शंका – माता प्रसाद दुबे

अविनाश के देर से घर आने पर उसकी पत्नी रजनी ने उस पर सवालों की बौछार कर दी”आज आपको इतनी देर कहा लग गई.. बिट्टू आपकी राह देखते हुए बिना खाना खाए ही सो गया?”रजनी अविनाश की ओर देखते हुए बोली। अविनाश कुछ देर तक शांत बैठा रहा फिर बोला।”रजनी! मैं कल भी कुछ देर से ही आऊंगा..तुम बिट्टू को समझाकर खाना खिला देना?”अविनाश चिन्तित होते हुए बोला।”क्या हुआ आप इतने परेशान क्यूं है?”रजनी अविनाश के पास बैठते हुए बोली।”रजनी मैंने तुम्हें बताया था..जब हमारी शादी नहीं हुई थी.. मुझे रहने के लिए जिस बुजुर्ग माता जी ने अपने घर पर अपना कमरा दिया था..एक बेटे जैसा मुझसे प्रेम करने वाली उसी बुजुर्ग मां की हालत सही नहीं है..वह बहुत बीमार है?”कहकर अविनाश खामोश हो गया।”क्या उन्हें देखने वाला कोई नहीं है?”रजनी हैरान होते हुए बोली।”है एक बेटी उर्वशी! तुम्हें शायद याद नहीं है..हमारी शादी में मिली थी वह तुमसे..जिसने अपनी माॅ॑ की देखरेख के लिए 38, वर्ष की आयु होने पर भी अब तक शादी नहीं की?”अविनाश गंभीर होते हुए बोला।”तो आप क्या कर सकते है?” रजनी सवालिया लहजे में बोली।”रजनी मुझसे जो हो सकता है वह मैं उनके लिए करूंगा?”अविनाश रजनी की ओर देखते हुए बोला।”चलिए मैं खाना निकालती हूं..अब सुबह सोचिएगा कि आपको क्या करना चाहिए?”कहते हुए रजनी किचन की किचन के अंदर चली गई।

अविनाश दस वर्ष पहले शहर से साठ किलोमीटर दूर कस्बे की तहसील में कार्यरत था..तब उसने उर्वशी की मां जानकी देवी से उनके घर पर एक कमरा किराए पर लिया था..पांच साल तक वहां रहने के बाद उसका तबादला शहर में हों गया था। अविनाश की मां नहीं थी..जानकी देवी के घर बिताए पांच वर्ष में उसे कभी अपनी मां की कमी का एहसास नहीं हुआ.. जानकी देवी की सिर्फ एक ही संतान उनकी बेटी उर्वशी थी..अविनाश उर्वशी को अपनी बड़ी बहन की तरह ही मानता था..चार वर्ष पूर्व ही उसकी शादी रजनी से हुई थी..अपनी शादी में अविनाश उर्वशी और जानकी देवी को अपने साथ अपने गांव लेकर गया था..तीन वर्ष पहले उसके बेटे बिट्टू के जन्म होने के बाद घर परिवार काम की जिम्मेदारियों की वजह से वह जानकी देवी से मिलने नहीं जा सका था।




दिन के दो बज रहे थे..रजनी अपने घर में अपनी पड़ोस की महिलाओं के साथ बातचीत करने में व्यस्त थी। सुबह अविनाश के आफिस जाने के बाद रजनी का दिन आस पड़ोस की महिलाओं के साथ ही बीतता था सभी महिलाएं अपने-अपने किस्से एक दूसरे को सुनाकर ठहाके मारकर हंस रही थी..तभी घर के दरवाजे पर लगी डोर बेल बजने लगी।”कौन हों सकता है इस वक्त?”कहते हुए रजनी दरवाजा खोलने लगी। उसके सामने सुंदर नैन नक्श वाली लगभग 40,वर्ष की एक युवती खड़ी थी।”नमस्ते भाभी!” रजनी को देखकर वह युवती बोली।”जी हां आप कौन.. मैंने पहचाना नहीं?”रजनी उस युवती को गौर से देखते हुए बोली।”आपने मुझे पहचाना नहीं..मेरा नाम उर्वशी है?”वह युवती अपना परिचय देते हुए  बोली।”उर्वशी!”हा याद आया.. आपके यहां ही रहते थे.. बिट्टू के पापा.. उन्होंने बताया था मुझे?”रजनी उर्वशी को अंदर बुलाकर सोफे पर बैठने का इशारा करते हुए बोली।

रजनी की सभी सहेलियां उर्वशी की ओर देख रही थी।”अविनाश भैया! कब तक आएंगे?”उर्वशी सोफे पर बैठते हुए रजनी से बोली।”वे तो शाम को छह सात बजे तक आते हैं?”रजनी उर्वशी को देखते हुए बोली।”ठीक है भाभी! मैं चलती हूं..मैं अविनाश भैया से फोन पर बात कर लूंगी?”कहते हुए रजनी उठकर खड़ी हो गई।”अरे बैठो अभी तो आई हों..मैं चाय बनातीं हूं.. पीकर जाना?”रजनी उर्वशी को रोकते हुए बोली।”नहीं भाभी! मैं अम्मा को अकेले छोड़कर आई हूं..फिर किसी दिन रुकूंगी?”कहते हुए उर्वशी घर से बाहर निकल गई। उर्वशी के बाहर जाते ही कमरे में रजनी के साथ बैठी महिलाएं आपस में कानाफूसी करने लगी।”रजनी!बड़ी अजीब है तुम्हारी मेहमान..दो मिनट भी नहीं रूकी..भाई साहब से फोन में बात कर लेने की बात कहकर तुरंत चली गई..आखिर कौन सी ऐसी बात है..जो सिर्फ भाई साहब से ही करनी है?”कमरे में बैठी हुई एक महिला सवालिया लहजे से रजनी से बोली। उसके ऐसा बोलने के साथ ही अन्य महिलाएं ठहाके मारकर हंसने लगी।”यह तो उनके घर आने पर ही पता चलेगा?”रजनी चिन्तित होती हुई बोली।वे सभी महिलाएं  रजनी से मजाकिया अंदाज में सिर्फ उर्वशी के बारे में ही बातें कर रही थी।




रात के आठ बज रहे थे अविनाश के घर ना आने पर उर्वशी परेशान थी। अविनाश से फोन पर बात करने पर उसने जरूरी काम का हवाला देकर एक घंटे बाद आने की बात कहकर रजनी को काल न करने के लिए कहा..समय बीतता जा रहा था.. बिट्टू गहरी नींद में सो रहा था..रजनी के मन में अनगिनत सवाल उठ रहे थे..रात के बारह बजे अविनाश घर पहुंचा वह बहुत थका हुआ प्रतीत हो रहा था। वह रजनी से बिना कोई बात किए..खाना खाने के लिए मना करके गहरी नींद में सो गया। रजनी के मन में अनगिनत सवाल हिचकोले मार रहे थे..अविनाश कभी भी इस तरह आकर चुपचाप बिना कुछ बात किए..उसके साथ शरारत किए बिना कभी इस तरह आकर चुपचाप सो नहीं गया था। वह समझ चुकी थी कि कोई ऐसी बात जरूर है जिससे अविनाश परेशान हैं..वह रात भर सोचती रही उसकी आंखों से नींद गायब हो गई थी।

सुबह के आठ बज रहे थे.. अविनाश उर्वशी से फोन पर बात कर उसे परेशान ना होने के लिए कह रहा था।”चलिए नाश्ता कर लीजिए?”रजनी कमरे में प्रवेश करती हुई बोली।”रजनी!आज मैंने आफिस से छुट्टी ली है..तुम दो लोगों का खाना बनाकर टिफिन में रख देना?”अविनाश रजनी की ओर देखते हुए बोला।”क्या हुआ आप आफिस क्यूं नहीं जाएंगे?”रजनी सवाल करते हुए बोली।”रजनी!आज माता जी की अस्पताल में कयी जांचें होनी है..मुझे आज वहां रहना जरूरी है.. इसलिए मैंने आज आफिस से छुट्टी लिया है?”अविनाश रजनी को समझाते हुए बोला। अविनाश की बात सुनकर रजनी कुछ नहीं बोली वह चुपचाप किचन की ओर चली गई। कुछ देर बाद अविनाश घर से बाहर निकल चुका था। रजनी को कुछ समझ में नहीं आ रहा था..उसके मन में अनगिनत शंकाओं ने जन्म लेना शुरू कर दिया था। अविनाश कभी भी इतना परेशान नहीं रहता था..वह यही सोच रही थी कि जिनके यहां सिर्फ पांच साल अविनाश किराएदार बनकर रहता था.. उनके लिए उसे अपनी पत्नी के पास बैठने बात करने तक की फुर्सत नहीं थी उसका मन बार-बार उसे कटोच रहा था।




दूसरे दिन भी अविनाश आफिस नहीं गया..रात में देर से आया और टिफिन में दो लोगों का खाना लेकर सुबह जल्दी घर से निकल गया। दोपहर का वक्त था रजनी परेशान थी।तभी उसकी सहेलियों ने घर में प्रवेश किया”रजनी! क्या बात है.. तुम्हारा चेहरा क्यूं उतरा हुआ है?”एक महिला रजनी से चुटकी लेते हुए बोली।”क्या बताऊं.. तुम लोग तो सब कुछ जानती हों.. फिर भी बातें बना रही हों?”रजनी गुस्साते हुए बोली।”रजनी बहन!बुरा न मानो तो एक बात कहूं?”दूसरी महिला रजनी से सहानुभूति जताते हुए बोली।”हा बोलो.. मैं बुरा नहीं मानूंगी?”रजनी उस महिला से बोली।”रजनी! मुझे तुमसे कहना तो नहीं चाहिए..मगर मुझे बात कुछ और ही लगती है?”वह महिला रजनी की ओर देखते हुए बोली।”क्या मतलब.. मैं समझी नहीं तुम क्या कहना चाहती हों?”रजनी हैरान होते हुए बोली।”रजनी!दो दिन से भाई साहब देर रात घर आते हैं..मगर कल रात वह युवती उर्वशी जो भाई साहब से मिलने आई थी..वह जिस तरह भाई साहब के साथ बाइक में बैठकर जा रही थी.. जिससे मुझे बात कुछ और ही लगती है..अब आगे तुम्हें क्या करना है..यह तुम जानो मैंने जो देखा वह तुम्हें बता दिया?”वह महिला रजनी को दिलासा देते हुए बोली।”तुम क्या कहना चाहती हों?”रजनी चिन्तित होते हुए बोली।”कहना क्या है..वह तो साफ दिखाई दे रहा है?”वह महिला मुंह सिकोड़ते हुए बोली।”तुम उर्वशी की बात कर रही हों.. उसकी मां बहुत बीमार है..वह उन्हें भैया कहती हैं?”रजनी उस महिला की ओर देखते हुए बोली।”अरे रजनी! भैया कहती हैं तो क्या हुआ..आज के समय में किसी का भरोसा नहीं है.. मुझे जो कहना था कह दिया..बाद में यह मत ये कहना कि हमने तुम्हें सचेत नहीं किया..आगे तुम्हारी मर्जी.. अच्छा अब हम लोग चलते हैं?”कहते हुए वह दोनों महिलाएं रजनी के घर से बाहर निकल गई।




रजनी के दिलों दिमाग में शक का ज़हर फैल चुका था।उसे अपनी सहेलियों की कही बातें भयभीत कर रही थी। दो दिन से अविनाश के स्वभाव में आया परिवर्तन उसे परेशान कर रहा था। वह क्या करे.. क्या न करें..उसे समझ में नहीं आ रहा था। शंका ने उसे पूरी तरह जकड़ लिया था। आखिरकार उसने अविनाश और उर्वशी के रिश्तों का सच जानने का फैसला कर लिया और अविनाश को काल करके अपनी शंका को जाहिर न करते हुए अस्पताल में भर्ती उर्वशी की मां हाल चाल पूछा और पूरी जानकारी लेकर नन्हे बिट्टू को अपने पड़ोस की सहेली के घर छोड़कर चुपचाप अस्पताल जाकर सच्चाई जानने का निर्णय किया। रात के आठ बज रहे थे.. रजनी अस्पताल पहुंच चुकी थी..गेट के अंदर प्रवेश करते ही सामने रिसेप्शन में अधेड़ उम्र की महिला बैठी हुई थी। रजनी उसके पास जाकर बोली।”नमस्ते मैम!उस महिला ने स्वीकृति में सिर हिला दिया”मैम मुझे जानकी देवी जी से मिलना है?”रजनी उस महिला से निवेदन करते हुए बोली।”जानकी देवी!उनका तो आज आपरेशन हुआ है..आप कौन हैं उनकी?”वह महिला रजनी से सवाल करती हुई बोली।”मैं उनके साथ जो अविनाश जी हैं.. मैं उनकी पत्नी हूं?”रजनी अपना परिचय देते हुए बोली।”ओह आप अविनाश की पत्नी हैं..आप बड़ी किस्मतवाली है..जो आपको अविनाश जैसे अच्छे इंसान की पत्नी बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है?”वह महिला रजनी को सोफे पर बैठने का इशारा करते हुए बोली। “जी मैं उनसे मिलना चाहती हूं?”रजनी उस महिला से आदरपूर्वक बोली।”देखिए अविनाश जी कुछ दवाइयां लाने बाहर गए हुए हैं..मरीज के पास उनकी बड़ी बहन.. आप की ननद मौजूद हैं..आप चाहें तो वहां जाकर उनसे मिल सकती है..मगर कल सुबह तक आप वहां न ही जाए तो मरीज के लिए ज्यादा अच्छा होगा..अभी वे होश में नहीं है?”वह महिला रजनी को समझाते हुए बोली। रजनी उस महिला की बात सुनकर कुछ देर तक बुत बनकर खड़ी रही अविनाश की बड़ी बहन के रूप में उर्वशी के बारे में कही गई बातों ने रजनी को झकझोर कर रख दिया”आप पहली बार आई है..आप पहले क्यूं नहीं आई.. आप की ननद बहुत ही अच्छे स्वभाव की हैं..उसने तो हमें भी सोचने पर मजबूर कर दिया..जिस हालत में वह अपनी मां को लेकर यहां आई थी..अगर उसका छोटा भाई आपका पति उसके साथ न होता तो जानकी देवी की जान बचाना मुश्किल होता?”वह महिला रजनी की ओर देखते हुए बोली।यह सब सुनकर रजनी की आंखों से आंसू छलकने लगे उसकी शंका ने उसे कितना गलत साबित कर दिया था..वह खुद को लज्जित महसूस कर रही थी।”आप कहें तो मैं आपकी ननद को यही बुला लेती हूं..आप रोइये नहीं..अब माता जी की हालत ठीक है?”वह महिला रजनी को सत्वना देते हुए बोली।”नहीं मैम.. उर्वशी को यहां मत बुलाइये..उसे माता जी के पास ही रहने दें?”रजनी उस महिला से हाथ जोड़कर विनती करती हुई बोली।”ठीक है.. जैसा आप कहें?”वह महिला बोली।”मैम! आपसे एक और विनती है.. मेरे पति और ननद को मेरे यहां आने के बारे में न बताएं?”रजनी आंखों से आंसू टपकाते हुए उस महिला से बोली।वह महिला एकटक रजनी की ओर देखती रही फिर बोली।”ठीक है?”रजनी ने चैन की सास ली”मैम!मैं कल अपने पति के साथ ही आऊंगी..कल तक माता जी को होश भी आ जाएगा?”रजनी एक बार फिर उस महिला से हाथ जोड़कर विनती करते हुए बोली।”ठीक है..आप निश्चित होकर घर जाइए.. मैं आपके आने के बारे में उन्हें नहीं बताऊंगी?”वह महिला रजनी को समझाते हुए बोली। रजनी उस महिला से आदरपूर्वक सम्मान करने के साथ ही अस्पताल से बाहर निकल गई।




रात के दस बज रहे थे..रजनी अपनी गलतियों पर पश्चाताप करती हुई फूट-फूट कर रो रही थी। उसे खुद से घृणा महसूस हो रही थी। जो उसने अपनी सहेलियों के भड़कावे में आकर अविनाश और उर्वशी के पवित्र रिश्ते पर शंका भरी घिनौनी सोच को अपने मन में उपजने दिया..वह किस मुंह से अविनाश का सामना करेगी उसके चेहरे पर उसकी गंदी सोच की परत दिखाई दे रही थी। उसी समय डोर बेल बज उठी.. दरवाजा खोलते ही सामने अविनाश को देखकर रजनी उससे लिपटकर फूट-फूट कर रोने लगी।”रजनी! क्या हुआ क्यूं रो रही हो?”अविनाश परेशान होता हुआ बोला।”आप मुझे माफ़ कर दीजिए..मेरा गुनाह माफ़ी योग्य नहीं है..आप मुझे मारिए.. मुझे सजा दीजिए..मेरी शंका में डूबी गंदी सोच के लिए..मगर मुझे माफ़ कर दीजिए?”कहते हुए रजनी लगातार रोती जा रही थी।”अरे हुआ क्या है.. मुझे बताओ तो सही?”अविनाश चिन्तित होते हुए बोला। रजनी ने सारी बातें बिना संकोच किए अविनाश से कहते हुए हाथ जोड़कर एक मुजरिम की तरह अविनाश के सामने खड़ी थी।”हे भगवान! रजनी तुम्हारे दिमाग में ऐसा ख्याल आया भी कैसे.. उर्वशी! मेरी बड़ी दीदी है..उसने और माता जी ने मुझे हर वो प्रेम सम्मान दिया जो एक बड़ी बहन का छोटे भाई के लिए..और जो एक मां का अपने बेटे के लिए?”कहकर अविनाश खामोश हो गया।”आपने मुझे माफ़ किया की नहीं..मैं आज के बाद किसी को अपने घर नहीं बुलाऊंगी..कभी आपको शिकायत का मौक़ा नहीं दूंगी?”कहते हुए रजनी फिर से रोने लगी।”रजनी! तुम रोना बंद करों मैंने तुम्हें माफ़ कर दिया है..माफी तो तुम्हें उर्वशी दीदी से मांगनी चाहिए..जो तुम्हें और बिट्टू को अकेले छोड़कर मेरे अस्पताल जाने पर तुम लोगों की चिंता करती रहती है?”अविनाश गहरी सास लेते हुए बोला।”मैं उर्वशी दीदी!के पैरों में गिरकर माफी मांगूंगी..वे जरूर मुझे माफ़ कर देंगी?”रजनी अविनाश के आगे गिड़गिड़ाते हुए बोली।”इसकी कोई जरूरत नहीं है.. उर्वशी दीदी तो ऐसा कभी सोच भी नहीं सकती.. बल्कि तुम्हारे माफ़ी मांगने पर उन्हें दुख होगा?”अविनाश रजनी को समझाते हुए बोला।”तो मैं क्या करूं मुझे खुद से नफरत हो रही है?”रजनी शांत होते हुए बोली।”रजनी तुम कुछ मत करो..जो हुआ अच्छा ही हुआ.. शंका का कोई समाधान नहीं है..बस तुम रोना बंद करके हंस कर दिखाओ..बस यही तुम्हारी सजा है.. और कल सुबह तुम और बिट्टू मेरे साथ उर्वशी दीदी और माता जी से मिलने अस्पताल चलोगे?”अविनाश हंसते हुए बोला। रजनी एकटक अविनाश की ओर देखती रही फिर चेहरे पर मुस्कान बिखेरती हुई अविनाश की बाहों में समा गई।

#माफी 

माता प्रसाद दुबे

मौलिक स्वरचित अप्रकाशित कहानी लखनऊ

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!