सिलाई मशीन – शुभ्रा बैनर्जी : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : पितृपक्ष शुरू हो चुका है।प्रमिला ने बेटे को सामान की लिस्ट बनाकर दे दी अपनी सास से पूछकर।पूजा -पाठ में पारंगत ,प्रमिला की सास बहुत बड़ा सहारा थीं उसके लिए।शादी होकर जब से आई थी प्रमिला,सास को ही पूजाघर में देखा था।अनवरत हर उपवास,व्रत,और उत्सव में बहुत ही सक्रिय रहतीं थीं वो।प्रमिला घर के सारे काम निपटा कर विद्यालय निश्चिंत होकर जा पाती थी।

फूल तोड़ना,पूजा घर साफ करना और पूजा की जिम्मेदारी उन्होंने विगत पच्चीस वर्षों से ले रखी थी। धर्म और साहित्य का अद्भुत ज्ञान था उनके पास।प्रमिला तो उन्हें चिढ़ाकर एनसाइक्लोपीडिया भी कहती थी।के बी सी चल रहा‌ होता तो बच्चे दादी को बगल में बिठाए रखते थे।अपने नाती-नातिन को रामायण और महाभारत की कहानियां इतने सहज और सरल रूप में सुनाया‌ था उन्होंने कि उन्हें एक -एक प्रसंग आज‌ भी याद है।प्रमिला को अपनी इतिहास और भूगोल के ज्ञान से हमेशा ही चकित करतीं थीं वे।

उनका दूसरा बड़ा गुण है ,उनकी याददाश्त।परिवार में रिश्तेदारों के जन्म दिन,शादी की सालगिरह हो या मृत्यु दिवस ,उन्हें कंठस्थ‌ है आज भी।प्रमिला आज भी कायल है उनके इस गुण की।आइये अब चलतें हैं उनके अतिविशिष्ट गुण “सिलाई” की तरफ।शादी के समय लड़का देखने आई बुआ ने प्रमिला को पहले ही बता‌ दिया था कि तेरी सास सिलाई -बुनाई में मास्टर‌ है।

प्रमिला‌ की ऊपर की सांस ऊपर और नीचे की नीचे हो गई थी।प्रमिला को देखने जब वे आईं थीं अपनी जिठानी के साथ ,तभी प्रमिला ने आत्मसमर्पण करते हुए कहा‌ था “मुझे सिलाई बिल्कुल नहीं आती है।शौक भी नहीं है।”उन्होंने मुस्कुरा कर कहा था”और मुझे बच्चों को पढ़ाना‌ नहीं आता।”शादी के बाद से हर रविवार पूरे परिवार के कपड़ों की पेंटिंग पेंटिंग का काम ले रखा था उन्होंने अपने सर। तुरपाई,बटन,सिलाई खुली कोई कमीज़ हो या फॉल पिको करना हो,वे हंसकर तैयार‌ रहतीं थीं।

विधि का विधान था यह या भाग्य की विडंबना,पूजा के लिए फूल तोड़ते हुए ही बुढ़ापे में बुरी तरह गिर गईं वो।हिप फ्रैक्चर हो गया था। बहुत बड़ा ऑपरेशन हुआ उनका ,दूसरे शहर।उसी समय प्रमिला के पति की भी तबीयत बिगड़ी।प्रमिला का बेटा अकेला गया था दादी के साथ ऑपरेशन करवाने।इधर बेटी अपने पापा की देखभाल कर रही थी प्रमिला के साथ।

दादी के कमरे की साफ-सफाई करके बेटी ने नए तरीके से सजा दिया था कमरा।वे अब कम से कम छह-सात महीने बिस्तर पर ही रहने वाली थीं।उनकी जान से प्यारी सिलाई मशीन जो सिर्फ वही चला पाती थीं,बेटी ने उन्हीं के कमरे की आलमारी में रख दिया था। ऑपरेशन करवाकर जब पंद्रह दिन बाद वे लौटीं अपने कमरे में,उनकी नजरें अपनी मशीन को ढूंढ़ रही थी।

प्रश्नवाचक नजरों से जब प्रमिला की तरफ देखा तो वह बोली”मां,अभी तो आप सिलाई कर नहीं पाएंगी, इसलिए आपकी पोती ने आलमारी में रख दिया।उनके चेहरे के भाव देखकर समझ गई थी प्रमिला कि उन्हें अपने कमर की हड्डी टूटने से ज्यादा दुःख, अपनी मशीन को ना देखकर हुआ था।चलने में लाचार वे आलमारी तक जाकर देख भी नहीं पा रहीं थीं,और उनकी आंखों में एक अनकही शिकायत प्रमिला को भीतर तक भेद रही थी।

लगभग पांच महीनों के बाद उन्होंने फिर से चलना शुरू किया ,स्टिक की मदद से(जो उनका नाती लेकर आया था)।चल पाने का संतोष उन्हें तब हुआ जब अपनी मशीन को आलमारी में सकुशल देखा।अब उनका अगला अभियान था ,सिलाई करना।पैर मोड़कर बैठ नहीं सकती थीं,सो प्रमिला से बोलकर एक स्टूल रखवाया ।

कमरे में इतनी कम जगह बच रही थी कि उन्हीं के चलने फिरने में परेशानी आने लगी।फिर से मशीन को आलमारी में रखना पड़ा,और उनकी आंखों में लाचारी के साथ शिकायत भी देखी थी प्रमिला ने।पिछले महीने बड़े चाव से मनुहार करके फिर अपनी सिलाई मशीन को जैसे ही निकलवाया उन्होंने,चौंक कर चिल्ला उठी”बहू!यह तो चल ही नहीं रही,जाम हो गई है।बनवाना पड़ेगा ,नहीं तो जंग खा जाएगी।

“प्रमिला ने अपने बेटे से कहा “बेटा ,दादी का मशीन दुकान में देना पड़ेगा।”काम की व्यस्तता में वह भी भूल जाता था।अभी पिछले‌ हफ्ते ही मां-बेटा जब बाजार गए तो सिलाई की मशीन देखकर उसे याद आ गया और बोला”मां!दादी की मशीन कल याद से मुझे देना। बनवाने दे दूंगा,कब से‌बोल रही हैं ।”

सचमुच अगले दिन कार में दादी की मशीन रखकर नाती,दुकान में दे आया ।उस दिन दादी की आंखों में ख़ुशी की जो चमक प्रमिला ने देखी,उसका मन भर आया था।इतना लगाव अपने शौक की चीज से।आजकल‌ के लोगों में(वह भी शामिल हैं)इतना चाव कहां। पितृपक्ष लगने के पहले मशीन बनकर आ गई थी।प्रमिला ने कहा सास से”मां ,सबसे पहले क्या‌ सिलाई करेंगीं आप?”

बड़े संतोष से उन्होंने कहा”और क्या सिलूंगी?तुम्हारे तीन गाउन जो इधर -उधर से उंघारे हैं,उन्हें पहले सिलूंगीं बाद में जो मेरे लिए पेटीकोट लाई हो ना,उन्हें अपने हिसाब से छोटा कर लूंगी।पितृपक्ष के एक दिन पहले सिलाई मशीन का ट्रायल हुआ।बिना पैर मोड़े टेलर साहिबा ने जब झटके से हांथ मशीन की पैडल घुमाई,लगा वे चांद पर पहुंचने के लिए चंद्रयान उड़ा रहीं हैं।

उनकी खुशी का अंदाजा लगाना प्रमिला‌ के लिए मुश्किल नहीं था।बरसों से सुख -दुख की यही एक साथी थी उनकी।कपड़ों की मरम्मत करके अपने नाती को ढेरों आशीर्वाद देती हुई बोलीं”तेरे दादाजी ने शादी की पहली सालगिरह पर खरीद कर दिया था इसे। जब-जब परिवार पर आर्थिक संकट आया,इस मशीन में कपड़े‌ सिलकर मैंने पैसे कमाए।यह मशीन नहीं रे,तेरे दादाजी का सानिध्य है मेरे लिए।”

उनकी बात सुनकर प्रमिला और बेटा दोनों रो दिए।दादी ने फिर आगे कहा”देखा बहू,आखिर नाती किसका है?एकदम परिपक्व आदमी के पास लेकर गया था मशीन मेरा नाती।कहीं कोई छेड़खानी नहीं किया।बॉक्स में रखा हुआ सामान और बॉबिन जब के तब हैं।मेरे नाती ने अपने दादू को तर्पण दे दिया सही मायने में।आज मुझे मेरी मशीन देकर इसने मुझे भी जीते‌ जी तार दिया।”

प्रमिला अवाक थी,चौरासी साल की महिला के मनोभावों को देखकर।अपने पति की निशानी पाकर आज सासू मां की आंखों से,मन से और चेहरे से सारी शिकायतें जाती रही।

शुभ्रा बैनर्जी

#शिकायत#

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!