परिवर्तन – ममता भारद्वाज : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi : वसुधा एक  संयुक्त , संपन्न पर रूढ़िवादी परिवार में पली बढ़ी हुई हैं। घर में हमेशा लडको और लड़कियों में भेदभाव किया जता रहा हैं। लड़कियों को अपनी पसंद की शिक्षा का भी अधिकार नहीं था।उन्हे शिक्षित करने का बस एक ही मकसद था कि उन्हें विवाह के लिए अच्छा लड़का और ससुराल मिल जाए।

शिक्षा भी उन्हे दूरस्थ शिक्षा प्रणाली से दिलाई जाती है ताकि लड़कियों को घर से बाहर न जाने पड़े।जबकि इसके विपरित लडको को मनपसंद कॉलेज और विषय चुनने का पूरा अधिकार। घर में भाभियों पर भी बहुत पाबंदी थी।उन्हे अपनी पसंद से खाने , पहनने का भी अधिकार नही था।सारा दिन पल्लू सिर पर रखकर काम करती रहतीं ।

वसुधा ने बचपन से मां औरचाची को यही कहते सुना कि लड़कियों को पढ़ने की कोई जरूरत नहीं है , घर के काम अच्छे से आने चाहिए। ससुराल में वही काम आते हैं। वहां अपनी सब इच्छा और सपने मन में ही दबाकर रखने चाहिए।

 ऐसे परिवेश में पली वसुधा को आज लड़के वाले देखने आने वाले है परंतु उसके मन में कोई उत्साह नहीं था बल्कि बहुत डर और मायूसी थी।ठीक समय पर लड़के वाले आते हैं। देखने में बहुत ही सुंदर वसुधा को देखकर अभय अपने माता पिता से रिश्ते की सहमति दिखाता है। उसके माता पिता को भी वह बहुत पसंद आती हैं।विवाह की तारीख एक महीने बाद की निश्चित की जाती हैं।

 नियत समय पर वसुधा दुल्हन बनकर ससुराल आती है। जहां सब उसका बहुत प्रेम और सम्मान से स्वागत करते हैं। उसकी सास किरण सारी रस्में बहुत ही प्रसन्न होकर करवाती हैं ,उसके बाद किरण कहती हैं कि तुम थक गई होगी तो अपने कमरे मे आराम करो और ये भारी कपड़े और गहने बदल कर कोई आरामदायक सलवार सूट पहन लो ।

मैने तुम्हारे लिए कुछ सलवार सूट बनवाए हैं जो तुम्हारे कमरे मे रखे हैं जो पसंद हो पहन लो ,ये सब सुनकर वसुधा को अपने कानो पर विश्वास नहीं हुआ क्योंकि उसके मायके में तो उसने अपनी मां चाची और भाभियों को केवल हमेशा सारी पहनते देखा था। वसुधा मन ही मन बहुत खुश थी।

अगली सुबह वो जल्दी उठकर सारी पहनकर पल्लू सिर पर रख कर कमरे से बाहर आई तो सास किरण  बैठी हुई चाय पी रही थी उन्होंने  कहा कि बेटा इतनी जल्दी उठने की क्या आवश्यकता थी, शादी की तैयारी में थक गई होगी तो आराम करना चाहिए। अब तुम्हारा अपना घर है इसलिए किसी भी औपचारिकता की कोई जरूरत नहीं है, जैसे तुम्हारा मन करे वैसे रहो ।

मैं तुम्हे अपनी बेटी बनाकर लाई हूं। हम मां बेटी मिलकर बहुत मजे करेंगे। बेटी की जगह जो इस घर में खाली थी वो तुमने भर दी है। तुम चाहो तो आगे पढ़कर अपनी पसंद का कार्यक्षेत्र चुन सकती हो । हमारा पूरा सहयोग रहेगा परंतु कोई भी दवाब नही रहेगा। तुम हमारे लिए अभय से कम नहीं हो।उनकी बाते सुनकर वसुधा के ससुर और पति भी बाहर आ गए।

सबने मिलकर बैठकर चाय का आनंद लिया।ऐसी ससुराल देख कर वसुधा ने अंपने भाग्य को सराहा और मन ही मन भगवान को धन्यवाद किया। ससुराल का जो चित्र उसके मन पर अंकित था वो उसे धूमिल होता नजर आ रहा था।

   विवाह केबाद जब वह मायके गई तो अपने घर में अपने ससुराल वालो के उत्कृष्ट और सकारात्मक विचारों के बारे में बताया तो सबको बहुत अच्छा लगा ।उसके घर वालो ने भी बदलने का निश्चय किया। 

  ससुराल हमेशा हर स्त्री के लिए बंधन नहीं होती है बल्कि कुछ के लिए तो वह एक सुखद परिवर्तन होता है।उसके विचारों और मन को नई दिशा मिलती हैं जो स्त्री के लिए नए जन्म के बराबर होता है।

  #ससुराल

ममता भारद्वाज

गाजियाबाद

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