प्रेम-विवाह – शुभ्रा बैनर्जी  : Moral stories in hindi

दादी,नानी और मां से यह कहावत सुनी थी कि इंसान पूरी दुनिया से जीत सकता है,पर अपनी औलाद से हार जाता है। ज़िंदगी भर घर-परिवार की जिम्मेदारी संभालते -संभालते कब ख़ुद की औलाद शादी लायक हो गई ,पता ही नहीं चला।शिखा की बेटी,मीनल अहमदाबाद में एम बी ए  कर रही थी।गुजराती ब्राह्मण परिवार से संबंध रखने वाली शिखा और उसके पति की शादी को छब्बीस वर्ष पूरे हो गए थे।एक बेटी और एक बेटा थे।दोनों पढ़ाई में होशियार तो थे ही,संस्कारी और सभ्य भी थे।

पढ़ाई के आखिरी दो साल बचे हुए थे बेटी के,तभी अकस्मात पति का निधन हो गया।आंखों के आगे अंधेरे के सिवा और कुछ नहीं था।शादी के बाद से पति पर निर्भर रही थी ,शिखा।अब अचानक से बच्चों और परिवार की जिम्मेदारी अकेले उस पर आ गई।बच्चों ने बड़ी समझदारी से खुद को और शिखा को संभाल लिया था।

मीनल का यह आखिरी साल था।एक दिन शाम को मीनल अपने साथ एक लड़के को लेकर घर आई।आते ही सीधे शिखा से बोली”मां,यह अनुराग है,मेरे साथ ही पढ़ता है।हम एक दूसरे के बहुत अच्छे दोस्त हैं।यह बंगाली ब्राह्मण हैं। आपसे मिलना चाहता था ,तो मैं ले आई।”शिखा ने गौर से देखा तो लड़का सचमुच बहुत सभ्य और संस्कारी लगा। ऐसा लगा ही नहीं कि वह पहली बार मिल रही है उससे।

मीनल की बहुत परवाह करता था वह।शिखा को हमेशा दिलासा देता था कि सब ठीक हो जाएगा।

कैंपस सेलेक्शन में दोनों को नौकरी मिल गई।एक दिन अनुराग आया और शिखा से बोला”आंटी,मैं मीनल को पसंद करता हूं,शादी करना चाहता हूं।वह मेरी सबसे अच्छी दोस्त हैं।अगर आप सहमत होंगी,तो मैं अपने मम्मी -पापा से बात करूंगा।”मीनल चुपचाप खड़ी थी।उसके जाने के बाद शिखा के जोर देने पर मीनल बोली”मम्मी,यह रिश्ता ताऊ जी कभी नहीं मानेंगें।हमारे परिवार में किसी ने दूसरी जाति में शादी नहीं की।मैंने अनुराग को बहुत समझाया ,पर वह आपसे मिलने आ गया।”

मां होने के नाते शिखा अपनी बेटी का मन पढ़ सकती थी।उसकी आंखों में अनुराग के लिए प्रेम और अपने पिता के ना रहने की विवशता साफ दिखाई दे रही थी।शिखा ने बेटे से बात की तो वह भी बोला”मम्मी,जमाना अब बदल रहा है।अनुराग के परिवार वाले क्या बोलें हैं देखो,फिर हम बात करेंगें ताऊ जी से।”मीनल और अनुराग की नौकरी अलग-अलग राज्य में लगी थी।शिखा ने सोचा दूर रहकर हो सकता है उनके मन का प्रेम कम हो जाए,पर वह ग़लत थी।एक दिन दोपहर को फोन पर एक गंभीर परंतु आत्मीय आवाज सुनाई दी” बहन जी,मैं अनुराग का पापा बोल रहा हूं।मेरे बेटे ने मीनल को पसंद किया है।हमने फोटो तो देखी है,पर मिलकर देखना चाहतें हैं।आप का क्या मत है,इनके विवाह में?”

शिखा इस अप्रत्याशित सवाल से चौंक गई।अनुराग के पापा का आग्रह टालना भी ठीक नहीं था।जेठ जी से तो अभी तक बात भी नहीं की थी उसने।अपने बड़े भाई को बुलवाया शिखा ने,जो उसी शहर में रहते थे।भाई ने अनुराग के पापा से मिलने की बात कही।अगले सप्ताह ही अनुराग के मम्मी -पापा शिखा के घर पर आए।संभ्रांत परिवार की सौम्यता उनके व्यक्तित्व और व्यवहार में कूट-कूट कर भरी थी।मीनल तो थी नहीं वहां,पर उन्होंने मीनल के प्रति जो सम्मान और निष्ठा दिखाई,शिखा गदगद हो गई।सजातीय बहू ना होने का लेशमात्र भी अफसोस नहीं था,उन दोनों के मुख पर।शिखा ने बात बढ़ाते हुए कहा”बहन जी,आपके और हमारे परिवार के रीति-रिवाज और परंपराओं में जमीन -आसमान का फर्क है।बच्चों की बात और है पर बड़े-बूढ़े इस असामनता को स्वीकार नहीं कर पातें हैं।मीनल के पापा होते तो,मेरा भी मनोबल बढ़ा होता।उनकी अनुपस्थिति में इतना बड़ा कदम उठाने की हिम्मत ही नहीं हो रही।अल को अगर कुछ ऊंच-नीच हो गई,तो परिवार मुझे कभी माफ नहीं करेगा।”

शिखा की बात का जवाब अनुराग की मम्मी ने हांथ पकड़कर दिया”आप बिल्कुल ठीक कह रहीं हैं।अनुराग हमारा भी इकलौता बेटा है।हमारे परिवार में भी पहले ऐसा विवाह नहीं हुआ।हम अपने बच्चों की खुशी चाहतें हैं,और कुछ नहीं।हमारा समय अलग था,अब बदल गया है समय।जाति और बिरादरी की बलि वेदी पर बच्चों के प्रेम की बलि हम कैसे चढ़ा सकतें हैं?दोनों व्यस्क हैं,समझदार हैं।अपनी मर्जी से शादी भी कर सकते हैं। अपने माता-पिता का सम्मान रखते हुए उन्होंने यह जिम्मेदारी और फैसला जब हम पर छोड़ा है,तो हमें भी बड़प्पन दिखाना चाहिए।”

उनकी बात शीतल कर गई शिखा के मन को।जेठ जी से जबरन मिलने गए अनुराग के पापा-मम्मी।घर के बुजुर्ग को उचित सम्मान देकर उनकी सहमति भी ले ली थी उन्होंने।अब शादी की बात पक्की करनी थी।अनुराग के चाचा की बेटी की शादी के बाद ही मीनल-अनुराग की शादी पक्की हुई।चाचा के बेटी की शादी में निमंत्रण दिया था।शिखा अपने बड़े भाई और बेटे के साथ गई ।वहां शादी की तैयारियां, रस्मोरिवाज,परंपराएं देखकर शिखा के मन में बैचेनी होने लगी।कैसे निभा पाएगी,मीनल इस परिवार में?हम शाकाहारी और ये मछली के शौकीन।मीनल को तो लहसुन भी नहीं भाता,इस परिवार के खान-पान से सामंजस्य कैसे बिठा पाएगी?।

बेटी की विदाई के बाद ही अतिथियों को भी उचित नेंग देकर विदा किया गया।अगले ही महीने अनुराग के पापा ने बुलवाया था,घर देखने के लिए अपना।वहां जाकर शिखा और भी सोच में पड़ गई।जेठ जी की सहमति से शादी वहीं जाकर करने की बात पक्की हुई।शादी बंगाली रीति से ही करने की बात कही शिखा ने।उसे पता था कि बेटे के प्रेम विवाह करने से मां-बाप के बहुत से अरमान अधूरे रह जातें हैं।शिखा का फैसला सुनकर अनुराग की मां की आंखों में संतोष का सुख दिखा।पूरी तैयारी अनुराग के बड़े परिवार ने अच्छे से की थी।विदाई के समय अचानक मीनल शिखा से बोली”मम्मी,आपको पता है!इन लोगों के यहां नई बहू अपने कमर में कांसे की गगरी और हांथ में मछली लेकर गृहप्रवेश करती है।मैं ऐसा कैसे कर पाऊंगी?”

शिखा ने मीनल के सर पर हांथ रख कर कहा”बेटा,प्रेम विवाह हर मां-बाप के लिए असहनीय होता है।बच्चों की खुशी के लिए आजकल तो मां-बाप मान भी जाते हैं।हमारे समय यह असंभव था।तुम्हारी खुशी और सम्मान के लिए,अनुराग ने हमारी हर इच्छा मानी।अब उसके परिवार की मान्यता के लिए तुम्हें भी जरूरी नियम मानने पढ़ेंगें।बच्चों की खुशी के लिए आजकल मां-बाप अपनी इच्छा,पसंद ,शौक सभी से हंसकर समझौता कर रहें हैं।तुम लोगों की वजह से हम कई बार ना चाहते हुए भी वही करतें हैं ,जैसा तुम चाहते हो।पूरी दुनिया से लड़ते हैं हम पर अपनी औलाद से हार जातें हैं।तुम्हें अपनी बेटी मानने का सुख जरूर देना उन्हें।”

शिखा और मीनल की बातें अनुराग ने भी सुन ली थी।शाम को गृहप्रवेश के समय  कमर में गगरी तो दे दी गई ,पर हांथ में मछली नहीं।मीनल ने अनुराग की तरफ देखा तो उसने आंखों से इशारा कर दिया कि जरूरत नहीं इसकी।शिखा ने तब आगे बढ़कर मीनल की सास से आग्रह किया कि वे अपनी परंपरा को निर्वाह करें।अनुराग की मां ने पॉलीथिन की थैली में मछली रखकर मीनल को पकड़ाई,और घर के अंदर ले गई।

दोपहर को बहू भात में मांसाहारी और शाकाहारी दोनों बना।मीनल के हांथ से घी और भात परोसा गया।रात को खाने की मेज पर मीनल अपने नए परिवार के साथ खाना खा रही थी।शिखा ने अपने भाई को दिखाया कि एक ही टेबल में कैसे उनकी लाड़ली,अपने नए परिवार के साथ अपने प्रेम को विवाह के मधुर बंधन में बांधना सीख गई।

शुभ्रा बैनर्जी 

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