पर कोई भाव नहीं थे और वह शौमित को ऐसे घूर रही थी जैसे उसकी गैरमौजूदगी में शौमित की शारीरिक दशा दिन ब दिन दयनीय होती जा रही हो।

शौमित की बड़ी मासी ने उसे झिड़कते हुए कहा– “का (क्या) जी लड़का, तुम किसके-किसके साथ घूमता रहता है? आईं!! पापा के साथ रहा नहीं जाता!!” उसकी बातें सुन शौमित कुछ बोल न पाया और असहज होकर अपनी नज़रें नीची कर ली।

शौमित की असहजता मिटाते हुए नमिता ने उससे बड़े प्यार से कहा– “चलो बेटा, तुम्हारा टिक्की चाट तैयार है, जल्दी-जल्दी खा लो। फिर हमलोग हाट में बाकी चीजें देखने चलेंगे।” फिर वह उठी और स्टॉल वाले के हाथों से चाट का डोंगा लेकर बेंच पर बैठे शौमित की तरफ बढ़ा दिया। हाथों में डोंगा लिए शौमित सामने वाली बेंच पर बैठी अपनी माँ से नज़रें चुराता दिखा, जिसकी सुर्ख निगाहें उसे घूर रही थी।

शौमित का नमिता के साथ यूं घुलना-मिलना और उसके प्रति उसका अपनापन भरा रवैया उसे जरा भी नहीं भा रहा था। नमिता के हाथों से पकड़े डोंगे से शौमित को टिक्की चाट खाते देख परिधि की त्योरियां चढी थी। वह उठी और आगे बढकर शौमित का हाथ थामते हुए कहा- “चलो शौमित, कोई और तुम्हे का(क्या) मेला घुमाएगा, जो हम घुमा देंगे! चलो हमरा(मेरे) साथ, तुमको जो पसंद होगा ऊ खरीद लेना!” शौमित ने झिझकते हुए माँ की तरेरती आंखों में झांका और ना में सिर हिलाते हुए उससे अपना हाथ छुड़ा लिया।

“बेटा जाओ! देखो, माँ कितना प्यार से तुम्हे बुला रही हैं! तुम्हे इनके साथ जाना चाहिए!” – नमिता ने शौमित के पीठ पर हाथ रखते हुए कहा। पर शौमित ने फिर से गर्दन हिलाकर अपनी अनिच्छा ज़ाहिर कर दी।

दरअसल शौमित को हाट में घुमाने के पीछे परिधि की असली मंशा खुद को सुमित से बेहतर दर्शाने और कुछ पल के लिए ही सही पर वहां बैठी नमिता से शौमित को दूर करने की थी। उसकी तरेरती आँखों में कहीं न कहीं शौमित ने उसकी कुटिल मंशा पढ़ ली थी। माँ की आँखों में अपनेपन का अभाव और प्यार की उपेक्षा देख शौमित को उसके पास जाने की तनिक भी इच्छा न हुई।

एक मित्र की भांति शौमित का सुमित के साथ स्वच्छंद होकर घूमना, जबकि अपनी माँ के सामने खुद को इतना असहज और उपेक्षित महसूस करना – नमिता इन सारी बातों का जीती-जागती गवाह बनी हुई थी।

“लगता है शौमित का आपके साथ काफी अच्छा बने लगा है! पता नहीं क्यूँ, मेरे पास तो ई लड़का आना ही नहीं चाहता! हम भी तो इससे एतना प्यार करते हैं, इसके पापा से भी ज्यादा! और बुरा नहीं मानिए तो एक बात पुछे? आप इसके पापा से बियाह करने वाली हो का(क्या) या ऑलरेडी हो गया?” नमिता पर कटाक्ष करते हुए परिधि ने अपनी भड़ास निकाली। उसकी बातें नमिता को कील जैसी चुभ रही थी। पर उसने जाहिर न होने दिया।

“जी नहीं!! न तो मेरी इसके पापा के साथ शादी हुई है और ना ही आगे ऐसा कोई इरादा है।” दृढ होकर नमिता ने परिधि को दो-टूक जवाब दिया।…

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सोनाझुरी और कबीगुरु (भाग 7) – श्वेत कुमार सिन्हा : Moral Stories in Hindi

written & copyright: Shwet Kumar Sinha

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