समर्पण- संगीता श्रीवास्तव : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi: शादी की उम्र हो गई थी रीतिमा की। उसके मां -पापा शादी के लिए लड़का देख रहे थे लेकिन मन मुताबिक लड़का मिल नहीं रहा था। अखबार के विवाह विज्ञापन में भी लड़के देखा करते थे रीतिमा के पापा। अखबार में विवाह विज्ञापन में एक लड़का पसंद आया। उन्होंने अपनी पत्नी से कहा,”देखो रीतिमा की मां, बहुत ढूंढने पर एक लड़का पसंद आया है। यदि लड़के वाले को हमारी बेटी पसंद आ गई तो अगले नवंबर तक उसकी शादी कर ही देंगे।

तुम एक बार इस संबंध में रीतिमा से बात कर लेना।”अखबार पत्नी को पकड़ा वह ऑफिस चले गए। मां को भी वह लड़का पसंद आ गया था। मां ने रीतिमा को वह विज्ञापन दिखाया और उसकी मर्जी जानना चाहा। रीतिमा उस लड़के का बायोडाटा देख ही रही थी तभी उसकी नजर विज्ञापन में एक तरफ दो मासूम बच्चों के साथ उसके पिता की  फोटो थी। लिखा था -उम्र 35 साल, सरकारी नौकरी

            दो बच्चों का पिता

          ‌  बेटा 3 साल का, बेटी 4 माह

            तलाकशुदा या विधवा संपर्क करें।

रीतिमा के मुंह से अनायास निकल गया,”इतनी प्यारी, मासूम, बिन मां की बच्ची!”उसने मां को फोटो दिखाई।  “देखो ना मां ,इस दूधमुंही ‌ बच्ची से भगवान ने उसकी मां को छीन लिया। भगवान को ऐसा करना चाहिए भला!”

“अपनी अपनी किस्मत होती है रीतिमा। भगवान के आगे किसकी चली है आज तक।”मां ने कहा। कुछ देर तक खामोशी बनी रही। खामोशी को तोड़ते हुए मां ने कहा,”अच्छा यह बता ,तुम्हें यह लड़का पसंद आया?”   “नहीं, इस विषय पर मैं बाद में बात करूंगी।”कह रीतिमा अपने कमरे में चली गई।

उसके मन- मस्तिष्क में बार-बार उस नन्ही बच्ची की छवि आ -जा रही थी। लाख कोशिशों के बावजूद वह उन्हें भूल नहीं पा रही थी।

रात में खाने के टेबल पर बहुत शांत और बुझी-बुझी सी थी। पापा ने टोका,”क्या बात है रीतिमा , तबीयत ठीक नहीं क्या?”  “ठीक हूं पापा।”उसने बस इतना ही कहा। खाना खा ,वह अपने कमरे में सोने चली गई। उसकी आंखों में नींद कहां! आंखों में थी तो बस उन मासूमों की तस्वीर। उन बच्चों की मासूमियत उसके हृदय तल की गहराई में उतर गई थी।

पता नहीं,क्यों नहीं भूल पा रही उसे। क्यों बिना मिले उन बच्चों के लिए उसके मन में प्यार उमड़ रहा है। बहुत बच्चे ऐसे हैं जिनकी मां नहीं लेकिन इन बच्चों के प्रति ममता क्यूं उमड़ रही ,नहीं जानती। उसे ऐसा क्यों हो रहा है कि जाकर उसे अपने अंक में ले लूं।तरह-तरह के प्रश्न उसके मन को बेचैन कर रहे थे।

उसकी अंतरात्मा बार-बार उसे झकझोर रही थी-“क्यों दुखी होती है। कर पाएगी इन बच्चों के बाप से शादी? यदि हां ,तो कर ले ना शादी! देदे उन मासूम को भरपूर लाड- प्यार मां का! शायद तुम्हारी प्रतीक्षा में है वो। ” मेरे दिमाग में ऐसी- वैसी बातें क्यों आ रहीं हैं।”वह घबरा गई। “ओह! मैं क्या करूं? किससे कहूं मन की बात? क्या कर लूं मैं उन बच्चों के बाप से शादी?” प्रश्नों से ‌हार-थक कर उसने मन की बात मान ली। उसने सोच लिया मैं उन बच्चों की मां बनूंगी।

कई दिनों बाद हिम्मत कर उसने मां से इस संबंध में बात की।

सुनते ही मां को जैसे करेंट सा झटका लगा।”क्या …. क्या?”मां के मुंह खुले के खुले रह गए। फिर संयमित हो कहा,”क्या कह रही हो तुम? यह कहने के पहले कुछ सोचा है? तुम्हारा दिमाग तो नहीं खराब हो गया? उस घर में ब्याह कर तू मां बनकर जाएगी? क्या तुम उससे शादी करोगी जो दो बच्चों का बाप है? क्या हो गया है तुम्हें?

लोग क्या कहेंगे? यही कहलवाना चाह रही हो कि तुम मेरे लिए बोझ  थी और इसलिए तुम्हारी शादी एक लड़के से नहीं ,एक बाप से कर दी! क्यों ऐसा करना चाह रही! क्यों अच्छी खासी जिंदगी को जानबूझकर अंधेरे कुएं में ढ़केल रही हो! नहीं.. नहीं। ऐसा निर्णय मत ले। तू पहले अपने दिमाग पर जोर डालकर सोच कि तू जो करने जा रही है वह तुम्हारे हक में सही है या नहीं!” मां ने हर दृष्टिकोण से उसे समझाया। रीतिमा कुछ बोल नहीं पा रही थी। मूर्तिवत खड़ी चुपचाप सुनती जा रही थी।

अगले दिन मां ने पापा के सामने सारी बातों को रखा। उसके पापा सुनते ही गुस्से से तमतमा गए। चिल्ला कर बोले,”क्यों अपनी जान गंवाने पर तुली हो! तुम कोई दूधमुंही बच्ची नहीं हो कि तुझे समझाया जाए। पढ़ी लिखी हो समझदार हो। रीतिमा की मां, बहुत समझा चुकी तुम! इसे समझने का मौका तो दो!”कह वह अपने कमरे में चले गए। मां भी अपने आंसूओं को पोंछती हुई उनके पीछे-पीछे चली गई। सन्नाटा पसर गया।

महीनों तक इस पर विचार- विमर्श होते रहे लेकिन अंततः निर्णय रीतिमा ने अपने पक्ष में ले ही लिया। शादी हुई लेकिन मां-बाप नाखुश ही थे इस संबंध से।

रीतिमा विदा होकर  ससुराल पहुंची । सारे रस्मों रिवाज के बाद उसे उसके कमरे में लाया गया। कमरे में बेटा खेल रहा था। रीतिमा  के पति ने अपने बेटे से कहा,”देखो तो कौन है? यह तुम्हारी मम्मा है।” ” मेरी मम्मा!”चहककर रीतिमा की गोद में जा बैठा। रीतिमा ने उसे चूम लिया और  दुलारने लगी। तभी बेटी की किलकारियों ने अपनी और उसका ध्यान खींचा।

देखा,पलने में नन्ही जान उसे देखते ही हाथ- पैर हवा में उछालने  लगी। रीतिमा ने झुककर उसे अपने अंक में ले लिया। वह नन्ही जान उसकी गोद में ऐसी चिपकी जैसे कि उस आलिंगन का उसे इंतजार था जो मिल गया। मां -बेटी का यह समर्पण देखने लायक था। इस दृश्य को देख रीतिमा के पति रुमाल से अपनी भींगी आंखों को पोंछ रहे थे। उनके बच्चों को सौतेली नहीं, समर्पित मां मिल गई।

संगीता श्रीवास्तव

लखनऊ

स्वरचित ,अप्रकाशित ।

#समर्पण

 

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