कैसे माफी दे दूँ? – उमा वर्मा

 मै नेहा,शादी हुए छः महीने ही हुए हैं ।अपने ससुराल के बारे मे बहुत कुछ जान चुकी हूँ इतने दिन में ।सासूमा बहुत सीधी सादी थी ।शादी तय हुई तो घर वालों को रिशता पसंद नहीं आया ।कहा गया कि लड़की कोई खास पढ़ी लिखी नहीं है, बहुत साधारण रहन सहन है, कोई तरीका नहीं है ।बहुत छोटे लोग हैं,

हमारे बराबर के नहीं है ।रिशता कैसे हो सकता है ।लेकिन मेरे पति को मै पसंद थी।और बेटे की पसंद हो तो भला माँ को कैसे एतराज हो सकता है ।बहरहाल शादी धूम  धाम से हो गई ।लेन देन में शिकवा शिकायत भी हुई ।मै ससुराल आ गई ।सासूमा ने खुश होकर गले लगा लिया ।

मम्मी जी प्यार करने वाली थी तो बाकी लोगों की मुझे परवाह नहीं थी।पन्द्रह दिन मैं ससुराल में रही।बहुत सारी बातें सुनने में आयी।कि दादी माँ बहुत कड़ी हैं ।मैंने महसूस किया कि वह हमेशा मम्मी जी को नीचा दिखाने का कोई कसर नहीं छोड़ती ।समय पर नाशता, खाना,

सेवा संभाल सब कुछ घड़ी की नोक पर था ।बीच बीच में उनके मायके वालों की बुराइयों के ताने उलाहना देती रहती ।” अरे तुम्हारे माँ बाप ने तो कुछ सिखाया नहीं, कुछ दिया नहीं, न जाने मेरे बेटे के छाती पर कबतक मूँग दलती रहोगी?” उनके खाने के लिए मम्मी जी फल दूध खजूर  काजू बादाम हमेशा लाती रहती ।

फिर भी दादी का पारा सातवें आसमान पर रहता ।जरा सी देर होने पर सीधे थाली फेंक देती।पापा जी तो बहुत पहले ही चले गये थे दुनिया से ।मम्मी ने उनके जाने के बाद बैंक में नौकरी ज्वाइन कर ली थी ।दादाजी तो थे लेकिन दादी के सामने उनकी चलती नहीं थी।

यह सब बात थोड़ी मम्मी जी से और कुछ रिश्ते दारो से मुझे पता चली।मम्मी जी ने बहुत मेहनत की अपने बेटे को पालने में ।पापा जी के खत्म हो जाने पर वह मम्मी जी को ही दोषी ठहरा देती ” इसी के भाग्य से मेरा बेटा चला गया ।” दादी ने मम्मी जी को गांव भेज दिया था ।”

वही रहो,और अपने खाने पीने का इन्तजाम करो” मेरा बेटा चला गया तो अब तुम से कोई सरोकार नहीं है मेरा।मम्मी जी का ग्रामीण बैंक में नौकरी था और नजदीक ही था तो परेशानी बहुत नहीं थी लेकिन फिर भी एक बच्चे को लेकर रहना, उसकी शिक्षा वगैरह की चिंता तो थी ही ।




गांव के ही रघु काका मम्मी जी को सहायता देने के लिए तैयार रहते ।उनके ही मदद से मेरे पति का अच्छे स्कूल में दाखिला हो गया ।और पढ़ाई ठीक ढंग से चलने लगी थी ।

खाली समय में मम्मी टयूशन पढ़ाने लगी थी ।पैसे की दिक्कत नहीं थी।इसी तरह आगे बढ़ने की तैयारी होने लगी और मेरे पति इन्जीनियर बन गये।और मुम्बई में एक कम्पनी में ज्वाइन कर ली थी ।और फिर हमारी शादी हो गई ।शादी शहर वाले घर से दादाजी के कहने पर हुई ।

यहाँ आने पर मम्मी जी का अपमान मुझे देखा नहीं जाता ।लेकिन मै नयी दुलहन थी ,क्या कर सकती थी ।लेकिन मन में ठान लिया कि दादी जी को कभी माफी नहीं दे सकती मै ।

इतना अत्याचार? मम्मी जी सहती कैसे हैं? और क्यो सहती है ? दादाजी के कमाई पर मम्मी जी का भी तो हक था ।फिर भी बेटे को पढ़ाने के लिए खुद मेहनत करती रही ।

पंद्रह दिन के बाद मै भी अपने पति के साथ मुम्बई चली गई ।मम्मी जी को चलने के लिए कहा तो उनका जवाब था ” अभी तो शादी वाले घर की लेन देन बाकी है ।पूरा हिसाब किताब बाकी है ” मम्मी जी से आने का वादा कर के हम आ गए ।एक महीने के बाद मम्मी जी भी हमारे पास आ गयी ।

अब उनहोंने कहा ” मै खुल कर साँस ले सकती हूँ ” फिर वे जो मन में आता पहनती, जो चाहती, बनाती, खाती।खूब घूमने जाना चाहती ।हम भी मम्मी जी को पूरा सहयोग करते ।दो महीने के बाद दादी जी की तबियत बिगड़ने पर मम्मी जी को वापस जाना पड़ा ।बुझे मन से उनको रवाना किया ।

वह जाना नहीं चाहती थी ।लेकिन दुनिया दारी और अपनी जिम्मेदारी निभाने के लिए जाना जरूरी हो गया था ।उनकी सेवा से दादीमा जल्दी ही ठीक हो गई ।और फिर अपने रवैये पर आ गई ।फिर पहले जैसा ही उनका व्यवहार हो गया मम्मी जी के प्रति ।और एक दिन मालूम हुआ मम्मी जी नहीं रही ।

यह अचानक? आखिर हुआ क्या था उन्हे? कुछ समझ में नहीं आ रहा था ।हम दोनों घर आ गये।उनका क्रिया कर्म जो करना था ।सब कुछ शान्ती पूर्वक निबट गया ।परिवार में बहुत सारे लोग जुटे ।कुछ ने सलाह दी ” अपने सास जैसा मत बन जाना ” ।

घर खाली खाली सा  हो गया ।मन में सोचती ” आखिर मम्मी जी इतना सहती क्यों थी?” मै दादी को कभी माफी नहीं दे सकती ।न जाने दादी जी किस मिट्टी की बनी थी ।शान्त रहना उनहोंने जाना ही नहीं था ।




हम एक महीने के लिए आये थे ।अब दादी जी मुझ पर अकारण गुस्सा हो जाती ।एक दिन खाना बनने में जरा देर क्या हुई उनहोंने पूरे बने हुए खाने को बाहर फेंक दिया ” अब क्या खायें?

खाने का समय है? कोई तरीका ही नहीं जानती यह लड़की ।जैसी सास थी वैसी ही बहू है । मैंने भी पलट कर जवाब दिया ” दादी जी, आपने बहुत जुल्म किया था मम्मी जी पर ।बहुत सहती रही थी वह ।मै नहीं सह सकती आपकी यह तानाशाही ।मम्मी जी आपके जुल्म से हार गई थी ।

दुनिया से चली गई ।मै इस बात के लिए आपको कभी माफी नहीं दे सकती ।आपको पसंद आये या नहीं मै अन्याय नहीं होने दूँगी ” दादी जी अवाक मेरा मुँह देख कर रोने लगी ।”

हाँ बेटा मै तुम लोगों को बहुत प्यार करती हूँ, लेकिन बचपन से माँ का प्यार नहीं मिला ।माँ सौतेली थी हर बात में मारना पीटना  शुरू कर देती ।पिता भी माँ के कहने में रहते ।

मै असुरक्षा की भावना से घिर गयी ।हर आदमी मुझे अपना दुश्मन नजर आता ।और मै सब को दबा कर रखने वाली बन गई ।मेरी बहू बहुत नेक थी।मै ही उसको समझ नहीं पाई ।

वह बेचारी दुनिया से मुक्त हो गई ।मुझे माफ कर देना बेटा ।दादी जी का हृदय परिवर्तन हो चुका था ।लेकिन मन का क्या करें? मम्मी जी के चले जाने का दर्द बहुत था ।शाम का टिकट मिला है ।दादी को साथ लेकर मुम्बई के लिए ।

उमा वर्मा, नोएडा ।स्वरचित, और अप्रकाशित ।

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