प्रतिस्पर्धा – युक्ति खत्री

कई बार हम पर दूसरों की बातो का इतना प्रभाव हो जाता है कि हम अपनी सोंच समझ नैतिक मूल्यों सब को ताक पर रख देते हैं।उन दिनो कुछ समय से मैं कुछ विदेशी और कुछ नये देशी मोटिवेशनल,मैनेजमेंट वक्ताओं को सुन रही थी जो लोगो की सोंच समझ को अलग ही दिशा में मोड़ने का प्रयास कर रहे थे। उनके अनुसार यदि हमे जीवन में कामयाब होना है, कैरियर की ऊचाईयों को छूना है तो हमे लालची और ईर्षालू बनना ही होगा।हममें आगे बढने का जितना लालच होगा,कामयाबी  के लिए हम उतना ही अधिक प्रयास करेंगे। ईर्षा हमारी प्रतिस्पर्धी  क्षमताओं को बढ़ाती है।हम अघिक काॅमपटेटिव बनते हैं। तो सौ बात की एक बात ये कि कामयाबी  पाने के लिए ईर्षा और लालच जरूरी है । बस समझ गए हम।

    मेरी बेटी अनन्या और मेरी सहेली की बेटी रितिका में एक साल का अंतर है।दोनो एक ही स्कूल में पढ़ती हैं।मेरी बेटी एक साल आगे है।दोनो हमारी ही तरह खूब पक्की सहेलियां हैं।मेरी बेटी अनु जहाँ साधारण से कुछ ऊपर ही है, रितु असाधारण क्षमताओं से परिपूर्ण है।पढने लिखने,खेल कूद,चित्रकला आदि सबसे अव्वल। बचपन से ही हर क्षेत्र में मैडल,पुरस्कार,सम्मान सब मिलता रहता।

हम पति पत्नी अनु को भी खेलकूद के लिए प्रेरित करते,उसे शौक भी था पर मैडल लाने की जगह अनु कोई न कोई चोट लगा के आ जाती।रितु को बेस्ट एथलीट की ट्राफी मिली थी और मैने अनु को लेडी राणा सांगा की उपाधि से नवाज़ दिया था,जिसे सुन कर उसे बड़ा मजा आता था।’ मतलब मैं बहादुर योद्धा हूं ‘।मै भी हस कर हां कह देती।

रितु की कामयाबी देख कर मुझे बड़ा हर्ष होता क्योंकि वो भी मुझे अपनी बेटी की तरह ही प्रिय थी।परंतु मेरा भी एक मां  का ही मन था,मैं भी अपनी बेटी को इतने ही ऊंचे उठते देखना चाहती थी। लेकिन कभी उसकी तुलना रितु से नही करती न ही कभी उसे हतोत्साहित होने देती क्योंकि जब हम छोटे थे और हमारी माँ हम भाई बहन की तुलना दूसरे बच्चों से करती तो हमे  बड़ा बुरा लगता और माँ से कहते कि क्या  वह हममें हीन भावना पैदा करना चाहती हैं।अब जब स्वयं उसी मोड़ से गुज़र रही हूँ तब समझ में आता है कि ये तो एक माँ सुलभ भावना है,जो हमेशा अपने बच्चे को सबसे आगे सबसे कामयाब देखना चाहती है।(चाहे खुद ने जीवन मे कोई झंडे न गाड़े हों)…खैर तुलना करना तो ठीक न था पर तभी एक उपाय सूझा कि क्यों न उसके मन में ईर्षा का बीज बोया जाए। इससे उसमे प्रतिस्पर्धी क्षमतायें बढ़ेगी और अनु भी कुछ और आगे बढ़ने को प्रेरित होगी।इसलिए मैं आए दिन रितु की उपलब्धियों का बढ़ चढ़ कर बखान करती बताती कि कितनी खुशी हो रही है मुझे ,वो भी मेरी हां मे हां मिलाते कहती कि वो भी बहुत खुश है।

एक दिन जब वो स्कूल से वापस आई तो मैने उसे खुश हो कर बताया कि नीना आंटी  का फोन आया था रितु को बेस्ट स्टूडेंट का अवार्ड मिला है।अनु खुशी से चहक कर बोली अरे मम्मा रितु जैसी स्कॉलर को ये अवार्ड नही मिलेगा तो क्या हम जैसों को मिलेगा।हमने तो स्कूल में ही पार्टी कर ली।मुझे सबको ट्रीट देनी पड़ी,मेरी बेस्ट फ्रैंड को अवार्ड जो मिला था।

उनके स्पोर्ट्स डे पर हम सब गये थे ।

रितु को चार इवेंट्स मे मैडल मिले थे।मेरी आँखे अनु पर ही लगी थीं।वो अपने हाउस के प्रतियोगियों को चीयर करने में व्यस्त थी।यदि कोई बच्चा गिर जाता या किसी को कुछ लग जाता तो वो भाग कर उसकी मदद करने पहुंच जाती,कोई दोस्त हार गया तो उसे सांत्वना देती,जो जीत गया उसकी खुशी में सहभागी बनती।मन ही मन मुझे ये देख कर खुशी भी हो रही थी।घर आ कर मैने अनु से कहा मुझे बड़ी खुशी हुई उसे ऐसा करते देख कर तो वो बोली आप ही तो सिखाती हो कि हमे सबकी मदद करनी चाहिए। तभी मुझे याद आया कि मुझे क्या करना है।मैं रितु की तारीफ करते हुए बोली ,आज तो मजा ही आ गया रितु ने चार चार मैडल जीते हैं,उसके तो क्या कहने वाह! अनु खुश हो कर बोली  ,चलो न आज उन सबको डिनर पर बुलाते हैं उसकी जीत की खुशी में।मैने एक ठंडी आह भर कर कहा , हाँ बिलकुल।….

मैं अपनी तरफ से हर संभव प्रयास कर रही थी कि शेक्सपियर का हरी आँख वाला राक्षस (ईर्षा)एक बार उसे काट ले ,पर सब व्यर्थ ही था।दोनो लडकियां आपस में मस्त थीं।न अनु कोई जलन थी न रितु को कोई अभिमान। …. मैंने भी अब ये बेवकूफाना प्रयास करने बंद कर दिए क्योकि मैं अनु की सकारात्मकता को ज़रा भी क्षति नहीं पहुंचाना चाहती थी।इससे तो अच्छा है कि हम उसके नैसर्गिक गुणों  को और विकसित करने का प्रयास करें।


अनु ने दसवीं की परीक्षा अच्छे नंबरों से पास करी।पर दूसरों के नंबर देख कर कहीं न कहीं मलाल था कि और अच्छे नंबर आते तो…

बारहवीं की परीक्षा में अनु के और अच्छे नंबर आए,हम खुश थे। उसने मीडिया एंड कम्युनिकेशन्स में स्नातक करने का निर्णय लिया।एक बहुत अच्छे कालेज में उसे दाखिला मिला।अगले साल रितुने भी अच्छे नंबर्स से बांरहवी पास करी और इंजीनियरिंग करने लगी। अब धीरे धीरे मैं अनु का व्यक्तित्व समझने लगी थी,उसको जानने वाला हर व्यक्ति उसे पसंद करते था। वो विभिन्न वाद विवाद प्रतियोगिताओं में खूब पुरस्कार जीतती,अपने कालेज का नाम रोशन कर थी।उसके सभी प्रोफेसर,सीनियर,जूनियर उसके आकर्षक व्यक्तित्व,हंसमुख और मददगार स्वभाव से बड़े प्रभावित रहते।उस दिन समझ आया कि मानव जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि तो यह ही है कि आपको सबका प्यार,मान सम्मान मिले।

अनन्या अपने कालेज के सम्मान समारोह में जब पुरस्कार ले कर मेरे पास आई तो खुशी से आँखे छलछला आईं।वो बोली मम्मा ये सब आप लोगो की वजह से हुआ है।आप ने और पापा ने मुझे हमेशा प्रोत्साहित किया।रितु की प्रगति से आप हमेशा खुश होती पर कभी मेरी तुलना उससे नही करी।इन सब बातों ने मुझे हमेशा प्रेरित किया अच्छा करने के लिए,और मैं हमेशा अपनेआप को और बेहतर बनाने का प्रयास करती रही।उसने मैडल मेरे हाथ मे रख कर थैंक यू कहा और मेरे गले लग गई। उसकी बातें सुन कर मुझे गर्व भी हो रहा था और ग्लानि भी कि मैं उसे  प्रतिस्पर्धी बनना चाहती थी। सच में वो प्रतिस्पर्धा कर भी रही थी लेकिन अपने आप से, खुद  को बेहतर बनाने के लिए। और वो जीत ही गई,अपनी सकारात्मक सोच के कारण।

इस पूरे प्रकरण से मुझे यह समझ आया कि हम सबका एक प्रतिभा क्षेत्र होता है और सबका अपना अपना एक समय चक्र भी होता है। कुछ लोग  जल्दी ही प्रगति की राह पकड़ लेते हैं तो कुछ को थोड़ा समय लगता है।हमारी कर्मशीलता ही हमारे समय और भाग्य का निर्धारण करती है। आपको प्रेरित करने के लिए कोई भी अनैतिक मूल्यों का कितना भी बखान कर ले पर यदि उस क्षेत्र में आपकी रूचि या प्रतिभा नहीं है तो किसी को हराने या उससे आगे निकलने के लिए आप कितना भी लालच या ईर्षा पाल लें आप नहीं कर सकेंगे पर अपनी क्षति ज़रूर कर लेंगे। इससे बेहतर है कि जिस क्षेत्र में हमारी प्रतिभा या रुचि है उसी में धैर्य पूर्वक पूरे मनोयोग से अपना कर्म करते रहें।विश्वास रखिए ‘आपका टाइम आएगा’।

स्वरचित ,मौलिक रचना

युक्ति खत्री.

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