“बहुत-बहुत बधाई हो,रिया आपको। यह आपका पहला चेक है। पूछना तो ठीक नहीं है लेकिन आप मेरी बेटी जैसी हैं…!
मैं यह जान सकता हूं कि आप अपनी पहली सैलरी से क्या करेंगी?”जिस कंपनी में रिया नौकरी करने आई थी वहां का एच आर हरमेश बोला।
“थैंक यू सो मच सर इस चेक के लिए। आपके ही रिकमेंडेशन पर मेरी यह नौकरी लगी थी। मैं आपका यह अहसान कभी भी नहीं भूल पाऊंगी।” रिया मुस्कुराते हुए बोली।
“कैसी बातें कर रही है आप?आप खुद टैलेंटेड है। मैं तो बस आपकी सीवी ऊपर फॉरवर्ड कर दी थी।
सिलेक्शन आपने अपनी मेहनत,अपने बूते पर किया है। बहुत-बहुत बधाई हो!
आपकी तरक्की यूं ही बढ़ती जाए।” हरमेश मुस्कुराते हुए बोला।
“थैंक यू सर! हां तो आप यह पूछ रहे थे कि इस पहली सैलरी से मैं क्या करूंगी?
… सर मैं अपने पुराने दिनों को याद करूंगी…जब हम सब बच्चे ऐसे ही पहली तारीख का इंतजार करते थे।”
“ मतलब …?”सिर खुजलाते हुए हरमेश ने पूछा।
“फिर कभी बताऊंगी, मुस्कुराते हुए रिया ने कहा।
वह चेक लेकर चली गई ।
हरमेश रिया को देखता रहा फिर उसने अपने कलिग रितेश से बोला
“रिया कितनी प्यारी बच्ची है। हमेशा खुश रहती है।”
“तुम्हें पता है कि रिया एक अनाथ लड़की है!”रितेश ने उसे बताया।
“ क्या…?हरमेश चौंक गया।यह क्या बोल रहे हो तुम?”
“हां हरमेश,इसे और कई और बच्चों की जिम्मेदारी अग्रवाल दंपति ने लिया था।यह आशा ज्योति केंद्र में पली बढ़ी है।
यह बच्ची बहुत ही ज्यादा कुशाग्र थी। देखो… आज देखो इतनी बड़ी कंपनी में नौकरी कर रही है।”
“हे प्रभु,… रिया अनाथ बच्ची है…! अब तो मुझे इसके लिए बहुत ज्यादा ही सिंपैथी फील हो रहा है।” हरमेश बोला।
दूसरे दिन रिया ऑफिस आई तो हरमेश ने उससे पूछा
“रिया, आपने अपनी सैलरी का क्या किया? आपने बताया नहीं।”
“अभी कुछ किया नहीं है।अब करूंगी। कल संडे है ना आप मेरे साथ चल सकते हैं।”
“कहाँ?”
“आशा ज्योति केंद्र में।”
“ वहां आप क्या करेंगी?”
“ अपने पुराने दिनों को याद करूंगी। आपको नहीं पता… !,रिया की आंखों में आंसू आ गए।
दूसरे दिन हरमेश सुबह ही आशा ज्योति केंद्र पहुंच चुका था।
वह बेसब्री से रिया का इंतजार कर रहा था। तभी सामने एक ऑटो आकर रुका और उसमें से रिया उतरी। उसने बड़े-बड़े कई पैकेट ऑटो वाले की मदद से उतारे और अंदर जाने लगी।
उसे देखते ही बच्चों की भीड़ वहां आकर उससे लिपट गई।
सब बच्चे शोर कर रहे थे
“ रिया दीदी, मेरे लिए क्या लाई हो…!! मेरे लिए क्या लाई हो…!!”
“ रुको रुको,सबके लिए है। मैं गिन कर लाई हूं।” एक-एक डिब्बा उसने सारे बच्चों में बांट दिया।
डिब्बे खोलने के बाद बच्चों के चेहरे पर मुस्कान और खिलखिलाहट फैल गई।
वह सभी के लिए अच्छा नाश्ता पैक कराकर लाई थी।
सभी बच्चे एक किनारे बैठकर खाने लगे। उसने उन बच्चों से कहा
“तुम सबके लिए और भी चीज हैं मेरे पास।”
“ क्या दीदी?”
उसने स्टेशनरी के पैकेट निकाल कर सभी बच्चों में बांट दिए और फिर आशा ज्योति की संचालिका के हाथ में 15,000 रुपये का चेक देते हुए कहा
“यह बच्चों के स्कूल की फीस के लिए है।” आशा ज्योति की संचालिका भावना जी मुस्कुराते हुए बोली
“ बोलना तो नहीं चाहती हूं पर थैंक यू सो मच रिया।”
“कैसी बातें कर रही है मैम आप…यह तो मेरा फर्ज है।
हरमेश वही रिसेप्शन में बैठा सब कुछ देख रहा था ।
भावना जी हरमेश को जानती थी। उन्होंने रिया का परिचय हरमेश से कराते हुए कहा “हरमेश जी इसी बच्ची के लिए मैंने आपको रिकमेंड किया था…!
यह जितनी पढ़ाई में तेज थी उतनी ही सहृदय और दयालु है।
आज इस ऊंचाई में पहुंचकर भी इसने अपना पुराना समय नहीं भूला है।इसी आशा ज्योति से ही या पलकर यहां तक पहुंची है।”
रहमेश को देखकर रिया ने मुस्कुराते हुए कहा
“सर आपको तो ताजुब होगा कि मैं एक अनाथ लड़की हूं और यही की पली हुई हूं। इन्हीं लोगों ने मुझे पाला पोसा और बड़ा किया है।
जब मैं और मेरे सारे दोस्त छोटे थे तब हम लोग इसी तरह पहली तारीख का इंतजार करते थे कि लोग आकर हमें मिठाई चॉकलेट या कुछ भी दे।
हमें इंतजार रहता था। अब जब मैंने किसी मुकाम को हासिल कर लिया है तो मेरा यह फर्ज है कि अपने छोटे भाई बहनों की खुशियों का ध्यान रखूं।”
हरमेश की आंखों में आंसू आ गए।
उसने कहा
“तुम्हारे जैसी बिटिया तो भगवान हर किसी को दे और बिटिया आज से अपने आप को अनाथ मत कहना। मैं हूं ना… !
आज से मुझे सर नहीं पापा बोलोगी।”
हरमेश रिया के सिर पर अपना हाथ रखते हुए कहा।
**
प्रेषिका–सीमा प्रियदर्शिनी सहाय