पति का सहारा पत्नी बन गई  – कनार शर्मा 

रोहन कुछ दिनों से बहुत परेशान था उसके सामने रखी चाय भी ठंडी हो गई…

वर्षा ने रसोई से आकर देखा और बोली “अरे आपकी चाय पर तो पपड़ी जम गई है” आपने पी क्यों नहीं?? लाइए दोबारा गर्म कर लाती हूं कप उठाते हुए बोली!!

दोबारा से चाय गरमकर उसके सामने रख कहने लगी कुछ परेशानी है क्या?? अगर हो तो आप मुझसे कहिए ना तो आप ना ठीक से खाते हैं ना बातें करते हैं ना बच्चों से बोलते हैं मां भी कह रहे थे बड़े गुमसुम से रहते हैं। कल भी आप हेलमेट ले जाना भूल गए कभी पर्स ले जाना भूल जाते हैं क्या हुआ बताएंगे…???

वर्षा महीने की 1 तारीख है सबके पेमेंट करने होंगे और मेरे काम को ठप हुई छः महीने हो गए हैं रजिस्ट्री बंद होने पर मकान जमीन की खरीदी बिक्री पर रोक लगी हुई है। इतने दिनों से खर्चा कर रहा हूं और काफी पैसा जमीन में लगा है अब मेरे पास जमा पूंजी भी नहीं बची है… घर का खर्चा कैसे चला लूंगा मुझे तो तुमसे कहने में बड़ी शर्म आती है…!!

वर्षा फटाफट कमरे में गई और अलमारी में से रुपए निकालकर रोहन के हाथ में रखते हुए बोली “यह लीजिए जो पेमेंट हो कर दीजिए महीने का राशन पानी की चिंता आप मत करिए मैं हूं ना सब संभाल लूंगी बोल मुस्कुराई”….!!

हाथ में रुपए लिए रोहन उसे रसोई में जाता देख अतीत की गलियारों में खो गया…

पैसा पैसा पैसा आखिर कितना पैसा चाहिए होता है तुम्हें जब भी घर में घुसा अपनी फरमाइश के लिस्ट खोलकर बैठ जाती हो। यह भी नहीं सोचती कि मैं थका हारा काम से लौटा हूं… रोहन ने जोर से अपना बैग पटकते हुए बोला…!!!




देखिए जी आप फालतू में ही मुझ पर चिल्ला रहे हैं अब आप ही बताइए सुबह आपको ऑफिस जाने की जल्दी होती है शाम को आप देर से घर आते हैं खाना खाकर सो जाते हैं, फोन करूं तो कहीं भी बैठे हो तो जोर से चिल्लाते हैं कहते हैं घर आकर बात करूंगा, छुट्टी वाले दिन आपको सिर्फ खाना,आराम करना होता है उसके बाद अपने दोस्तों से मिलने चले जाते हैं फिर आप ही बताइए आखिर ऐसा कौन सा समय है जब मैं अपनी बात आपके सामने रख सकूं…????

अच्छा अब इतना हंगामा मचा ही दिया है तो बोलो क्या चाहिए मुझे ₹5000 चाहिए थे बस मैं पैसा छापने की मशीन हूं…बस तुम्हारे बोलने की देर है और पैसा मशीन से बाहर… ऐसा नहीं होता और मैंने तुम्हें 1 तारीख को ₹10000 दिए थे वह सब कहां उड़ा दिए क्या अपने भाई को दे आई????

कैसी बातें करते हैं वो तो महीने के राशन, दूध, पेपरवाला, कामवाली, नल-बिजली के बिल पेमेंट में ही खर्च हो गए…!!

तो फिर आप तुम्हें क्या जरूरत आन पड़ी देखिए हर महीने चिंकी के दूध का पाउडर, डाइपर, साबुन शैंपू और भी न जाने कितनी चीजें जो अचानक ही मुझे चाहिए होती है और फिर अपने लिए कुछ लेना हो तो हर बार आपको हिसाब दो इसलिए आप मुझे 5000 दे दीजिए मुझे जो करना होगा मैं कर लूंगी और ऐसा आप हर महीने कर दीजिए करिए जिसका आप मुझसे हिसाब मत लिया करिए।

तुम्हें क्या लगता है मेरे घर में पैसे का पेड़ उगते हैं जो तुम्हारे कहते ही तुरंत तोड़कर तुम्हें दे दूं… मैं जितना दे सकता हूं वो मैं दे देता हूं इसके अलावा मेरे पास अब कोई रुपए नहीं है।

मैं शादी के समय अच्छी भली नौकरी कर रही थी फिर आपने कहा घर के साथ बच्चे की जिम्मेदारी आ गई है अब तुम नौकरी छोड़ दो मैं सब संभाल लूंगा। अब 2 साल होने आए और हर वक्त आपकी एक ही रामकथा होती है पैसे नहीं है पैसे नहीं है… देखिए सीधे से तय कीजिए ना आपको परेशानी ना मुझको…!!

ये रखो हजार रुपए और ये तुम्हारा घर है तुम यहां कामवाली बाई नहीं हो जो तुम्हारी तनख्वाह बांध दूं…फिर तुम में और उसमें  क्या फर्क रह जाएगा?? कभी सोचा है!!

रोहन को पैसे नहीं देने थे इसलिए वो वर्षा को जलील करने का एक मौका नहीं छोड़ रहा था। वो समझ ही नहीं रहा था कि ऐसे वर्षा का आत्मसम्मान छलनी हो रहा है…आज तो उसने उसकी तुलना कामवाली से कर दी थी जिसे सुन वर्षा खिन्न हो ठीक…!!!




मन ही मन उसने भी ठान लिया जैसे मेरा “सहारा” बनना चाहिए था उसने मुझे जलील करने में जरा देर नहीं लगाई। अब मैं अपना “सहारा” खुद ही बनूंगी, खुद पैसे कमा आगे से रोहन के आगे अपनी जरूरतों के लिए नहीं गिड़गिड़ाएगी।

वर्षा ने पार्लर कोर्स कर रखा था उसने हॉल के पास वाले स्टोर को खाली कर एक आईना और कुर्सी लगा अपना काम शुरू कर दिया कुछ ही दिनों में कॉलोनी की कई महिलाएं उसके पास आने लगी। उसकी व्यवहार कुशलता और मिलनसारता के चलते उसका काम बहुत अच्छे से चल पड़ा। कई बार सास-ससुर, जेठ-जेठानी उसका विरोध करते कितनी ही बार बुरा भला कहने से नहीं चूकते थे। मगर अब वर्षा उन्हें साफ कह देती अगर आप लोग मेरे काम में सहयोग नहीं कर सकते तो मेरे काम में दखल भी नहीं करेंगे और फिर मैं घर में बराबर सहयोग करती हूं और अपनी बच्ची को किसी के सहारे नहीं छोड़ती फिर आप लोगों को मेरे काम से क्या परेशानी है????

सास सुषमा जी को अपने बेटे बहू के बीच में हुई बातों के बारे में सब पता था उनका आज्ञाकारी बेटा उन्हीं के कहने पर अपनी पत्नी को पैसों की तंगी बनाकर रखता था…सिर्फ शक के चलते की बहू अपना सारा पैसा अपने मायके में दे आएगी जबकि ऐसा कुछ भी नहीं था वर्षा को रोजमर्रा की जरूरतों के लिए पैसा चाहिए था।

इतनी मुश्किलों और विरोधियों के बाद भी वर्षा 4 साल में सशक्त हो गई यह कोई पहली बार नहीं था उसने रोहन की मदद दूसरी बार की थी वह भी बिना कुछ सवाल जवाब किए क्योंकि उसे पूरा भरोसा था कि उसके पति को पैसों की जरूरत है…!!




अचानक कुकर की सीटी सुन रोहन की तंद्रा भंग हुई और दौड़कर रसोई में पहुंच बोला “भाग्यवान काश मेरी सोच तुम्हारे जैसी होती जब तुम्हें रुपए पैसे की जरूरत होती मैं बिना किसी शक, सवाल के तुम्हें दे देता, तुम्हारा सहारा बनता… हम पतियों को यही सिखाया जाता है पत्नी के हाथ में पैसा नहीं देना चाहिए। मगर ऐसा नहीं है जब औरत घर को चलाती है तो फिर घर,घरवालों की जरूरतों को वो हम मर्दों से ज्यादा अच्छे से समझती है, बचत भी करती है, जरूरत पड़ने पर कंधे से कंधा मिलाकर भी चलती है फिर क्यों हम रुपए पैसे के मामले में औरतों पर विश्वास नहीं करते जबकि सही मायनों में गृहलक्ष्मी तो वही है…बोल वर्षा को गले लगा लिया”…!!

दोस्तों,

चुकीं ये कहानी है इसीलिए एक सुखद मोड़ पर आकर इसका अंत हो रहा है मगर सच्चाई इससे परे हो सकती है ना जाने ऐसी कितनी वर्षा है जो रोज अपने पति के सामने पैसों के लिए गिड़गिड़ाती हैं, सहारे के लिए तड़पती है।

कई बार पारिवारिक परिस्थितियां ऐसी होती हैं की वे चाहकर भी नौकरी या व्यापार नहीं कर पाती और जीवनभर इसी तरह तंगहाली में जीती है पति की तनखा होते हुए भी वह अपनी ख्वाहिशों को पूरा नहीं कर सकती है क्योंकि पति को लगता है वह फिजूलखर्ची कर रही है या उन्हें पैसों के इस्तेमाल की सही समझ नहीं है।

मगर ऐसा क्यों आदमियों की सोच औरतों के लिए इतनी खराब कैसे होती है???? एक गृहणी कितनी बार अपनी बचत से मुश्किल वक्त में इन्हीं घरवालों को चकित करती है… हर बार पैसे का सदुपयोग करने की सोच रखती है… फिर क्यों हमारा प्रगतिशील समाज आज भी वही पुरानी सोच का बंधक है… मेरे हिसाब से इसे पूरी तरह बदलना चाहिए…!!!

बदला भी है क्योंकि अब एक महिला ने शिक्षित आत्मनिर्भर बनकर घर और बाहर हर जगह अपनी शक्ति का परचम लहराया है!!

आशा करती हूं मेरी यह रचना आपको जरूर पसंद आएगी  धन्यवाद!!

आपकी सखी

कनार शर्मा 

(मौलिक रचना सर्वाधिक सुरक्षित)

#सहारा 

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