परिवर्तन प्रकृति का नियम – रश्मि सिंह : Short Moral stories in hindi

Short Moral stories in hindi  :सुषमा-देखो जरा आज मेघा विदाई में कितना रो रही है, पर कल जहां पति का प्यार मिला, वही भूल जाएगी अपनी माँ को। 

अर्चना-और नहीं तो क्या। कहते है शादी के बाद लड़कों में ही बदलाव आता है ऐसा नहीं है लड़कियाँ भी अपना पीहर भूल जाती है। 

रोहित (मेघा का भाई) ये सब सुनकर दुखी हो जाता है कि क्या दीदी हमें भूल जाएगी। ये सोचकर वो दौड़ता हुआ पेन कागज लेकर मेघा के पास जाता है और कहता है कि दीदी इस कागज पर लिखकर दो कि आप हमें कभी नहीं भूलोगी, रोज़ दिन में चार बार बात करोगी, हर संडे घर आओगी। 

मेघा ये सुन फूट-फूटकर रोने लगती है। गायत्री (मेघा की माँ) रोहित को समझाते हुए बोलती है कि तू बावला है तू कोई भूलने की चीज़ है तू तो दीदी का अनमोल रतन है, भला वो उसे कैसे भूल जाएगी।

ये सुन वहाँ का माहौल सामान्य हो जाता है और ख़ुशी ख़ुशी मेघा कि विदाई कर दी जाती है। 

मेघा विदाई के बाद ससुराल जाती है और ससुराल में शादी के बाद की रस्मों में इतनी मशगूल हो जाती है कि रोहित और मम्मी से ज़्यादा समय तक बात नहीं कर पाती है। 

रोहित-मम्मी कल आपका जन्मदिन है पर दीदी ने अभी तक कल के सेलिब्रेशन के लिये कोई बात ही नहीं की। पहले तो दो चार दिन पहले से ही तैयारी करना शुरू कर देती थी। 

गायत्री-अरे! अभी उसको गए छह महीने ही हुए है। नया माहौल, नये लोग सबके साथ सामंजस्य करने में समय लगता है। अभी उसे वहाँ ज़्यादा ध्यान देना चाहिए। 

रोहित उदास सा चेहरा बनाकर अपने कमरे में चला जाता है। अगले दिन गायत्री जी की दोस्त सुषमा और अर्चना घर जन्मदिन की बधाई देने आती है।

सुषमा-गायत्री जन्मदिन की ढेर सारी शुभकामनाएँ। मेघा नहीं आयी तुझे बधाई देने या ससुराल जाकर भूल गई।

अर्चना-पता नहीं कैसे लड़कियाँ अपना घर-आँगन जहां अपना बचपन बिताया, सब भूला देती है। मैंने तो नहीं भूलने दिया। शुरुआत से ही मैंने नियम बना लिया था कि दिन में तीन वक़्त बात करूँगी। थोड़ा मन-मुटाव हुआ ससुराल में, पर मैंने अपनी बिटिया को बता दिया ससुराल से ज़्यादा प्यारा पीहर होना चाहिए। 

सुषमा-बिल्कुल सही किया। मैंने भी प्रीति को यही सिखाया है कि मैं तेरी माँ हूँ तेरा झुकाव मेरी तरफ़ ज़्यादा होना चाहिए। उसकी सास को बुरा लगा तो मेरी प्रीति दामाद जी के साथ अलग रहने लगी। क्या अब अपनी मर्ज़ी से जिए भी ना। गायत्री तेरी मेघा तो बदल गई है।

गायत्री-शादी के बाद बदलाव आना तो ज़रूरी है। बदलाव का मतलब ये नहीं है कि लड़की या लड़का अपने परिवार को भूल जाते है। जब एक लड़की दूसरे के घर जाती है तो वहाँ के तौर-तरीक़े सबकी पसंद-नापसंद सबका व्यवहार जानने में समय तो देना ही पड़ता है इसका मतलब क़तई ये ना समझा जाये कि वो अपने इस परिवार को भूल गई है। 

 सुषमा-फिर भी जो हो इतना भी क्या समय देना कि अपनी माँ को जन्मदिन की बधाई भी नहीं दे पायी।

गायत्री-आप जो भी कहे पर हम ही अगर बच्चियों को अपनी गृहस्थी नहीं सँभालने देंगे तो वो बच्चियाँ अपनी आगे आने वाली पीढ़ियों से क्या ही उम्मीदें करेंगी। 

हमें तो अपनी बच्चियों को अच्छी सीख देनी चाहिए ताकि वो दोनों परिवारों को समान महत्व दे पाएँ। 

 सुषमा और अर्चना ये सब सुनकर मुँह बनाती हुई अपने घर की ओर रवाना हो जाती है।

रात को 9 बजे मेघा अपने पति के साथ गायत्री जी से मिलने आती है। 

मेघा-मम्मी सच बताऊँ मैं तो घर के कामों में आपका जन्मदिन भूल ही जाती पर रचित (मेघा का पति) जी ने याद दिलाया और ऑफिस से आते ही मुझे यहाँ ले आए। मेघा कान पकड़ते हुए मम्मी से माफ़ी माँगती है। 

गायत्री जी उसके हाथ चूमते हुए बोलती है कि मेरी बिटिया इतनी ज़िम्मेदार हो गई है, ये देखकर बहुत अच्छा लग रहा है। 

रोहित (मेघा का भाई)- दीदी तुम बदल गई हो मेरी पहले  वाली मेघू दीदी कही खो गई है।

गायत्री-रोहित ये बात तो एकदम सही कही तुमने। बदलाव तो आया है। मेघा पहले से कितनी खूबसूरत लगने लगी है। अपने दोनों परिवार को एक समान समझती है। जैसे यहाँ तेरा ध्यान रखती थी वैसे वहाँ अपने भैया समान देवर का ध्यान रखती है। अब इसकी एक नहीं दो-दो मम्मियाँ और दो-दो पापा और दो घर  भी है। 

रोहित-मम्मी ये क्या बात हुई, आप तो दीदी को डाँटने की जगह उनकी तारीफ़ करती जा रही हो। 

गायत्री-बेटा शादी के बाद बस यही सब बदलाव आते है, जिसे पूरा समाज ग़लत तरीक़े से ले लेता है। बिटिया और बहू तो घर-आँगन की तुलसी है जो अपने गुणों और समझदारी से दोहरा किरदार बखूबी निभा लेती है।

मेघा-माँ आप जैसी सोच भी सबकी होनी चाहिये तभी हम ये किरदार बखूबी निभा पाएँगे।

आदरणीय पाठकों, 

 कहा गया है कि परिवर्तन ही प्रकृति का नियम है, तो विवाह के बाद लड़के और लड़कियों के जीवन में बदलाव आना स्वाभाविक है, अगर उसे सकारात्मक दृष्टिकोण से देखा जाएगा तो परिवार में किसी तरह का मतभेद नहीं उत्पन्न होगा। एक बार फिर पहले की तरह संयुक्त परिवार की संकल्पना वास्तविकता का रूप लेकर सामने आएगी। 

    उम्मीद है आप सबको मेरी ये रचना पसंद आयी हो। पसंद आने पर लाइक, शेयर और कमेंट करना ना भूलें 

# घर-आँगन।

 धन्यवाद। 

स्वरचित एवं अप्रकाशित।

रश्मि सिंह

नवाबों की नगरी (लखनऊ)

 

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