पर उपदेश कुशल बहुतेरे !!- संध्या त्रिपाठी : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi: पागल हो गई है तुम्हारी बेटी….. और कुछ नहीं…. इतना अच्छा लड़का है …सरकारी नौकरी.. क्लास वन ऑफिसर ….खुद चलकर रिश्ता सामने से आया है ….तो अभी नहीं …ऐसा नहीं …वैसा नहीं….!

कभी-कभी तो लगता है ना …वो पुराना जमाना ही ठीक था ….मां बाप बच्चों के लिए उपयुक्त लड़का या लड़की देखकर शादी कर देते थे…. आजकल के बच्चे कुछ ज्यादा ही होशियार हो गए हैं……. बेवकूफी की भी हद होती है …….गुस्से में तमतमाए विभोर ने मानसी पर ही अपना गुस्सा निकाल दिया……

मानसी ने बड़े संयम से विनम्रता पूर्वक समझाते हुए कहा ……देखो विभोर…जमाना बदल गया है अब बच्चे क्या चाहते हैं… क्या सोचते हैं…. ये उनका व्यक्तिगत मामला है …..जिंदगी उन्हें गुजारनी है समझो यार ……

“एक बात और विभोर……….. ” हर किसी के जिंदगी में सुख के मायने अलग-अलग होते हैं ” …..

तुम जो सुख बिटिया को देना चाह रहे हो शायद उसमें उसकी खुशी है ही नहीं ….तो उसे सुख कैसे मिल पाएगा….. तुम्हारे सुख के चक्कर में तो बिटिया हमेशा दुखी ही रहेगी ना….!

एक बात और विभोर …..कहां शेफाली एम बी ए कर मेट्रो सिटी में मल्टीनेशनल कंपनी में जॉब कर रही है…… और तुम हो कि वर ढूंढ रहे हो सरकारी नौकरी वाला….. क्या तालमेल बैठ पाएगा…..?? इस बार मानसी ने भी विभोर से प्रश्न किया…।

कितना कमा लेती है शिफाली…?? जितना शेफाली महीने में कमाती होगी ना ….उतना वो अपने ड्राइवर को देता होगा ……प्राइवेट कंपनी में जॉब…. मेट्रो सिटी का चस्का …..जब हकीकत से पाला पड़ेगा ना तब समझ में आएगा…… खैर तुम जानो और तुम्हारी बेटी…. तुमने उसे कुछ ज्यादा ही सिर पर चढ़ा लिया है….।

विभोर एक पिता का सचेत और चिंतित होना स्वाभाविक है ……पर इतना भी स्वार्थी मत बन जाओ कि एक अच्छा कमाऊ लड़का देखकर लालच भर आए….. और अपने पूरे विचार …….अपने सिद्धांत ताक पर रख दो ……दूसरों के लिए बड़ी-बड़ी बातें अपनी बारी आई तो टांय टांय फिस्स….!

…” पर उपदेश कुशल बहुतेरे “…

तुम ही तो कहा करते थे ना विभोर… बच्चों को सपने देखने और उन्हें पूरा करने का पूरा हक है और उसमें माता-पिता का भरपूर सहयोग होना चाहिए…. फिर जब अपनी बारी आई तो क्या हो गया तुम्हें विभोर…..

शायद तुम…किस्मत और पति के भरोसे… धन दौलत.. भौतिक सुख-सुविधाओं को सुख का पर्याय मान रहे हो उसे बच्चों को संतुष्टि ना हो और जब संतुष्टि ही नहीं मिलेगी तो उन्हें सुख कैसे मिल पाएगा विभोर….? वो इन सब चीजों को अपनी मेहनत ..अपनी काबिलियत से हासिल करना चाहते हैं तो इसमें हर्ज क्या है…?

कहीं तुम्हारे द्वारा दिया गया सुख ही उनके दुख का कारण ना बन जाए विभोर…!

दूसरों को उपदेश देना बहुत आसान होता है …..जब अपनी बारी आती है ना तब यथार्थता का पता चलता है….. मानसी ने विभोर को आईना दिखाने की कोशिश की….।

खैर….. विभोर की भी गलती नहीं थी ….एक साधारण मध्यम वर्गीय परिवार…. और चाहेगा भी क्या…. जो संघर्ष उसने झेला है वो नहीं चाहता उसके बीवी बच्चों को भी उन्हीं कठिनाइयों या दुख का सामना करना पड़े….।

आइए…..एक नजर शेफाली पर डालें…. साधारण मध्यम वर्गीय परिवार की लड़की…. जिसने बचपन से ही समझौता को दोस्त के रूप में पाया…. हर चीज में समझौता…. समझौता ….और सिर्फ समझौता….. अपने मम्मी पापा के संघर्ष को काफी नजदीकी से देखती हुई बड़ी हुई थी…. स्पष्ट बोलने वाली…. दृढ़ संकल्प बेबाक..निडर …शेफाली सबसे ज्यादा अपने पापा विभोर के नजदीक थी…. बचपन से उसकी इच्छा मेट्रो सिटी… मल्टीनेशनल कंपनी में जॉब करना.. वगैरह-वगैरह ……बस फिर क्या था चल पड़ी थी अपने रास्ते पर….. हालांकि छोटे शहर से जाकर मेट्रो सिटी में अपनी जगह बनाना भी कोई आसान काम नहीं था…।

विभोर और मानसी में …तू – तू मैं – मैं चल ही रही थी… इसी बीच विभोर के मोबाइल की घंटी बजी… फोन मानसी की तरफ बढ़ाते हुए विभोर ने कहा ….लो तुम्हारी लाडली का फोन आया है तुम ही बात करो ….अरे आपके मोबाइल पर आया है तो आप ही बात करेंगे ना….? मुझे नहीं करनी है बात …..कहकर विभोर दूसरे कमरे में चला गया….।

पर कहते हैं ना ….घर में चारों ओर के संतुलन की जिम्मेदारी माता के ऊपर ही होती है…. इधर विभोर को भी संतुलित और संयमित रखना और उधर बिटिया रानी को भी संतुलित रखना कोई मामूली काम नहीं था ….! काश….इस बीच कोई मानसी के दिमागी हालत को समझने वाला होता…!

उसने तुरंत फोन उठाकर कहा हेलो बेटा …आज कैसे टाइम बेटाइम फोन किया है…. सब ठीक तो है ना मानसिकता पूर्वक कहा….

अरे मम्मी…. ये पापा का फोन है ना…. फिर आप कैसे उठा लीं…. और हमारे पापा कहां गायब हैं …अपना फोन आप के हवाले करके ……घर के बेरुखी माहौल से बेखबर शेफाली ने कहा…. बेटा ….वो ….वो…. वो ….अरे …ये ….वो …. मत करो मम्मी ….जल्दी से पापा को फोन दो जरूरी बात करनी है….।

हालांकि शेफाली समझ गई थी.. पापा बात नहीं करना चाह रहे हैं …कहीं वो पिछले हफ्ते शादी वाली बात से पापा नाराज तो नहीं है…. नहीं.. नहीं ..पापा मुझसे नाराज हो ही नहीं सकते …..मेरे पापा बहुत समझदार हैं….. शेफाली के मन में न जाने कितने तरह की बातें चल रही थी….

मानसी और शेफाली की बातें…. जरूरी बात करनी है पापा से …..ये विभोर सुन चुका था….. इसीलिए बेमन से फोन लेकर विभोर ने कहा…. बोलो…. अब क्या बोलना है…..

पापा आपने मम्मी का वो सारा टेस्ट करवाया था ना …..मैंने वो सारी रिपोर्ट मम्मी से व्हाट्सएप पर मंगवाया था…. और यहां पर स्पेशलिस्ट को दिखाई भी थी ……पापा आप और मम्मी फौरन चले आइए……. मैंने डॉक्टर से अपॉइंटमेंट ले लिया है……होटल में रूम भी बुक कर दिया है …..आप लोगों की टिकट भी हो गई है ……बस आने की तैयारी कीजिए ……शायद ऑपरेशन की जरूरत पड़ेगी….।

क्या ….?? विभोर और कुछ कह पाता उससे पहले ही शेफाली ने कहा अभी मैं ऑफिस में हूं पापा …..बाद में बात करती हूं …..ऐसा कह कर फोन रख दी….।

विभोर… जो अब तक शेफाली से बात करने से कतरा रहा था …अब उसके फोन का इंतजार कर रहा था ताकि विस्तार में सब कुछ पता चल सके….

विभोर परेशान हो गया …उसके समझ में कुछ नहीं आ रहा था ….मानसी ने विभोर को ढाढस बंधाते हुए कहा… अरे मुझे कुछ नहीं होगा …..विभोर आप चिंता मत कीजिए ……फिर हमारी बिटिया है ना….. देखा कितना कुछ तैयारी कर ली है हमारे लिए….।

और आप कह रहे थे कितना कमा लेती है शेफाली…….? मतलब नौकरी छोड़कर अच्छे ऑफिसर की बीवी बन हाउसवाइफ बन जाती …..फिर पति के ऊपर आश्रित होती दो पैसे के लिए…… आप ही बताइए विभोर …अभी वो हमारे लिए जितने आत्मविश्वास से सहायता कर पा रही है …क्या पति के कमाई पर इतना ही हक जता पाती…!

वो संकोच में शायद चाह कर भी कुछ नहीं कर पाती …जब तब उसके पतिदेव नहीं चाहते ….! और ये सिर्फ हमारे लिए ही नहीं ….उसके खुद के लिए ….उसके सास-ससुर के लिए… पति के लिए सबके लिए एक सपोर्ट है विभोर…..!

तुम ठीक कह रही हो मानसी….. पर मुझे ये एहसास दिलाने के लिए भगवान इतनी बड़ी परीक्षा लेंगे….??

मैंने कहा ना मुझे कुछ नहीं होगा विभोर….. भगवान कुछ अच्छा चाहते हैं तभी ऐसा कुछ करते हैं …..चलो बिटिया के पास जाने की तैयारी करें….।

इस दुख की घड़ी में भी …..शेफाली के आत्मविश्वास …अपने कार्य के प्रति लगन और जीवन शैली तथा परिवार में सामंजस्य देखकर …..विभोर और मानसी को सुख की अनुभूति हो रही थी….।

( स्वरचित मौलिक एवं सर्वाधिकार सुरक्षित रचना)

साप्ताहिक विषय #सुख-दुख

श्रीमती संध्या त्रिपाठी

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