अपनी तरह मुझे भी “सहारा” बना लीजिए !! – मीनू झा 

आज भी काफी मन लगाकर काम कर रही है देखना शाम तक जरूर फिर पांच सौ रूपये की डिमांड आ जाएगी। मैं तो तंग आ गई इनको काम के लिए रखकर दिमाग खराब कर देती है हर आठवें दिन–पति मोहन के लिए ब्रेकफास्ट प्लेट में लगाते लगाते मीरा बड़बड़ाए जा रही थी।

अच्छा.. लगता है फिर शाम को दफ्तर से आने के बाद चाय के साथ साथ जानकी चाची प्रकरण वाली गरमागरम न्यूज़ मिलने वाली है–मोहन ने मजाक किया।

देखो..मेरा मिजाज पहले से ही बिगड़ा पड़ा है,ये बेवक्त के और फालतू मजाक कर और मत खराब करो प्लीज।

ओके बाबा..वैसे भी मेरे पास बस दस मिनट ही है, जल्दी से ब्रेकफास्ट कर लूं..वरना पता चलेगा..।

मोहन के निकलने तक जानकी भी दूसरे घर का काम निपटाने जा चुकी थी। 

मीरा सोच-सोच कर तनाव में थी कि जानकी फिर जब दोपहर के बर्तन करने आएगी तो फिर अपना राग लेकर बैठ जाएगी।

दरअसल जानकी चाची पचास पचपन के आसपास की एक बेसहारा औरत थी। कोरोना में उन्होंने अपना पति भी खो दिया था,महामारी के बाद सोसायटी के गार्ड ने उसे रखवा दिया था। जबकि वो उनकी उम्र देखकर उन्हें रखने के पक्ष में बिल्कुल नहीं थी,पर जब गार्ड और खुद जानकी बार बार प्रार्थना करने लगे तो मीरा ने दयावश उन्हें रख लिया।बाद में पता चला उनकी उम्र के ही चलते उन्हें काम नहीं मिलता जबकि मीरा ने पाया कि अधिक व्यस्तता ना होने की वजह से वो काम सफाई से और दिल लगाकर करती है,बाद में काम देखकर ही मीरा ने उन्हें अपनी पहचान के एक बैचलर के घर भी काम  दिलवा दिया।




दो तीन महीने तो ठीक रहे पर पिछले कुछ महीनों से मीरा देख रही थी कि वो हर हफ्ते ही अपने पैसे एडवांस मांगने लगी थी। हर बुधवार के बुधवार वो पांच सौ रूपए मांग लेती..। मीरा ये भी अच्छी तरह समझ रही थी कि महीने के सारे पैसे एडवांस में ले लेने वाली जानकी आखिर महीने के अंत वाले खर्चे कैसे संभालती होगी तो ना चाहते हुए भी उसे फिर अंत में भी पैसे देने पड़ते,जिसके चलते दो हजार पर हुई बात तीन हजार तक पहुंच जाती।जिससे उसका दिमाग खराब रहता था।

“जानकी चाची आज आपसे एक बात पूछनी थी सच सच बताना”

“जी”

आप ये हर बुधवार के बुधवार पैसे लेकर क्या करती हैं। आपको पता है हम भी नौकरीपेशा लोग हैं ,महीने के बीच में पैसे निकालने मुश्किल होते हैं और हर महीने आपकी सैलरी के अलावा भी पैसे देने पड़ते हैं। आखिर कितने दिनों तक चलेगा ऐसा?आज आपको बताना होगा कि बुधवार को पैसे आप लेती क्यों है?

वो मेमसाब दरअसल आप तो जानती है मेरे कोई आगे नाथ ना पीछे पगहा है,पर मेरी बस्ती में कई दुखियारे लोग हैं,एक कंपनी(एन जी ओ) वाले आते हैं और जिनकी विवाह योग्य लड़कियां हैं उनको बीस से पचास हजार तक की मदद करते हैं, बदले में उन्हें हर हफ्ते बुधवार के बुधवार पांच सौ रूपए जमा करने होते हैं,जो नहीं दे पाता उनसे ब्याज ज्यादा लेते हैं या फिर उनके घर की कोई कीमती चीज उठा ले जाते हैं तो बड़ी दुखी अवस्था हो जाती हैं।अब मैं तो ठहरी अकेली..जैसे तैसे पेट तो भर लेती हूं पर परलोक भी तो सुधारना है ना। इसलिए आपसे पांच सौ रूपए लेकर वही चली जाती हूं और पैसे ना दे पाने वाले किसी ना किसी जरूरतमंद को दे देती हूं,कई लोगों ने कई बार पैसे वापस भी किए हैं तो उनसे फिर किसी और की मदद कर देती हूं,मैडम गरीब लोगों का कोई सहारा नहीं होता मुझे ऐसा करके बहुत अच्छा लगता है…और मेमसाब कल फिर बुधवार है तो अगर आप पैसे??




पर तुम अपना खर्चा कैसे निकालती हो जानकी चाची सारे पैसे तो बांट ही देती हो..

वो लड़का जहां आपने काम पर लगाया है ना उसके बचे-खुचे खाने से तो  मेरा पेट भर ही जाता है। रही थोड़े बहुत इधर उधर के खर्चे तो उसी बच्चे के पैसों और आप भी महीने के खत्म होने पर जो पकड़ा देती हैं तो काम अच्छे-से चल जाता है। पर मेमसाब मैं जानती हूं हर महीने हजार रूपये आपसे ज्यादा ले लेती हूं,पर आप चिंता मत करिए मेरा पति एक बीमा करवाकर गया था,उसके पैसे मुझे मिलने वाले हैं कुछ ही दिनों में मैं उससे आपके सारे कर्जे चुका दूंगी।

मीरा जानकी की उदारता देखकर दंग थी। कितना बड़ा दिल है इस दो तीन हजार कमाने वाली का जो सबका सहारा बनने के लिए तैयार रहती है,माना उसके ऊपर कोई जिम्मेदारी नहीं है..पर आर्थिक रूप से सक्षम इंसान भी कहां इतना सोच पाता है। खुद मीरा हजार रुपए ज्यादा निकल जाने से परेशान थी…जबकि एक दिन पति के साथ रेस्टोरेंट चली जाती है तो दो हजार का बिल बन जाता है।

पता नहीं क्यों अपनी फिजूलखर्ची और बेकार के खर्चों पर हमारा कभी ध्यान नहीं जाता पर किसी को सौ पचास दे दें तो हम भूल नहीं पाते–मन ही मन सोचने लगी मीरा।

जानकी चाची..आपको मेरे एक्स्ट्रा पैसे लौटाने की कोई जरूरत नहीं,उन पैसों से भी आप किसी कन्यादान में मदद कर देना और हां अगले महीने से आपकी सैलरी तो दो हजार ही रहेगी,एक हजार एक्स्ट्रा दो बुधवार के पांच पांच सौ मेरी तरफ से समझ लेना… आखिर मुझे भी तो पुण्य का हिस्सा बनना है।कहीं ना कहीं से तो एक नई शुरुआत करनी है ना आपकी तरह अपना परलोक सुधारने के लिए।आप तो जरूरतमंदों का सहारा है ही मुझे भी उसमें भागीदार बना लीजिए।

जी मेमसाब –जानकी के चेहरे की झुर्रियां मुस्कुराने से और पसर गई।

#सहारा 

मीनू झा 

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