परोपकार वर्सेज संस्कार – भगवती सक्सेना गौड़

सुजाता अस्पताल के बेड पर थी, अचानक उसने कहा, “अरे मैं यहां कैसे आयी?”

तभी उसे आभास हुआ, सुकन्या बेटी उसका सिर सहला रही है, “हां, मम्मा, आपको सांस लेने में तकलीफ हो रही थी पापा ने फ़ोन किया, तो रात को मैं आकर आपको यहां लेकर आयी। अब कैसा लग रहा है।”

“ठीक है, बेटू।”

ये बोलकर फिर सुजाता आंख बंदकर पड़ी रही, विचारों में अतीत की आंधी उठ रही थी। यही बेटी है जिसके होने पर ससुराल में सब परेशान थे, बेटा क्यों नही हुआ, वंश कैसे चलेगा, बुढ़ापे में दोनो बुजुर्ग की देखभाल कौन करेगा। पड़ोस में ही जेठ जी रहते थे जिनके दो बेटे थे, और हमेशा जिठानी के दिमाग मे एक ठसक रहती थी, मैं तो बेटे की मां हूँ।

आज वही बेटे विदेश में जा बसे, कभी कभी बात हो जाती है। अब वो बेटो के माँ पापा नौकर के भरोसे जिंदगी बिता रहे।

तभी नर्स आयी दवाई देने और सुजाता को बैठना पड़ा। एक दिन बाद सुजाता घर आ गयी। सुकन्या उसी शहर में अपने अफसर पति सुयश के साथ रहती थी। रिपोर्टर होने के कारण सुकन्या भी बहुत व्यस्त रहती थी।

एक दिन सुबह ही सुजाता ने देखा, सुकन्या आयी है। 




“कैसे बेटू, इतने सुबह?”

“अरे मम्मा, ताईजी ने सुबह चार बजे फ़ोन किया, कि ताऊजी को सीने में दर्द हो रहा, तो मैने डॉक्टर को फ़ोन किया, साथ लेकर आई हूं, अभी एम्बुलेंस आने वाली है।”

“हे भगवान, इतना सब हो गया, मुझे कोई नही बताया।”

सुजाता भी सुकन्या के साथ उनकी तबियत का हाल जानने चल पड़ी। और एम्बुलेंस आ गयी, डॉक्टर और सुकन्या के साथ उनको अस्पताल ले गए।

वही उनकी एंजियोप्लास्टी और एंजियोग्राफी भी हुई और कुछ दिनों के बाद घर आ गए। वो परिचित डॉक्टर भी घर आये।

उन्होंने सुजाता से कहा, “आप धन्य है, जिन्होंने सुकन्या को ऐसे संस्कार दिए हैं, कि वो हर किसी की सहायता के लिए हमेशा आगे रहती है, और तो और सुयश भी ऐसे ही हैं। जानती है, सुयश मेरा दोस्त भी है, एक दिन मैंने यूँ ही पूछ लिया, बच्चो के बारे में नही सोच रहे हो, चार वर्ष शादी को होने वाले हैं, उसका जवाब सुनेंगी, हमदोनो, मेरा और सुकन्या का ये विचार है कि हम परिवार आगे नही बढ़ाएंगे, हमारे चार बच्चे जो सामने हैं (सुकन्या के पेरेंट्स और सुयश के पेरेंट्स) हम उनकी देखभाल पूरे मन से करेंगे, उन्हें कोई कष्ट नही होने देंगे। हमने बचपन से देखा है, हर पल वो लोग हमारे लिए जीते रहे, हमारी पसंद का खाते रहे, स्कूल, ट्यूशन के लिए समय निकालते रहे, कई सामाजिक पार्टीज छोड़ते रहे, हमारे लिए ही खटते रहे, अब उन्हें हर ऐशो आराम देंगे।”

सुजाता की आंखे नम थी, वो अपने को भाग्यशाली मान रही थी और सोच रही थी, इससे अधिक संस्कारी और कौन होगा, आज की पीढ़ी धन्य है, प्रैक्टिकल रहकर हर क्षेत्र के कामो में तल्लीन रहती है।

स्वरचित

भगवती सक्सेना गौड़

बैंगलोर

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