“मैं अकेला रह गया हूं ” सोमेश को दख कर राजेश फफक फफक कर रो पड़ा था ।उस के लिए भी अपने आप को सम्हालना कठिन हो गया था । उसने बड़ी कठिनाई से राजेश को सांत्वना दी । धीरे धीरे दोनों नार्मल हुए । घर आकर भी वह बेचैन ही रहा ।बार बार अतीत की यादें उसके मन में टीस पैदा कर रही थी ।
वह दोनों बचपन में गहरे दोस्त थे । उसे आज भी याद है , वह दूसरी क्लास में पढ़ता था , तभी उनकी कक्षा में एक नया बच्चा दाखिल हुआ । बिल्कुल पतला दुबला , कमजोर सा ।न हंसता, बोलता , न कोई शरारत ! अध्यापक के कक्षा से बाहर निकलते ही सब बच्चे ऊधम मचाने लगते थे पर वह चुप चाप अपनी सीट पर बैठा रहता था। यहां तक कि आधी छुट्टी के समय भी कक्षा से बाहर नहीं निकलता था । सब बच्चे उसे हैरानी से देखते रहते थे । एक दिन वह छुट्टी के समय घर जा रहा था कि उसने देखा कि स्कूल के कुछ बच्चे राजेश को घेर कर खड़े हैं । उसे देखते ही सब भाग गए ।
“मेरा यहां कोई दोस्त नहीं है ,” राजेश ने बड़े भोलेपन से कहा
” अब मैं तुम्हारा दोस्त बन गया हूं न? अब डरने की कोई बात नहीं है ।” उसने उत्तर दिया । यह थी दोनों की दोस्ती की शुरुआत ! गली मोहल्ले में इकट्ठे खेलते खेलते दोनों कब बड़े हो गए और कालेज पहुंच गए ,पता ही नहीं चला । कालेज में भी इनकी मित्रता सब के लिए एक मिसाल थी । हालांकि दोनों के स्वभाव में कोई समानता नहीं थी । राजेश पूर्णतः अंतर्मुखी !न ज्यादा हंसना,बोलना !न व्यर्थ का मेल-मिलाप ! उधर वह हर आने जाने वाले को रोक कर बतिया न ले , तो खाना हजम नहीं होता था। उस के ठहाके दूर दूर तक सुनाई देते थे ।
इतिफाक से कालेज से निकलने पर दोनों को नौकरी भी एक ही आफिस में मिल गई । दोनों विवाह बंधन में बंध गए , घर परिवार हो गया ,बाल बच्चे हो गए परन्तु इनकी मित्रता में कोई अंतर नहीं आया । समय के साथ बचपन की दोस्ती पारिवारिक मित्रता में परिवर्तित हो गई और धीरे धीरे और प्रगाढ़ होती चली गई ।
दोनों के बेटों सोनू और रिंकू में भी गहरी छनने लगी । परन्तु राजेश का बेटा रिंकू पढ़ने में बहुत तेज था । वह अपनी कक्षा में हमेशा अव्वल आता था और सोनू जैसे तैसे उत्तीर्ण हो रहा था और सीढ़ी दर सीढ़ी अगली कक्षा में पहुंचता जा रहा था ।रिंकू की सफलता से उस के मन में अंदर ही अंदर कई बार जलन भी होने लगी थी ।
परंतु सोनू रिंकू की दोस्ती पूर्ववत बरकरार थी । पढ़ लिख कर रिंकू एक मल्टीनेशनल कंपनी में कार्यरत हो गया और सोनू को भी एक आफिस में नौकरी मिल गई । इधर वह और राजेश भी सेवानिवृत्त हो गए थे । राजेश ने रिंकू का विवाह उसी की कंपनी में कार्यरत सहकर्मी से कर दिया और उसने भी सोनू को विवाह बंधन में बांध दिया ।
वह अपने पैतृक घर में रहता था , जब कि राजेश अपना पैतृक घर बार छोड़ कर यहां आया था । रिंकू के सैटल हो जाने के बाद राजेश ने भी अपनी पैतृक संपत्ति बेच कर यहीं सैटल होने का मन बना लिया ।उसने एक पॉश कॉलोनी में बड़ी सी कोठी बना ली । दोनों परिवारों का जीवन बड़े मजे से गुजर रहा था ।लोग उनकी मित्रता का उदाहरण देते थे।
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तभी रिंकू की कम्पनी ने उसके समक्ष अमेरिका जाने का प्रस्ताव रखा। प्रोजेक्ट मात्र छः महीने का था। रिंकू इन्टैलिजैंट तो था ही, इस प्रस्ताव से उसकी महत्त्वकांक्षा के पर निकल आए । घर परिवार को देखने के लिए ममी पापा हैं ही , यह सोच कर उसने तुरंत स्वीकृति दे दी । घर पर भी सब ने सोचा सिर्फ छ: महीने की ही तो बात है, पलक झपकते ही बीत जएंगे । इस लिए सब लोग ख़ुशी ख़ुशी मान गए ।
पर रिंकू का प्रोजेक्ट खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा था ।छ: महीने से एक साल ,समय गुजरता ही जा रहा था। धीरे धीरे दो साल गुजर गए।बीच बीच में छुट्टियों में रिंकू बच्चों को भी बुला लेता था ।डालरों में मिलने वाला वेतन , पाश्चात्य सभ्यता का खुला पन और रिंकू की आसमान छूती महत्त्वकांक्षाएं उसे अपने वतन वापस आने से रोक रही थी ।
उस के लिए अपना देश , अपने माता पिता ,भाई बन्धु ,सब बेमानी हो गए थे । वैयक्तिक स्वार्थ सामाजिक दायित्वों पर हावी हो चुके थे । अब रिंकू वहीं का होकर रह गया था ।इधर राजेश और उसकी पत्नी भी एक दो बार अमेरिका घूम आए थे । रिंकू भी आए दिन कुछ न कुछ सामान ऑनलाइन भेजता ही रहता था। पर अंदर से पति-पत्नी पूरी तरह टूट चुके थे। ।बेटा ,बहू ,बाल ,बच्चों से भरा पूरा परिवार एक दम से विरान हो गया था ।
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कहते हैं वृद्धावस्था में हमारे सामाजिक सम्बन्धों में फिर से निकटता बढ़ जाती है क्योंकि जवानी की आपाधापी से हम उबर चुके होते हैं ।शारीरिक स्तर पर सब एक सी समस्याओं से जूझ रहे होते हैं । परिवार में होते हुए भी वैयक्तिक स्तर पर सभी अकेले पन के दौर से गुज़र रहे होते हैं।उस पर जेनेरेशन गैप के कारण बच्चों से मतभेद भी रहता है।
इस लिए पुराने रिश्तों में नई जान पड़ जाती है । वह अपने भरे पूरे परिवार के कारण रिश्तेदारों , संबंधियों से घिरा रहता था । आए दिन रिश्तेदारी में होने वाले विभिन्न आयोजनों में व्यस्त रहता था। राजेश अपने पैतृक संबंधियों से भी दूर हो चुका था।उसे एक मात्र उस का ही सहारा था । इस लिये वह एक बार राजेश से मिलने जरूर जाता था ।
कहते हैं समय एक ऐसा मलहम है,जो बड़े से बड़े जख्म को भरने की क्षमता रखता है। सोमेश और उसकी पत्नी सीमा ने भी अपने आप को व्यस्त रखने के लिए कुछ स्वयंसेवी संस्थाएं जाइन कर ली। धार्मिक स्थलों पर जाना प्रारंभ कर दिया । अपने मित्र समुदाय में वृद्धि कर ली । परन्तु मन का खाली पन किसी भी प्रकार दूर होने का नाम नहीं लेता था।
जब तक भरा पूरा परिवार था , दोनों दिन भर व्यस्त रहते थे । पर बच्चों के बिना घर खाने को दौड़ता था । मन की खीज दोनों एक दूसरे पर उतारते। व्यर्थ ही छोटी छोटी बातों पर तकरार करते , बात बात पर लड़ते झगड़ते थे। परन्तु फिर भी दोनों के प्राण एक दूसरे में अटके रहते थे। खैर, जीवन चक्र अपनी गति से चल रहा था ।
सीमा इस सदमे को बर्दाश्त नहीं कर पा रही थी । वह अक्सर बीमार रहने लगी । सोनू निरंतर उन के संपर्क में रहता । उनकी दवा दारू का पूरा ध्यान रखता , जरूरत पड़ने पर डाक्टर के पास ले जाता या डाक्टर को उनके घर भी ले आता था । परन्तु सीमा की तबीयत नहीं संभली और अंत में वह इहलोक की लीला समाप्त कर भगवान को प्यारी हो गई ।
जब तक दोनों पति-पत्नी थे , जीवन की गाड़ी नौकर चाकरों के सहारे ही सही हिचकौले खा खा कर भी चल रही थी पर अब जीवन के इस पड़ाव पर राजेश का अकेले रहना कठिन था और रिंकू राजेश को अपने साथ अमेरिका ले जा नहीं सकता क्योंकि लम्बे समय तक विदेशी पर्यटकों का वहां रहना संभव नहीं है और राजेश की शारीरिक अवस्था ऐसी नहीं है कि वह बार बार इतनी दूर की यात्रा कर सके ।
फिर विदेशी कल्चर ।तय हुआ कि राजेश की देखभाल के लिए एक फुल टाइम नौकर रखा जाए ।बीच बीच में सोनू आकर उसका हाल चाल जानता रहे । सोनू ने बड़ी खुशी से यह उत्तरदायित्व अपने सिर ले लिया । सोनू अक्सर आ कर देखता था कि राजेश नौकर को किसी भी काम के लिए पुकारते, नौकर अनसुनी कर देता था या झल्ला पड़ता था,रात में तो वह अधिकतर देर रात तक नदारत रहता था । जिस कारण राजेश अक्सर अपना मानसिक संतुलन खो बैठते थे । धीरे धीरे राजेश शारीरिक रूप से भी इतने कमजोर हो गए थे कि उन्हें बिस्तर से उठने के लिए भी किसी के सहारे की जरूरत होती थी , इस लिए कई बार रात भर वह गीले में ही पड़े रहते थे या दो घूंट पानी के लिए भी तरसते रहते थे ।
उम्र का तकाजा !स्वयं वह भी कई कई दिन घर से बाहर नहीं निकल पाता था ,पर सोनू दिन में एक बार अवश्य आता था ।आज सुबह सोनू ने ही कहा था ,”पापा ! आज आप राजेश अंकल से जरूर मिल कर आना । वह कई दिनों से आप को बहुत याद कर रहे हैं ।”
कुशाग्र बुद्धि रिंकू की मल्टीनेशनल कंपनी में नौकरी, उसकी नौकरीपेशा पत्नी और उसके द्वारा ऑनलाइन भेजे गए उपहार इन सब के कारण दोनों मित्रों के रहन सहन में काफी अंतर आ गया था । जिस के कारण कभी कभी उसकी आंखों के सामने ईर्ष्या का एक झीना सा पर्दा आ जाता था , पर आज राजेश की कमजोर भावात्मक अवस्था को देख कर वह पर्दा अपने आप ही जाने कहां चला गया था और मन सहानुभूति से भर गया था ।
वह जब से राजेश से मिल कर आया था ,मन ही मन बहुत बेचैन था । कुछ ज्वलंत प्रश्न उसे निरंतर परेशान कर रहे थे । उस के मित्र राजेश ने बहुत ही गरिमा पूर्ण ढंग से अपना सारा जीवन व्यतीत किया था । वृद्धावस्था में उसका यह हश्र ?सोच कर ही मन कांप रहा था ।वह सोच रहा था ‘माता पिता अपने जीवन का कोई भी निर्णय लेते समय अपने बच्चों के सुरक्षित भविष्य की चिंता पहले करते हैं । उनकी प्रथम प्राथमिकता उनके अपने बच्चे रहते हैं ।
परन्तु मां बाप जब शारीरिक, मानसिक और भावात्मक रूप से इतने कमजोर पड़ जाते हैं, कि अपने स्वयं के जीवन के निर्णय लेने में असमर्थ हो जाते हैं, तब बच्चे उन्हें बीच मझधार में क्यों छोड़ देते हैं ? उन्हें अपने जीवन का एक हिस्सा क्यों नहीं समझते हैं ? जिनकी उंगली पकड़कर चलना सीखा है , वक्त पड़ने पर उनसे उंगली छुड़ाकर क्यों भाग खड़े होते हैं ? इतनी महत्त्वकांक्षाएं भी किस काम की कि मानवीय संवेदनाओं को भी दरकिनार कर दें ।’
वह सोच सोच कर विचार मग्न हो गया था कि आज की युवा पीढ़ी बुजुर्गों के प्रति अपने उत्तरदायित्व से निरंतर विमुख होती जा रही है । फिर बुजुर्गों के संरक्षण का दायित्व कौन ले ? कुछ स्वयंसेवी संस्थाएं या सरकार ही इस दायित्व को वहन कर सकती है । शायद इसीलिए वृद्धाश्रम या ओल्ड एज होम का चलन बढ़ गया है । परन्तु अपना तथाकथित अभिजात्य वर्ग इस में भी अपनी हेठी समझता है । शायद इसी लिए रिंकू ने राजेश के लिए घर में ही केयरटेकर की व्यवस्था करना बेहतर समझा ।
रात के शांत वातावरण में यह सुलगते प्रश्न उस के मन को उद्वेलित कर रहे थे।मानों किसी ने शान्त जल में पत्थर फेंक दिया हो।
जीवन की सच्चाई से रुबरू होने का भरसक प्रयास कर रहा धा ।
बिमला महाजन