सुशिक्षित – युक्ति खत्री

प्रिया एक पढी लिखी सुलझे विचारों वाली एक समझदार महिला है। उसने फैशन डिजाईनिंग में डिग्री ली है। उसका प्यारा सा परिवार है जिसमें माँ, पिताजी उसके पति सुमित जो एक कंपनी में उच्च पद पे है और दो बच्चे चौदह वर्ष की शुभी और दस वर्ष का अनय है। एक नन्द है जो  मुंबई में रहती है।

घर के निचले हिस्से में उसका एक सुन्दर सा डिजाईनिंग स्टूडियो है।

दोपहर  के खाने के बाद सभी लोग आराम कर रहे थे की घर की घंटी बजी। प्रिया ने उठ कर दरवाजा खोला तो देखा कि उसके ताया ससुर के बेटे अपने पूरे परिवार के साथ सामने खडे थे, जो पास के ही शहर में रहते हैं। प्रिया ने उनके पैर छुए और खुश हो कर बोली,’अरे वाह भइया आइये, आप ने तो जबरदस्त सरप्राइज़ दिया। प्रिया ने मम्मी पापाजी को बुलाया, उसके दोनों बच्चों शुभी और अनय ने भी अपने ताई,ताउजी  और दीदी भइया का अभिवादन किया ।

भइया बोले,चलो अब गरमागरम चाय पिला दो ड्राईव करके थकान हो गई है।

हाँजी अभी लाई,कह कर प्रिया किचिन में आ गई।

पीछे पीछे अनय भी आ गया  पानी पीने। उसने अनय से कहा, ‘,बेटा जल्दी से सबको पानी पिलाओ सब थके हुए आए हैं ।अनय ने एक ट्रे में चार ग्लास रखे और फ्रिज में से ठंडी बोतल निकाल उनमें पानी भर के ले गया।

प्रिया ने कहा जरा दीदी को एक मिनट के लिये बुला देना ।अनय ने  सबको पानी दिया और अपनी दीदी से कहा कि आपको मम्मी बुला रही हैं।

शुभी रसोइ में गई तो प्रिया ने गैस पर एक तरफ चाय रखी थी और दूसरी तरफ कढाई में कुछ चिप्स वगैरह तल रही थी। ।उसने शुभी से कहा कि दो तीन प्लेटो में  नाश्ता निकाल कर टेबल पे रख दे।अभी शुभी नाश्ता लगा ही रही थी कि भइया अपनी पत्नी से बोले कि सुषमा तुम जरा किचन में जाकर अपनी देवरानी की मदद कर दो देखो उसने बच्चों को काम पे लगा रखा है।

तभी भाभी अंदर आईं और बोली, प्रिया बताओ क्या करना है मैं करवा देती हूँ, बच्चों को जाने दो।प्रिया बोली भाभी आप बैठिए अभी थक कर आई हैं, कोई एसा काम नहीं है।बस शुभी थोडा नाश्ता वगैरह लगा रही है बाकी सब तैयार है। आइये चाय पीते हैं।


बातों ही बातों में पता चला कि उनकी बेटी नीति को हमारे ही शहर में एक अच्छे कालेज में एम बी ए में  एडमीशन मिल गया है और भाभी की तबीयत जो काफी दिनों से नासाज़ चल रही थी तो एक स्पेशलिस्ट का भी एपाइंटमेट उन्हे दिखाने का तो इन दोनों कामों के लिए वो लोग यहाँ आए हैं दो दिन के लिये।

चाय के बाद सभी लोग आराम करने चले गये।

प्रिया ने सुमित को फोन करके उनके आने सूचना दी  और बच्चों से कहा कि अपना होमवर्क समय से कर लें ताकि सबके साथ समय बिता सकें।

फिर थोडी देर के लिए वो अपनी बुटीक पर चली गई। भइया भाभी भी किसी को मिलने चले गये।

पढाई के बाद जब बच्चे बाहर आए तो उसने शुभी से कहा कि क्राकरी निकाल कर पोंछ कर अच्छे से टेबल पर लगा दो, तो अनय ने पूछा कि वो क्या कर दे तो प्रिया बोली कि सलाद कटा हुआ है एक प्लेट में सुन्दर तरीके से लगा दो  और पानी का जग भर के टेबल पे रख दे ।

बच्चे अभी ये कर ही रहे थे कि भइया भाभी और बच्चे घर में दाखिल हुए। शुभी और अनय को काम करते देख उनकी बेटी नीति बोली, ‘”चाची  आप बच्चों से कितना काम करवाती हैं। आपको पता है न कि चाइल्ड लेबर कानूनन अपराध है?”उसकी बात सुनकर सब हसं दिये।

शुभी और अनय ने अपनी माँ को अचंभित नज़रो से देखा तो प्रिया ने भी आखों से इशारा किया कि जाने दो।

सब खाना खाने बैठे तो प्रिया गर्म रोटियां बनाती और शुभी सबको सर्व करती रही।

दूसरे दिन सभी को सुबह जल्दी जल्दी अपने काम पर निकालना था। सभी लोग फटाफट तैयार होने लगे।बच्चे नहा कर आए तो उनहोंने अपने कपड़े लांडरी बास्केट में डाले और गीले तौलिये फैला कर आए। उनका दूध नाश्ता टेबल पे रखा था।बच्चों ने फटाफट दूध नाश्ता किया और रसोइ में बर्तन रखने गये। भइया ने कहा, ‘अरे ये सब छोडो हो जायेगा तुम लोग अब स्कूल के लिए निकलो।


बच्चे सुमित के साथ स्कूल चले गये।

तभी नीति भी मम्मी के बाथरूम से नहा के निकली  और  वो नहाने गईं तो देखा कि नीति के उतारे हुए कपड़े वही पडे थे, उसके गीले अंडर गार्मेंट भी एक कोने में पडे थे। सफाई पसंद मम्मी को बडा खराब लगा,उन्होंने उसको आवाज़ लगाई कि नीति अपने कपड़े लेलो यहाँ से ..तभी सुषमा भाभी दौडी आईं उसके कपड़े धो कर सूखने डाल आईं। सभी लोग अबतक तैयार हो कर नाश्ते की टेबल पे आ गए। प्रिया ने रसोइ से नीति को आवाज़ लगाई कि नीति आ कर देख लो तुम्हारी कॉफी कैसी बनानी है।

नीति अपनी मम्मी से बोली, ‘ प्लीज आप जा के बता दो न माँ आपको तो पता ही है कि मैं कैसी कॉफी  पीती हूँ।

तब तक उनका बेटा नितीश नाश्ता करके उठ गया अपनी प्लेट वही छोड ,टीवी देखने चला गया ।कल रात भी वो अपनी थाली में बहुत सारा जूठन छोड के उठ गया था,सुमित चुपचाप उसकी थाली रख आये थे क्योंकि पापा जी को खाना बरबाद करने से बडी चिढ थी ,वो शुभी और अनय को भी हमेशा समझाते कि जितना भूख हो उतना ही थाली में लो भले ही भूख हो तो और ले लो लेकिन वेस्ट मत करो।

इसलिए मम्मी, पापा जी को बच्चों का यह व्यवहार अच्छा तो नहीं लग रहा था पर चुप थे कि दो दिन के लिये आए हैं तो क्या बोलें।

सब नाश्ता करने बैठे तो बातों बातों में फिर से भइया ने वही राग छेड दिया कि ये बच्चों के पढने लिखने के दिन उनसे ये सब काम मत कराया करो।

अब प्रिया का धैर्य जबाब दे रहा था वो  किसी का अपमान नहीं करना चाहती थी लेकिन उन्हे सही गलत का एहसास भी कराना  चाहती थी,  इसलिए  उसने बडी शालीनता से कहा कि, “आप किस काम की बात कर रहे हैं भइया ? कोई घर आए तो उन्हे पानी पिलाना, नहाने के बाद अपने कपड़े तौलिया जगह पर रखना, खाने के बाद अपने बर्तन उठाना या किसी मेहमान के आने पर अपनी माँ का हाथ बटाना ..भइया ये काम नही बेसिक मैनर्स है। या आप उन्हे संस्कार भी कह सकते हैं।

और यकीन मानिये ये सब काम बच्चों की पढाई में कतई अवरोधक नहीं होते।ये तो बच्चों को आत्म निर्भर बनाने का प्रथम चरण है।  बडे होकर अपने काम के साथ साथ  अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियां भी तो निभानी हैं , लेकिन  अफसोस है कि आजकल ज्यादातर माता पिता अपने बच्चों को ये सब ठीक से सिखा ही नहीं पा रहे”।


ये सुनकर भाभी सफाई देते हुए बोली ,”कि आजकल तो पढाई लिखाई ही इतनी हो गई है कि बच्चों को कुछ और करने का समय ही नहीं मिलता”।

“और आजकल बच्चों को अपने पैरों पर खड़ा करना उन्हे आर्थिक रूप से आत्म निर्भर बनाना कितना जरूरी हो गया है, चाहे वो बेटा हो या बेटी।” भइया बोले।

“लेकिन भइया सिर्फ आर्थिक रूप से ही क्यो उन्हे हर प्रकार से आत्म निर्भर बनाने की आवश्यकता है ताकि वे अपनी छोटी छोटी दैनिक आवश्यकताओं के लिये किसी पर निर्भर रहने की जगह स्वावलंबी बने।

बच्चों को अपने पैरों पर खड़ा करना आज ही नहीं हमेशा से जरूरी था ताकि वे बडे होकर अपने काम और परिवार की जिम्मेदारी उठा सकें।”

“भइया परिवार ही बच्चों की प्रथम पाठशाला होती है और माता-पिता ही उनके पहले शिक्षक है, बच्चों में अच्छी आदतें डालना, नियम और अनुशासन के द्वारा धीरे-धीरे अपने पैरों पर खड़ा होना सिखाना उनका नैतिक कर्तव्य है।लेकिन अफसोस कि आजकल बच्चों को सिर्फ इसलिए काबिल  बनाना है ताकि उन्हे बढिया पैकेज वाली नौकरी मिल जाये ,वो बडा घर ले सके, शानो-शौकत से जी सके।कैरियर,आधुनिकता भौतिकतावाद की इस अंधी दौड़ में हम बच्चों को पारिवारिक मूल्यों की शिक्षा देना भूलते जा रहे हैं। जिस कारण वे न इन छोटे छोटे कामों का महत्व समझ पाते हैं और न ही इन्हें करने वाले की कद्र करते हैं।”

भइया भाभी उसकी बातें सुनकर चुपचाप बैठे थे।

प्रिया भावावेश में इतना सब बोल तो गई पर उसे लगा कि वे लोग कहीं बुरा न मानो जाएँ हालांकि उसे पता  था कि उसने कोई गलत बात नहीं कही है। वो रसोइ में कुछ देखने के बहाने से उठ कर चली गई।

मम्मी पापा दोनों ही मन ही मन खुश थे क्योंकि वे भी सुनील भइया को समझना चाहते थे।

प्रिया के जाने के बाद मम्मी भइया से बोली, “सुनील तुम लोग प्रिया की बात का बुरा मत मानना, उसने जो  भी कहा वो गलत नहीं है माँ बाप का फर्ज  कि बच्चों का सही मार्गदर्शन करें, अब देखो तुम्हारे बच्चे कितने होशियार हैं पढाई में  यदि उनमें थोडे से व्यवहारिक गुण भी आ जायें तो चार चाँद लग जायेंगे उनके व्यक्तितव में । किताबी ज्ञान के साथ साथ व्यवहारिक ज्ञान भी दो उन्हें। सिर्फ शिक्षित ही नहीं सुशिक्षित बनाओ उन्हे ताकि बडे होकर अपने काम और परिवार के साथ तारतम्य बना कर चल सकें “।

भइया भाभी को शायद अपनी गलती का अहसास हो रहा था, क्योंकि वे लोग धीरे धीरे गरदन हिला कर उनकी हाँ में हाँ मिला रहे थे ।

प्रिया खुश थी कि माँ ने सब संभाल लिया था।

भइया भाभी को उनकी बातें कितनी समझ आईं वो तो पता नहीं पर वे उनके घर  एक चिंगारी जरूर छोड़ गये थे जिसको सुलगने से बचाना अभी बाकी है।

 

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