परिवार की एक विधवा बहू,,,, – मंजू तिवारी

हेलो छोटी बहू मैं खेतों का बटाईदार बोल रहा हूं। बड़े भैया ने खेतों के लिए पानी देने के लिए मना कर दिया है। अब खेतों में गेहूं कैसे बोया जाएगा। नमिता बटाईदार से कहती है। यदि जेठ जी खेतों के लिए पानी नहीं दे रहे तो किसी और से पानी ले लो ,,,लेकिन कोई और भी पानी देने के लिए तैयार नहीं है ।,,भाई साहब ने उन से मना कर दिया है वो लोग उन के साथ रोज उठने बैठने वाले हैं,,,,,,

और बहु रानी मैं इंजन के पानी का खर्चा नहीं दे पाऊंगा,,,,, तब नमिता बटाईदार से कहती है।,,, आप एक बार प्रयास कर कर देखो,,, नहीं तो अपने खेतों पर किसी प्रकार ट्यूबवेल लगवा दिया जाएगा,,,,,, नमिता के जेठ जी तो कई खेतों के लिए पानी देते हैं। लेकिन मेरे ही खेतों के लिए मना कर दिया। नमिता के पति का करीब डेढ़ साल 2 साल पहले ही स्वर्गवास हो गया है। नमिता के दो छोटे बच्चे हैं।उन को पालने की जिम्मेदारी नमिता की ही है। नमिता के पति के हिस्से की जमीन अब नमिता  और उसके बच्चों को मिली तो उसको पाने लिए उसे पुलिस चौकी  अन्य जगह अधिकारियों से शिकायत पत्र लगाना पड़ा उसके बाद उसे उस जमीन में हिस्सा मिला लेकिन कागजों में जितनी जमीन है वास्तविकता में उतनी नाप नहीं दी गई,,,, इसके लिए नमिता को सरकारी बटवारा करवाना पड़ रहा है। जेठ ने पैतृक मकान पर जबरन कब्जा कर रखा है उसमें भी कुछ नहीं दिया,,,, मकान बनाने के लिए खाली पड़ी जमीन को दिया गया,,,,

 वह आए दिन नमिता को कुछ ना परेशान करता है। और चाहता है कि सारी जमीन प्रॉपर्टी को छोड़कर यहां से चली जाए जिससे वह अपना कब्जा जमा सके,,,,,,, खेतों के लिए पानी नहीं मिलेगा तो उसे बटाई पर कौन लेगा,,,,, यानी छोड़ने के लिए मजबूर हो जाए,,,,,, सासु मां की जमीन भी अपने नाम करवा ली  सासू मां के मरने के बाद जिससे नमिता और उसके बच्चों को ऐसा ना मिल सके ।क्या यह ठीक है।,,,? क्या विधवा बहू उस परिवार का हिस्सा नहीं,,,,,,,?



नमिता इस जमीन को कैसे छोड़ दें और क्योंकि….? सास ने उसका और उसके बच्चों का जो हक मारा है उसके लिए वह न्यायालय की शरण में गई है।,,,,इसी जमीन से तो उसके बच्चों का भरण पोषण हो रहा है। नमिता उस घर में बिहा कर गई थी कोई भागकर नहीं,,,, तो अपना और अपने बच्चों का हक कैसे छोड़े और क्यों,,,,,, नमिता  इस जमीन को क्यों बेचे यह उसके पति की उसके बच्चों के लिए विरासत है।,,,,, नमिता अपने पिता के घर रहती है अगर परिवार वालों का विधवा बहू के लिए आचरण सही होता तो नमिता अपने ससुराल में ही रहती,,,,,, एक पढ़ी-लिखी उच्च शिक्षित होने के कारण अपने हक की लड़ाई लड़ रही है।

नमिता के बच्चे बहुत छोटे छोटे हैं जो उसे एक पल के लिए भी नहीं छोड़ना चाहते उन्हें संभालते हुए किस प्रकार अपने और अपने बच्चों के हक की लड़ाई लड़ रही होगी सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है,,,, आर्थिक संकटों से भी जूझना पड़ रहा है।

 

 

शहरी क्षेत्रों में देखने को कम मिलता है लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में पैतृक विरासत के रूप में खेतिहर भूमि होती है। जिस पर नाम चढ़ने के बाद मौके पर नाप में पूरी जमीन मिलना किसी विधवा के लिए बहुत बड़ी मुश्किल होती है। जिसके लिए उसे पुलिस थाने संबंधित अधिकारियों को अनेकों शिकायत पत्र देने पड़ते हैं। उसके के बाद भी सरकारी बंटवारा डालना पड़ता है।,,,, लंबी चौड़ी कानूनी लड़ाई लड़नी पड़ती है।,,,,,

ग्रामीण क्षेत्र में एक विधवा का हक मार लेना बड़ी साधारण सी बात है।,,,,, किसी प्रकार हक नहीं मार पाते तो उसको इतना परेशान करेंगे कि वह अपना हक छोड़ने पर मजबूर हो जाए,,  एक विधवा के सामने उसके बच्चे होते हैं। उसको पालने की जिम्मेदारी उसी की होती है । इसलिए मजबूर होकर उसे अपना हक छोड़ना भी पड़ता है। या कम में संतोष करना पड़ता है। क्योंकि बच्चों के खातिर ज्यादा दुश्मनी लेना भी ठीक नहीं,,,,

यह सोचकर चुप बैठ जाती है।

विडंबना यह भी है ऐसे लोगों का समाज भी बहिष्कार नहीं करता,,,, इसलिए विधवा का हक मारने वाले परिवारों को तनिक भी शर्मिंदगी महसूस नहीं होती क्योंकि समाज और कानून का डर तो उन्हें होता ही नहीं है।,,,,,,

अगर कहीं ऐसा हो रहा है तो हम सब लोगों की जिम्मेदारी है कि उनका सामाजिक बहिष्कार जरूर करें,,, जिससे थोड़े बहुत सुधार की गुंजाइश हो सके,,,,,

मंजू तिवारी ,गुड़गांव

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