प्यार का मौसम (भाग 4 )- स्नेह ज्योति : Moral Stories in Hindi

नूरी ने कहा -माँ जी मैं आपसे कुछ नहीं छिपाना चाहती । मैं विजय से प्यार करती हूँ हम दोनो एक साथ काम करते है ,और शादी करना चाहते है । लेकिन बेला मेरी ज़िम्मेदारी है ! जब तक मैं इसे सुरक्षित रुखसत नहीं कर देती , तब तक मैं भी शादी नहीं करूँगी । फिर चाहें उसमें कितना ही समय लगे । उसकी ये बाते सुन सुमित्रा जी के मन में उसकी इज़्ज़त ओर बढ़ गई ।माँ जी आप चिंता नहीं किजीए बेला मुझसे भी अच्छी है आपको कोई शिकायत का मौक़ा नहीं देगी । बस आप हाँ बोल दिजीए …….

नूरी की बाते सुन सुमित्रा जी ने बहुत सोचा और शादी के लिए हाँ कह दी ।

थोड़ी देर बाद जब वीर और बेला एक साथ आए तो ,दोनों साथ में अच्छे लग रहे थे । ये देख सुमित्रा जी का यक़ीन और पक्का हो गया कि जो उन्होंने किया है वो सबके लिए ठीक है । नूरी अंदर से मिठाई लेकर आयी और सबको खिलाने लगी । कुछ समय बाद जब वीर और उसकी माँ घर पहुँचे तो सुमित्रा जी ने बड़ी झिझक से कहा “मैंने तुम्हारा रिश्ता पक्का कर दिया है “। पता है माँ तभी तो मिठाई खिलायी जा रही थी । नूरी मान गई उसे कोई परेशानी तो नहीं है ??

वीर का सवाल सुन सुमित्रा जी बोली बेटा ! बोलो माँ ! वो …. नूरी नहीं बेला के साथ बात पक्की की है !!

ये सुन वीर के हाथ से गिलास छूट नीचे गिर गया …. बहुत लंबी खामोशी के बाद एक आवाज़ आयी ….माँ आप ये क्या कह रही है ??? बेटा !मेरी बात तो सुनो ! नूरी तुम से शादी नहीं करना चाहती ,वो किसी ओर को पसंद करती है ।

वीर -अगर किसी और को पसंद करती है तो आप बेला …. बेला के लिए हाँ बोल आयी !!

माँ वो मेरी विद्यार्थी है !

 

विद्यार्थी है तो क्या ?? पर वो मुझे पसंद है और मैं हाँ कर चुकी हूँ । वीर ग़ुस्से में वहाँ से चला गया !

कुछ दिन बाद नूरी ने वीर को मिलने के लिए बुलाया और सब कुछ बताया । बस अब हम सब की क़िस्मत तुम्हारे हाथ में है ! जो चाहो जिस तरफ़ मोड़ना चाहों सब तुम पर निर्भर करता है । यें बोल नूरी चली गई ।

घर आकर वीर सारी रात यही सोचता रहा कि आख़िर मेरे साथ ही ऐसा क्यों होता है ?? जिससे उम्मीद करता हूँ वो ही ना उम्मीद कर देती है । तभी रेडियो पे गाना बजने लगा …..उम्मीद जिससे ना थी वो आसरा है बनी ! मज़िल जो मेरी ना थी वो ज़ुस्तज़ू हो चली क़िस्सा था क्या क्या हो गया ?? शायद यही मेरी क़िस्मत है सोच उसने बेला को चुन लिया । सुमित्रा जी की ख़ुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा । वो वीर की शादी में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती थी । इसलिए अपने हाथों से सब काम करवा रही थी । आख़िरकार वो दिन आ ही गया जब वीर और बेला एक रिश्ते में बंध गए । बेला को विदा करते हुए…..नूरी ने वीर का शुक्रिया कहा और बेला का ध्यान रखना बोल !अश्रु से भीगे नयन लिए चौखट पे खड़ी सोचने लगी कि आज उसने अपने सास ससुर को दिया वचन पूरा कर अपना फर्ज निभाया ।

 

शादी के बाद वीर और बेला के लिए सब नया था । उन्हें एक दूसरे का साथ अपनाने में समय लग रहा था । सुमित्रा जी और बेला की अच्छी दोस्ती हो चुकी थी । ये देख वीर खुश था कि बेला ने इस रिश्ते को अपनाना शुरू कर दिया है । कुछ दिन बाद वीर का तबादला दिल्ली हो गया ।वीर के लिए तो ये शहर पुराना था ,पर माँ और बेला के लिए सब नया था । उन्हें सब अपनाने में थोड़ा समय लगा , पर कुछ समय बाद सब ठीक हो गया ।

वीर की तरक़्क़ी हो गई और उनके घर में एक नया मेहमान आने वाला था । सुमित्रा जी अपनी बहू का बहुत ध्यान रखती थी , इसी भागम भाग में एक दिन वो सीढ़ियों से गिर पड़ी । उनकी मौत ने सब बिखेर कर रख दिया था । वीर भी ख़ामोश रहने लगा ! बेला बहुत जतन करती कि वीर माँ को ज़्यादा याद ना करे पर वो सफल ना हो पायी ।

एक दिन बहुत तेज़ बरसात हो रही थी तभी बेला को लेबर पैन होने लगे । वीर उसे जल्दी से अस्पताल लेकर गया । पूरी रात इंतज़ार करने के बाद सूरज की पहली किरण के साथ खबर मिली कि घर में एक नन्ही परी आयी है । बेला के पास बैठ वीर ने जब बेटी को गोद में उठाया तो वो एहसास एक अलग ही एहसास था । मानो उसे सब कुछ मिल गया है वो प्यार वो एहसास वो रिश्ता जिसके लिए वो भटकता रहा । वीर ने बेला का शुक्रिया कहा और बेटी का नाम प्रियल रखा ।

वीर प्रियल के आने के बाद बहुत बदल गया था । अब वो खुल के जीना सीख गया था ।अब उसे किसी बात की कोई परेशानी नही थी । प्रियल के आने के बाद से उसका और बेला का रिश्ता एक मज़बूत रिश्ता बन गया । बेला अब बेझिझक कुछ भी कह सकती थी । तीनो एक साथ बहुत खुशहाल जीवन जी रहे थे । पर कहते हैं ना कि समय कभी किसी के लिए नही रुकता ! प्रियल कब बड़ी हो गयी वीर को पता ही नहीं चला ।

आज प्रियल ने कॉलेज पास कर लिया था । उसने थिएटर में अपनी एक पहचान बनाई ,और वो उसी क्षेत्र में अपना नाम बनाना चाहती है ।बेला को ये सब पसंद नहीं था , लेकिन वीर के आगे बेला की एक ना चलती । इसलिए प्रियल थोड़ी ज़िद्दी भी हो गई । प्रियल ने अपने लिए लड़का भी पसंद कर लिया और उसे वीर से मिलवाने के लिए घर बुलाया गया । बेला ने वीर से कहा – “देखो तुम ना एक दम हाँ मत कह देना “! पहले थोड़ा लड़के को परखना , उसके परिवार से मिलना बाद में कुछ कहना । यानी जितना समय मैंने तुम्हें हाँ बोलने में लगाया था उतना ही लूँगा । वीर ये सब बोल बात हंसी में उड़ा गया । क्योंकि बेला जानती थी कि वीर वहीं करेंगे जो प्रियल चाहती है । थोड़ी देर बाद प्रशांत घर आया । उससे मिलकर वीर और बेला दोनों को अच्छा लगा । लड़का अपनी ज़मीन से जुड़ा हुआ हैं कोई बनावट नहीं हैं । यें देख बेला संतुष्ट थी, वीर ने पूछा तुम्हारे पिता जी क्या करते है ??प्रशांत ने बोला मेरे पापा एक व्यापारी है और माँ की एक नृत्य शाला है वो डांस सिखाती है । वीर ने पूछा तो हम उनसे कब मिल सकते है ।प्रशांत ने बोला अंकल मैं आपको फ़ोन करके बताता हूँ । प्रियल बहुत खुश थी कि पापा को प्रशांत अच्छा लगा । बस अब हमारे घर वाले भी एक दूसरे से मिल ले ।

कुछ दिन बाद प्रशांत का फ़ोन आया और उसने कहा अंकल आप लोग कल शाम को घर आ सकते है !! वीर ने कहा ठीक है कल मिलते है । जब वीर अपने परिवार के साथ उनके घर पहुँचा तो उनकी शान शौक़त देख वीर थोड़ा नर्वस लगने लगा । तभी बेला ने उसका हाथ थामा और कहा कुछ नहीं सब ठीक है । ये देख वीर मुस्कुराने लगा …..बेला वीर की ओर देखती हुई बोली क्या हुआ ?? कुछ नहीं बस माँ याद आ गई ! वो यही चाहती थी की उनके बेटे को ऐसी जीवन साथी मिले जो उसे गिरने ना दे और तुम बिलकुल वैसी ही हो । मुझे कभी टूटने नहीं देती जब भी लगता है कुछ टूट रहा है तो तुम हाथ थाम सब जोड़ देती हो ।

वीर जी अगर मेरी तारीफ़ हो गई हो तो बेटी पे ध्यान दे……. पापा क्या है ?? आप को अभी भी रोमांस सूझ रहा है प्लीज़ मुझ पर फोकस करे । वीर ने मुस्कुरा कर बोला – ओके

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