Moral stories in hindi: लगभग दो सालों के बाद विद्यालय के प्रांगण में आकर सुमेधा को बिल्कुल भी अजीब नहीं लगा।यही तो वह जगह है,जहां उसने अपने जीवन के बीस साल बच्चों के साथ बिताएं हैं।उसकी बड़ी आंखों के रौब और स्नेह की कोमलता ने बच्चों की सबसे प्रिय शिक्षक बनाया था।बाकी शिक्षकों के मुंह से बच्चों की बदली हुई प्रवृत्ति के बारे में सुनकर, मन आशंकित तो था कि, कहीं उन्होंने असम्मान करदियातो!वास्तव में बच्चों ने गर्म जोशी से स्वागत किया।
कुछ बच्चे कक्षामें ऐसे भी थे जो सुमेधा मिस को बस नाम से जानते थे।कुछ बच्चों के भाई -बहन पढ़ चुके थे सुमेधा के पास।कुल मिलाकर बच्चों में काफी उत्साह था जिसने सुमेधा को भी दुगना उत्साहित कर दिया। दसवीं के बच्चों में बोर्ड को लेकर अभी कोई ज्यादा चिंता नहीं दिखी। बारहवीं कक्षा(जिसमें केवल लड़कियां थीं)में प्रवेश करते ही सारी लड़कियों के चेहरे मुरझाए दिखे। सुमेधा ने हैरान होकर पूछा”क्या हुआ है तुम सबको?इतना तनाव क्यों है? हंसी कहां गायब हो गई तुम्हारी?अगर नहीं पढ़ना मुझसे तो कोई बात नहीं,एक गाना गा दो सब मिलकर।”
लड़कियां खुशी से उछल पड़ी।एक स्वर में बोली”क्या मिस सच ,हम गाना गाएं?फिल्मी गाना गा सकतें हैं हम?”
सुमेधा ने हैरान होकर कहा “हां बिल्कुल फिल्मी गाना गाओ पर वो जो स्कूल में गाने लायक हो।”बस फिर क्या था,एक एक करके ना जाने कितने गाने गाएं उन्होंने सुरीली आवाज में सुर ताल के साथ।अब वे सब पहले से खुश दिख रहीं थीं।हम ख़ुद खुश होकर पढ़ाने जाएं और बच्चों के चेहरे लटके रहे, अच्छा नहीं लगता।
पढ़ाई शुरू करने से पहले और बातें का मन था उनका। सुमेधा को सुनने का मन था उनका।सुमेधा ने भी पहले दिन की औपचारिकता निभाने लगी।इनमें से कुछ को सुमेधा ने आठवीं में पढ़ाया था।आकृति को खड़े कर पूछा”तुम सब इतने खुश रहने वाले बच्चे ऐसे कैसे हो गए।मुझे तो विश्वास भी नहीं हो पा रहा।”
आकृति जो पहले हमेशा चहकती रहती थी बोली”मिस पहले हम पढ़ाई एन्जॉय करते थे।बिना तनाव के पढ़ते थे,पर अब तो हर वक्त बोर्ड की तलवार लटकती रहती है हमारे सर।ये मत करो बोर्ड परीक्षा है,वहां नहीं जाना बोर्ड परीक्षा है।यह बोर्ड ना हो गया यमराज हो गया हमारे लिए।”
उसकी बात सुनते ही एक एक करके सारी लड़कियां अपने मन का गुबार निकालने लगी। सुमेधा ने सोचा चलो अच्छा हुआ,दिमाग से तनाव थोड़ा तो कम होगा।मंगला ने दुखी होकर कहा”मिस ,वैसे तो मम्मी-पापा दूसरों के सामने कह देतें हैं कि इसकी जिस चीज में रुचि हो वही चुने कैरियर,पर बाद में कैरियर के नाम पर सिर्फ डॉक्टर और साफ्टवेयर इंजीनियर का ही विकल्प देतें हैं।”
रुचि ने शुरू किया”मिस आजकल तो हम इतने कन्फ्यूज हैं कि, वही घर है, पर घर में रहने वाले लोग बदल गएं हैं।हम तो कॉम्पिटिशन परीक्षा में अब बैठेंगे,हमारे मम्मी पापा ने तो रिश्तेदारों से कॉम्पिटिशन करना अभी से शुरू कर दिया है।”
मालती बिल्कुल शांत बैठी थी, सुमेधा ने जब उसे खड़ा किया तो वह रोने लगी और बोली”मिस हमारे मम्मी पापा हम पर भरोसा नहीं करते बिल्कुल।हमने तो कुछकिया ही नहीं।जमाने केबदलते तौर -तरीके देखकर उन्हें अपनी औलाद पर भरोसा नहीं।तो हम किस कर भरोसा करें।फोन लेकर चाहे
पढ़ाई का काम ही क्यूं ना करें, मम्मी किचन से चिल्लाती हुई आ जातीं हैं कि आलतू -फालतू चीजें देखती रहो,टाइम पास करो ताकि घर के काम ना करना पड़े।”
निधि ने तो सीधा इल्ज़ाम ही लगा दिया”,मैंने मना किया था मिस कोटा जाने से,क्योंकि मैं उतना दवाब में नहीं पढ़़ पाती।इस बात का बतंगड़ बना कर मम्मी ने पापा को समझाया कि ,अड़ोस -पड़ोस में सारे बच्चे जा रहें हैं,पर यह महारानी नहीं जाकर हमारी बेइज्जती करवाएगी ।लोग सोचेंगे हम पैसे नहीं मिलना चाहते।”
आखिर में सौम्या ने सुलझी हुई बातों से अपना दुख बताया”मिस ,आजकल घर पर पहुंचते ही मम्मी फिजिक्स, केमिस्ट्री और मैथ्स की पढ़ाई अच्छे से करने की चेतावनी देने लगती हैं।हम जब छोटे थे हमने अपने मम्मी पापा को हंसकर प्यार से हाथ में रहते देखा है।अब तो घर पर रोज महाभारत चलती है। मम्मी हमेशा कहती हैं पापा ने बहुत पैसा खर्च दिया है तुम्हें पढ़ाने में।
फिर बाद में शादी के लिए दहेज का बंदोबस्त भी कर रहें हैं हम।बस तुम हम पर अहसान कर देना बेटा अच्छे से पास हो जाओ ।९० प्रतिशत से नीचे लाकर तो कुल की नाक डुबोने की मत सोचना।इस पैसे से एक घर लेना चाहते थे, नहीं ले पाए।”मिस वो ये तो जरूर बोलें हैं ज्यादा तनाव ना लो,पर भावनात्मक रूप से हमें विवश कर रहें हैं अपनी पसंद का विषय पढ़ाकर।जो ये नहीं कर पाए वह हम से उम्मीद करते हैं।आप ही बताइए यह उचित है क्या।”
सारी बच्चियों की बातें सुनकर आज सुमेधा को अहसास हो पाया कि ,जाने अंजाने सदा बच्चों के ऊपर दोष मढ़ देतें हैं।जमाना बदल रहा है तो इसमें इनकी तो कोई ग़लती नहीं।विद्यालय से जाकर फिर ट्यूशन।थकजातें हैं ये मानसिक और शारीरिक रूप से।ख़ुद से पढ़ने का वक्त तो तब मिले जब होमवर्क से छुटकारा मिले।इन बच्चियों की मानसिक अवस्थासामान्य नहीं है।
नमिता जो कि आठवीं में मुझसे पढ़ चुकी है,मेरी कहीं हुई तब की बात दोहराई”मिस आप कहतीं थीं ना,दिमाग पर ज्यादा प्रेशर मत रखा करो, धीरे-धीरे उबलते हुए फट जाएगा।हमारे दिमाग की अब ऐसी ही स्थिति बन गई है।हम सहेली नहीं बना सकतीं क्योंकि हर कोई बेहतर करना चाहता है।किसी लड़के से नोट्स नहीं ले सकते,दुनिया क्या कहेगी?अपने मम्मी पापा से कुछ पूछने जाओ तो सीधा कह देतें हैं कि अपने टीचर से पूछना।
मिस मेरी मम्मी जो पचास रूपए किलो दूध में पानी की परछाईं भी देख लें तो पैसा तो काटेगी, साथ में सौ बात भी सुनाएगी।अभी तो जहां जाने के लिए कहेंगे इन्हें,ये भेज देंगें,पर अच्छे नंबर नहीं मिलने पर छओड़एगएं क्या हमें?हम अपने दिल की बात भी अब घर परकिसी से कह नहीं पाते।
मम्मी कहती हैं अब बड़ी हो गई हो,बच्चों जैसे मां का आंचल पकड़कर मत घूमो।उन्हें किटी पार्टी जाना है।पापा से कुछ पूछने की हिम्मत ही नहीं होती उनके थकान से चूरचेहरे को देखकर”
उनकी बातें सुनकर सुमेधा जड़ रह गई ।सच में बच्चों को दोष देना बहुत आसान है,पर हम अपने दायित्व कहां निभा पाते हैं आजकल।तकलीफ़ न लेकर अधिकार का प्रयोग करना चाहतें हैं।ये किशोर अवस्थाके बड़े नाजुकदौर से गुजर रहें हैं।दिमाग में इतना तनाव बढ़ता हीजाएगा तो फट जाएगा प्रेशर कुकर।
सुमेधा ने बच्चों के माता पिता को एकसाथबुलवाया।जब वे आएएकसाथ छुट्टी के बाद , सुमेधा ने हांथजोड़करकहा”आप सम्मानीय पालकहैं अपने बच्चों के।उनकी हर मांग पूरी कर रहें हैं,यहां तक तो ठीक है ,पर बदले में उसे डॉक्टर ही या इंजीनियर ही क्यों बनाने पर जोर देतें हैं।
इन बच्चियों के बचपने का यह आखिरीदौरहै।परीक्षा फल के तनाव में मुस्कुराना भूलगईं हैं।अपनी तकलीफ़ किसे बताएं?आप दोनों के बीच परिवारके खर्चों को लेकरआए दिन होने वाले मत भेद उन्हें मानसिक रूप से कमजोर कर रहा है।उन्हें भी इस बात की चिंता होने लगी है अब कि पापा कैसे कर पाएंगे सब कुछ मैनेज।
आपसे निवेदन है मेरा कि बच्चों के करीब जाइये।उनकी तकलीफ और पीड़ा मां बाप सेज्यादा और कौन जानेगा।अगरआप नहीं जानना चाहेंगे तो यही बेटियां बाहर अपने दोस्त ढूंढ़ेंगी ताकि अपनी परेशानियां बता सके।आपकी बच्चियों का दिमाग प्रेशर कुकर की तरह खौलरहा है।प्रेशर निकल नहीं पा रहा। यदि यह प्रेशर दिमाग से नहीं निकला तो फट जाएगायह प्रेशर कुकर एक दिन, दुर्घटना हो जाएगी बड़ी।”
पता नहीं सुमेधा की बातों का कितना असर हुआमाता पिता पर, सुमेधा अपना प्रेशर निकालने का अभियान चलाना शुरू कर दी है।बच्चों के मन की जिज्ञासा को शांत कर देने से प्रेशर कुकर कभी भी नहीं फटेगा।
शुभ्रा बैनर्जी
Kaash hmare pass bhi aisi achi teacher hoti 🥺😢….