प्यार की बेडियां (भाग 2 )- माधुरी : Moral Stories in Hindi

 

             जब भी आशीष मॉ को गॉव से शहर लाकर अपने साथ रखने की बात करता

      , नेहा का मूड एकदम उखड़ जाता . लेकिन आशीष ने अपने प्रयास जारी रखे थे.

      नेहा को मनाने का भी और बीच-बीच में छुट्टी लेकर मॉ से मिलने का भी .

             सुमित्रा देवी ने अपने सोने की व्यवस्था बच्चों के कमरे में कर ली थी. दोनों

      बच्चे दादी के आने से बहुत खुश थे . दोनों ही दादी के साथ सोने की जिद करते

      तो सुमित्रा देवी ने इस मामले का हल बारी-बारी से एक -एक दिन दोनों बच्चों

      के साथ सोने का कर लिया था. रोज़ रात सोने से पहले वे दोनों बच्चों को धार्मिक

      व प्रेरणात्मक कहानियां बड़े ही रोचक ढंग से सुनती . जो बच्चे हर समय टीवी

      पर कार्टून देखकर समय बिताते थे ,वे अब दादी के आगे पीछे घूमते और नित

       नई कहानियां सुनाने की फरमाइश करते रहते.

             सुमित्रा देवी की उम्र जरुर  ७५ साल की हो चलीं थी , लेकिन अनुसासित

     दिन चर्या का पालन करने के कारण उनके सुगठित शरीर में गजब की चुस्ती-फुर्ती

     थी . दूसरे दिन से ही रसोई की व्यवस्था संभाल ली थी. सुबह गर्मागर्म आलू के

     परांठो की खुसबू से नेहा की नींद खुली ,तो कुछ झेपती हुई रसोई की तरफ

     आयी .

             सुमित्रा देवी के प्यार भरे शब्दों ने उसकी शर्मिन्दगी से उबार लिया. ‘‘नेहा बेटे

      तुम आफिस के लिए जल्दी से तैयार हो जाओ चाय-नाश्ता तैयार है ‘‘. मैने तुम

       दोनों के और बच्चों के टिफिन तैयार कर दिया है . आशीष ओर तुम्हारे टिफिन

       में मैंने पराठों के साथ मिर्च का अचार भी रख दिया है . जो मै गॉव से अपने साथ

        लेती आई थी . मुझे याद है आशीष को मेरे हाथ का मिर्च का अचार बहुत पसन्द

       है. साथ ही गुड की डेली भी. सुमित्रा देवी पुरानी स्मृतियों मे डूबते हुए कहा.

               लंच टाइम में नेहा ने अपना टिफिन खोला , उसके सहकर्मी उसके टिफिन

         को आश्चर्य से देखते हुए बोले , हमेशा  नूडलस ,पैटीस व  सैंडविच लाने वाली

         नेहा के लंच बॉक्स में आज अचार व परांठे . भई अचार की  खुशबू स तो मन

         ललचा रहा है है इसे खाने को . क्या बात है नेहा आज अचानक इतना सुखद

         परिवर्तन, तुम्हें तो कुकिग में जरा भी इंटरेस्ट नहीं है . तुम्हारा गुजारा तो पैकिट

         फूड से बखूबी  चल जाता है .

                   ‘‘असल में मेरी सासु मॉ कुछ दिनों के लिए हमारे पास आई है‘‘  फिर

          सबने मिलकर अचार व पराँठे का आनंद लिया . आधुनिक पीढ़ी अपने को कितना

          भी मॉडर्न कह लें ,लेकिन परम्परागत चीजों को खाने का लोभ  नहीं छोड़ पाती.

              शाम को बच्चों ने भी स्कूल से आकर नेहा से कहा ,‘‘ मम्मी आज टिफिन खाने

          में बड़ा मज़ा आया .वरना आप तो हमेशा टिफिन में बर्गर,मैगी नूडल्स व अंकल

          चिप्स ही देती थी ,जिनको खाकर हम बोर हो गए थे.‘‘

              बच्चों के सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए सुमित्रा देवी ने कहा, ‘‘ बच्चों तुम

          बिल्कुल चिंता मत करो. मै जब तक यहॉ हूं , तुम्हें इसी तरह ,तरह-तरह के

          परांठे बनाकर टिफिन में दिया करुंगी.ठंड का मौसम होने के कारण सुमित्रा देवी

          ने तिल के लड्डू , मूंगफली की चिक्की व नमकीन मठरी इत्यादि का नाश्ता

          बनाकर रख दिया था , जिसे खाकर बच्चे बहुत खुश थे .अब उन्हें कुरकुरे,

         अंकल चिप्स दादी के बनाये लड्डू व मठरी के आगे बेकार लगने लगे.

              सुमित्रा देवी के आने से नेहा को बच्चों की चिंता नहीं रहती थी , क्यों कि

         वे बच्चों के स्कूल से आने पर उन्हें संभाल लेती और उन्हें गर्मागर्म खाना

        बनाकर खिलाती . नेहा ने महसूस किया कि माजी के आने से बच्चों की

        सेहत में सुधार  आ गया था . घर भी साफ़ सुथरा व व्यवस्थित हो गया था .

        सुमित्रा देवी ने खाली समय में कुरेशिया से कोस्टर व सेन्टर पीस बना कर

         नेहा के ड्राइंग रुम में सजा दिये थे .घर में रेडी टू ईट के पेकिट भी आने

        बंद हो गये थे.

            नेहा मन ही मन मॉजी के पास कौशल से व  क्रिएटिविटी को देखकर

        बहुत प्रभावित थीं . अपनी सासु मां के प्रति उसका रुख़ अपनत्व व प्यार भरा

        होने लगा था . आशीष व नेहा के आफिस से आने तक सुमित्रा देवी शाम के

        खाने की पूरी तैयारी करके रखतीं ,फिर नेहा की मदद से सब मिलकर गर्मागर्म

        खाने का आनंद लेते . आफिस से आकर  अब चाय नेहा य सासु मॉ के साथ पीती .

             सुमित्रा देवी को बेटे के घर आय महीना भर से उपर हो गया था , इस बीच

        एक दिन आशीष नेहा से  मॉ को वापस गॉव छोड़ जाने के बारे में कहा , नेहा

        ने चौंककर आशीष की तरफ देखा और पूछा , ‘‘मॉजी ने तुमसे गॉव जाने के

        लिए कहॉ ?‘‘.

               नहीं मॉ ने तो इस ऐसा कुछ नहीं कहा ,लेकिन में तो बस मॉ के आजाने

          से तुम्हें होने वाली असुविधा के बारे में सोचकर ही ऐसा कह रहा था . नेहा

          ऑंखें तरेरकर जब आशीष की तरफ देखा तो आशीष ने चुप लगाना ही

          बेहतर समझा ,साथ ही साथ मन में खुशी भी हुई कि नेहा भी भले मुंह से

          कुछ न कहें ,मॉ के आने से खुश तो है ही .

                  एक दिन नेहा आफिस से वापिस आई तो उसे तेज बुखार था ,घर

           पर आकर सीधे अपने कमरे में आकर लेट गई . सुमित्रा देवी उसके कमरे

           में आई . उसका तेज़ बुखार देखकर उसके पास कुछ देर बैठी . फिर सिर

           पर ठंडे पानी की पट्टी रखने लगी . थोड़ी देर बाद अदरक ,तुलसी व काली

           मिर्च का काढ़ा बना कर नेहा को दिया जिस से नेहा को काफी आराम मिला .

           २-३ दिनो में नेहा एक दम ठीक हो गई . इस बीच सुमित्रा देवी ने तरह-तरह

           के सूप व खिचड़ी बनाकर नेहा को खाने को दी .

                   नेहा के पूरी तरह ठीक होने पर सुमित्रा देवी ने गॉव वापस जाने की

           बात नेहा के सामने रखी . उनकी बात पूरी होने तक नेहा की हिचकी बंध गई ,

           और उनसे लिपट कर फूट-फूट कर रोने लगीं .

                मॉ मुझे माफ़ कर दीजिए ,मै आजतक आपके प्यार से वंचित रही . घर

          में किसी बड़े के न होने से मैंने इस तरह के प्यार-दुलार व सुख को कभी अनुभव

          ही नहीं किया था .

               नेहा के मुंह से अपने लिए मॉ का संबोधन सुन कर सुमित्रा देवी भी भाव- विभोर

          हो चली थी ,‘‘मॉ अब आप कही नहीं जायेगी , यही रहेगी हमारे साथ . फिर मुझे भी

          तो आपके हाथ का अचार व तरह-तरह के पकवान भी तो सीखने है . मॉ आप तो

          साक्षात अन्नपूर्णा है . ‘‘ कह कर नेहा ने लाड से सुमित्रा देवी के गले में अपनी

         बाहें डाल दी .

                ‘‘ चल हट पगली कहीं की ‘‘ सुमित्रा देवी ने उसे अपने प्यार से झिड़का

         ,‘‘अब मै कहीं जा भी कैसे सकती हूं ? तूने मेरे गले में प्यार की बेडियां जो डाल

          दी है ‘‘ सास बहू का भरत मिलाप देख कर आशीष मन ही मन बहुत खुश था .

          आखिर वह भी तो यही चाहता था.

          Madhuri Baslas

 


 

2 thoughts on “प्यार की बेडियां (भाग 2 )- माधुरी : Moral Stories in Hindi”

  1. Madhuri ji aap ye sab sacchi bate Jo har Ghar me ho Rahi hoti hai,kaise ise kahani ka roop deti hai,pata nahi. Aapke lekh to jindgi ke asli pahlu ko dikhate hai. Pad kar sochne par majboor kar dete hai ki abhi bhi un purani sacchi aap biti bato ko koi lekhak itni sadgi se Piro sakta hai. WAH JI WAH! 😭

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