सास बिना कैसा ससुराल – संगीता अग्रवाल : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi : ” चल नैना बाहर चूड़ी वाला आया है करवाचौथ आ रहा है नई चूड़ियाँ ले ले !” नैना यूँही अनमनी सी बैठी थी कि पड़ोस की भाभी शीतल ने आवाज़ दी।

” नही भाभी मन नही मेरा आप ले लीजिये !” नैना ने गेट पर आ कहा।

” क्यो मन नही पहले तो कितनी खुशी खुशी चूड़ियाँ लेती थी अब क्या हो गया । अभी तो शादी को दस साल ही हुए है अभी से बुढ़ापा आ गया क्या !” शीतल उसे छेड़ते हुए बोली।

” नही भाभी पर इतनी चूड़ियाँ पड़ी है और क्या ही लूंगी आपको तो पता है मांजी कैसे हर त्योहार पर चूड़ियाँ खरीदवाती थी मुझे।” नैना थोड़ी उदास हो बोली।

” हां तो वो तो चाची जी अपनी पसंद की दिलवाती थी अब तो वो नही अपने मन का पहन ओढ़ तू ऐसे उदास क्यो हो रही है तुझे तो खुश होना चाहिए अब आज़ादी से जीने को मिल रहा है तुझे !” शीतल बोली।

” भाभी ऐसी आज़ादी किस काम की । खैर मुझे बच्चो को दूध देना है आप चूड़ियाँ लीजिये !” ये बोल नैना अंदर आ गई और रसोई मे जा दूध बनाने लगी। दूध बनाते बनाते वो अतीत मे पहुँच गई।

दस साल पहले जब दुल्हन बनकर इस घर मे आई थी नैना तो परिवार मे पति कृष्णा और सास रेवती जी थी बस । कृष्णा के पिता का देहांत उसके बचपन मे ही हो गया था। नैना को यहां सास का भरपूर प्यार मिला । खुद छोटी उम्र मे विधवा हुई रेवती जी बहू के बहाने अपने शौक पूरे करती और हर वार त्योहार उसे एक से एक चीजे दिलवाती । खुद रसोई की बागडोर संभाल लेती और बहू को सजने संवरने को कहती । अभी दस महीने पहले हृदय गति रुकने से उनका देहांत हो गया तबसे नैना के सब वार त्योहार फीके हो गये। घर मे नैना के आलावा उसके दो बच्चे पति सब है पर नैना को अब ससुराल ससुराल सा नही लगता। 

” सुन नैना शाम को मेहंदी वाली बुलाई है मैने तू भी आ जइयो लगवाने !” करवा चौथ से एक दिन पहले शीतल नैना से बोली।

” पर भाभी मैं मेहंदी वाली से मेहंदी कैसे लगवा सकती हूँ घर मे इतने काम होते है मैं यूँही शगुन का टीका लगा लूंगी हाथ पर !” नैना ने कहा। 

” तो क्या हुआ ? पहले तो तू सबसे पहले और सबसे सुंदर मेहंदी लगवा कर बैठती थी फिर इस बार क्यो नही ?” शीतल हैरानी से बोली।

” भाभी तब मैं नही लगवाती थी मेरी मांजी मेरे लिए आगे से आगे सब करती थी । एक से एक डिज़ाइन निकाल मेहंदी वाली से बोलती थी मेरी बहू की मेहंदी सबसे अच्छी होनी चाहिए । बच्चो को घर को वो संभाल लेती थी तो मैं निश्चिन्त हो सब सिंगार कर पाती थी । मांजी क्या गई अब तो बालो मे कंघी करने का भी मन नही करता है ।” नैना रुआंसी हो बोली।

” अरे सास चली गई तो क्या सिंगार तो पति के लिए होता है ना और क्या किसी के जाने से जीना छोड़ दिया जाता है । तू भी हद करती है !” शीतल बोली।

” हां भाभी श्रृंगार पति के लिए होता है पर उसके लिए समय सास के राज मे ही मिलता था अब बच्चो के साथ ढेरो काम होते है फिर जब भी कोई त्योहार आता है मांजी को याद कर खुद ही कुछ करने का मन नही करता तब कभी मैं मना भी करती थी तो मांजी डांट कर सब आगे से आगे करवाती थी अब तो कोई डांटने वाला भी नही । ये सच है भाभी जैसे मायका माँ से होता है ससुराल सास से होता है । मायके मे एक बार को भाभी अच्छी आ जाये तो मायका कायम रहता है पर सास के जाते ही ससुराल ससुराल सा नही लगता। भले कुछ लड़कियों को सास के साथ दिक्कत आती हो । कुछ सास भी बहू को मान ना देती हो पर ये सच है सास बिना ससुराल नही !” नैना ये बोल रोते हुए अंदर आ गई। 

शीतल हैरान सी खड़ी रही क्या सास बहू का रिश्ता इतना गहरा भी होता है वो सोच रही थी। 

इधर नैना अंदर आ सास की तस्वीर के आगे खड़ी हो रोते हुए बोली ” मांजी क्यो छोड़ गई आप मुझे यूँ अकेला आपके बिन ना कोई तीज त्योहार है ना ससुराल ससुराल सा है । एक बार वापिस आ जाओ मांजी देखो आपकी बहू की कलाई मे नई चूड़ी नही है और हथेली अब तक खाली है । मेरे त्योहार लौटा दो मांजी एक बार वापस आ जाओ !” 

दोस्तों जितना सास बहू के झगड़े के किस्से मशहूर है उतने ही उनके अटूट प्यार के किस्से भी है । कुछ लोगो को भले ये एक काल्पनिक कहानी लगे पर आपमें से ही कुछ की हकीकत भी है ये कहानी । क्योकि ये सच है सास बिना ससुराल ससुराल नही लगता । 

आपकी दोस्त 

संगीता अग्रवाल

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!