“श्यामा की ससुराल “- सरोज माहेश्वरी : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi : तेज बारिश होने के कारण आज कॉलेज की छुट्टी थी….श्यामा घर की बालकनी में बैठी चाय की चुस्की ले रही थी तभी उसने सड़क के उस पार व्हीलचेयर पर जाती हुई एक लड़क़ी को देखा…पैर से लाचार लड़क़ी को देखकर श्यामा अपने अतीत के पन्नों में खो गई और अपनी ही कहानी को शब्दों में पिरो दिया….
      विशाल और वह (श्यामा) एक ही कॉलेज में पढ़ते थे विशाल शहर के प्रमुख व्यवसायी दीनदयाल जी का बेटा था और श्यामा एक मध्यवर्गीय परिवार की साधारण लावण्य लिए हंसमुख स्वभाव की लड़की….साथ पढ़ते पढ़ते दोनों न जाने कब एक दूसर के नजदीक आ गए पता ही न चला। पढ़ने के बाद दोनों ने जीवन साथी बनने का निर्णय किया…दोनों ने अपने अपने परिवारों में बात की…दोनों ओर से ख़ुशी खुशी स्वीकृति मिल गई…
        कॉलेज का आखिरी दिन था। विशाल और श्यामा ने भविष्य के सुनहरे सपने देखते हुए एक दूसरे से विदा ली पर जीवन में नियति दो कदम आगे चलती है।हुआ ऐसा कि कॉलेज से घर  वापस जाते समय एक दुर्घटना में श्यामा का पैर बुरी तरह ज़ख्मी हो गया। अस्पताल में आपरेशऩ किया गया पर पैर को न बचाया जा सका क्योंकि पैर में बुरी तरह से इंफेक्शन फैल गया था…

उसकी तो दुनिया ही बदल गई….सुनहरे सपने पल भर में बिखरते नजर आए… लगभग एक महीने तक श्यामा को अस्पताल में रहना पड़ा… विशाल रोज अस्पताल में उससे मिलने आता। दोनों के शब्द मौन हो गए थे पर विशाल की आँखों में श्यामा के लिए दर्द साफ़ नज़़र आता। वह अधिक से अधिक समय श्यामा के पास रहने की कोशिश करता। उसके दर्द को बांटना चाहता था। उसके प्यार की तड़फ साथ दिखाई देती थी।
          श्यामा को अस्पताल से छुट्टी मिल गई। एक दिन विशाल के पिताजी श्यामा के घर आए और बड़ी विनम्रता से श्यामा को अपने घर की बहू बनाने का प्रस्ताव घर के सदस्यों के सामने  रखा …श्यामा के पिता ने वस्तुस्थिति का एक बार हवाला देते हुए दीनदयाल जी से कहा …महोदय!अब मेरी बेटी दिव्यांग है क्या इस हालत में भी आप, विशाल और परिवार के लोग उसे अपनाएंगे.. दीनदयाल जी बोले…मेरा बेटा विशाल श्यामा को बहुत प्यार करता है।

मानो यह हादसा यदि शादी के बाद होता या मेरे बेटे के साथ होता तो क्या आप छोड़ देते? प्यार आत्मा का मिलन है। शरीर का एक भाग पीड़ित होने से सच्चा प्यार कमजोर नहीं पड़ता और न ही प्यार की पवित्रता कम होती है …. मैं अपनी बहू को इस काबिल बताऊँगा कि वह दुनिया का सामना आसानी से कर सके। बस आप अनुमति दें और शादी की तैयारियां शुरू करें…
            सभी की अनुमति मिलने पर छह महीने बाद का मुहूर्त तय हुआ।

एक साधारण समारोह आयोजित किया गया शादी की सभी रस्में व्हील चेयर पर हुई । ससुराल में गृहप्रवेश के समय सासू मां और छोटी ननद नव्या ने कंधों का सहारा देकर गृहलक्ष्मी का स्वागत किया…बहू के विषय में रिश्तेदार या पड़ोसी कुछ कहते तो सासू माँ ननद ऐसा उतर देतीं कि उनकी बोलती बंद हो जाती।

किसी की आगे बोलने  की हिम्मत न होती। विशाल के लिए तो श्यामा उसकी जान थी… मां,विशाल और नव्या उसका बहुत ध्यान रखते….  दीनदयाल जी ने भारत के सर्वश्रेष्ठ डॉक्टर की मदद से अपनी बहू का अप्राकृतिक पैर लगवाया …सासू माँ हमेशा उसे अपना काम खुद करने के लिए प्रोत्साहित करतीं थीं।

आगे बढ़ने की प्रेरणा देती। कभी भी उसे कमजोर नहीं पड़ने देती उसका मनोबल बढ़ाती, इससे श्यामा के मन में आत्मविश्वास को जड़ें मजबूत होती गईं उसने आगे की पढ़ाई  शुरू कर दी।उसने M.Sc के लिए कालेज में एडमिशन ले लिया। घर का पूरा काम  सासू मां संभालती।

श्यामा को उसकी पढ़ाई पर पूरा ध्यान केंद्रित करने को कहतीं वह अपनी श्यामा को किसी से कमतर नहीं पड़ने देना चाहतीं थीं। Ph.D करने के बाद डिग्री कॉलेज में उसे नौकरी मिल गईं। अपनी योग्यता से कुछ वर्षों में ही वह अपने विभाग की हेड बन गई…..
कुछ सालों बाद एक स्वस्थ बच्ची को मां बनी… अपनी सभी जिम्मेदारियों क़ो निभाने में उसकी दिव्यांगता कहीं भी आड़े नहीं आई …यह सब पति,सास,ससुर,ननद के नि:स्वार्थ प्रेम, प्रोत्साहन, प्रेरणा और सकारात्मक सोच का नतीजा था।
                  श्यामा की ससुराल समाज के लिए आदर्श है। ससुराल के सभी सदस्य़ों ने उसे  शारीरिक, मानसिक, आर्थिक, भावनात्मक रूप से इतना शक्तिशाली बना दिया था कि वह अपनी बेसिक जरूरतों को पूरा करने में सक्षम थी।

श्यामा सोचा रही थी कि आज वह  जिस मुकाम पर खड़ी थी उसका श्रेय उसकी लगन ,कर्मठता के साथ साथ  ससुराल के प्रत्येक  सदस्य को भी जाता है जिन्होंने अपने नि:स्वार्थ प्रेम से सींचकर मुझ जैसे निर्बल पौधे को एक शक्तिशाली वृक्ष बना दिया…

आपको का कहानी कैसी लगी आप की प्रतिक्रिया की अपेक्षा रहेगी….

स्व रचित मौलिक रचना
सरोज माहेश्वरी पुणे ( महाराष्ट्र)
#ससुराल साप्ताहिक प्रतियोगिता    

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