Moral stories in hindi : मीतू की बड़ी बड़ी हिरणी जैसी आंखे घुटने से लंबे काले -काले बाल …गोरा चमकता रंग …चुलबुलापन ने जीतू का दिल जीत लिया।
कौन किसे कब भा जायेगा… किसकी जोड़ी किसके साथ बनेगी यह देव ही जान सकता है।
वह रिश्ते की भाभी का खुशामद करने लगा, “भाभी यह कौन है? “
“मेरी सहेली की छोटी बहन मीतू है! “
फिर तो वह भाभी के पीछे ही पड़ गया, “एकबार मिलना चाहता हूँ। “
“किसलिये “!सीधा सवाल।
फिर सब होते -हवाते बात शादी तक जा पहुंची। इतना सुदर्शन कमासुत दामाद घर-परिवार पाकर साधारण हैसियत वाले मीतू के माता-पिता जल्दी ही मान गये।
फिर क्या चट मंगनी पट व्याह। नये गहने-कपड़े में सजी-संवरी मीतू ससुराल पहुंची। मन में खुशियों के साथ-साथ ससुराल के प्रति आशंका भी …
सहेलियां कहती ससुराल एक यातनागृह से कम नहीं होता। तब मीतू घबडा़कर सोचती मेरे ससुराल के लोग कैसे होंगे? मुझसे कैसा वर्ताव करेंगे। ढोल-नगाडे़ परिछावन के गीत से मीतू का शानदार स्वागत हुआ। धीर-गंभीर ससुर… नाप-तौलकर बोलने वाली सासुमां… घर के सदस्य भी अपने आप में मगन और पतिदेव …रात के साथी …साथ जीने-मरने की कसमें खाते… चांद-तारे तोड़कर लाने का वादा करते किंतु हकीकत में सबकी जरूरतें पूरी करने के बाद ही उसका नंबर आता।
दिन बीतने लगे, “मीतू एक कप चाय भिजवाना “ससुर जी आवाज लगाते।
“घर में मेहमान आने वाले हैं उनके खाने-पीने बिदाई का इंतजाम करनी है “सासुमां फरमान जारी करती।
“भाभी मेरे ड्रेस में आयरन नहीं किया… मेरा पीला दुपट्टा ढूंढने में मेरी मदद करो “समवयस्क ननद झुंझलाती।
“भाभी, कोई बढिया सा चटपटा नाश्ता मेरे कमरे में भिजवाना… मेरे तीन-चार दोस्त आये हुये हैं ” मस्तमौला देवर दबे जुबान से चिरौरी करता।
और प्यारा पति पत्नी का संपूर्ण समर्पण चाहता।
भोली मीतू को कोई शिकायत नहीं थी बल्कि सभी का अपने उपर निर्भरता उसे सुकून ही देता।
जब सास-ससुर दुसरों से कहते, “बेटे ने हीरा ढूंढा है… आज के युग में इतनी मुस्तैद सबका ख्याल रखने वाली बहू कहाँ मिलती है ” तब मीतू को हार्दिक खुशी मिलती।
जब देवर-ननद अपने दोस्तों से उसका परिचय कराते. “मेरी सर्वगुण संपन्न भाभी से मिलो… पूरे घर की रौनक इन्हीं से है”तब वह शर्म से पानी- पानी हो जाती। मन ही मन सोचती, “बेकार ही लोग ससुराल को बदनाम करते हैं। “
…और पति… परिवार संतुष्ट उसकी पसंद से तो फिर वह अपनी प्रेयसी पत्नी को पलकों पर बिठाये या दिल में उसकी मर्जी।
ऐसे में मीतू के मां का फोन और वही उलाहने, “तू भुल गई हमलोगों को समृद्ध ससुराल पाकर… वहाँ नौकर-चाकर होंगे तब भी तुम्हें हमसे बात करने की फुरसत नहीं मिलती। धन दौलत ने तुम्हें हमसे दूर कर दिया। “
मां का अनर्गल प्रलाप सुन मीतू क्षणभर के लिए किंकर्तव्यविमूढ हो गई। रोज ही बात करती है अपने माता-पिता से … हाँ थोड़ी देर ही… जब कोई दिक्कत ही नहीं है तब शिकायत क्या करे।
वह संयमित होकर बोली, ” मेरी प्यारी मां… अब मैं ससुराल में हूं और यहाँ के लोग मेरा बहुत ख्याल रखते हैं। एक बार आप यहाँ आकर देख लीजिये। “
और गुनगुनाने लगी, “ससुराल गेंदा फूल… “!
सर्वाधिकार सुरक्षित मौलिक रचना -डाॅ उर्मिला सिन्हा ©®