नुकसान अपना ही – डॉ संगीता अग्रवाल : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi :राम प्रताप और किशन सिंह में बड़ी अच्छी दोस्ती थी।बचपन से ही दोनो संग पढ़े,खेले,बड़े हुए और साथ साथ ही शादियां,बच्चे हुए।

हालांकि दोनो के स्वभाव में बहुत अंतर था,एक पूरब तो दूसरा पश्चिम हो जैसे,शायद परिवेश,परवरिश और परिवारों का अंतर रहा हो ,राम प्रताप जहां बहुत कैलकुलेटिव था,फायदा नुकसान देख कर काम करता, किशन जरा गर्म दिमाग जा था,जो बात दिमाग में एक बार बैठा ले ,उसे पूरा करके ही दम लेता।

राम प्रताप उसे बहुत समझाता,”तू क्यों इतना तड़ी में रहता है,किसी ने कुछ कह दिया,भूल जा,रात गई बात गई की तर्ज पर रहा कर” पर वो एक न सुनता।

समय के साथ,वो आगे बढ़ते गए।उनकी दोस्ती आज भी वैसे ही बरकरार थी।एक दिन टीवी पर कोई शो साथ देख रहे थे,अचानक राम प्रताप ने चैनल बदला और न्यूज लगा दी।

दिल्ली में आई बाढ़ को लेकर न्यूज रीडर तरह तरह से दिल्ली के मुख्यमंत्री को टारगेट कर रहा था जिससे रामप्रताप को गुस्सा आ गया,ये लोग समझते क्यों नहीं,पानी दूसरे स्टेट से छोड़ा जा रहा है इसमें इनका क्या कुसूर?

किशन उनके बिलकुल खिलाफ था,पानी कहीं से भी आए,अब क्या करना है,इसकी जिम्मेदारी भी तो लेनी ही पड़ेगी।

दोनो अपनी अपनी बात पर भिड़ गए,बात बढ़ती गई।कोई पीछे हटने को तैयार नहीं था।हाथापाई से शुरू कर वो एक दूसरे की जान लेने को उतारू हो बैठे।

राम प्रताप ठंडे दिमाग से सोचता था,उसने किशन से कहा,”तू तलवार निकाल लाया है और जान लेने पर ही उतारू है तो सुन!मैंने भी चूड़ियां नहीं पहनी हाथों में, मैं भी तलवार ले आता हूं,आज हो हो जाए दो दो हाथ।”

“वीर आदमी बातें नहीं करते,उनके हथियार बोलते हैं”किशन हेकड़ी से बोला।

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ठीक है यार!तेरी हरकतों से लगता है आज हम से एक मर के ही रहेगा,तो क्यों न हम अपने परिवार को पहले खुद ही मार डालें,हमारे बाद बेचारे उनका क्या होगा?”

किशन ने सेकंड भर सोचा,बात तो ठीक है,वो गुस्से से अकड़ता हुआ अंदर घर में गया,हाथ में नंगी तलवार,दिल ने गुस्सा और दिमाग में अकड़,कर आया काम तमाम और गुर्राया 

“चल बाहर निकल राम प्रताप!आज तुझे नहीं छोडूंगा,मेरे लिए,मेरी अकड़,हेकड़ी के आगे कुछ नहीं, न मेरा परिवार,न ही दोस्ती।”

बेचारा राम प्रताप उसे समझाता ही रह गया,अकड़ तो मुर्दों की पहचान है,जिंदा लोग तो विनम्र होते हैं।

“डर रहा है अब मरने से,सामने आ और कुबूल कर अपनी हार””,किशन चिल्लाया।

सिर झुका कर राम प्रताप बाहर निकला और बोला, “मैं ,मेरे परिवार को नहीं मार सका दोस्त! मैं अपनी हार स्वीकार करता हूं,तुम ठीक थे और मैं गलत।”

किशन के हाथों के तोते उड़ गए,वो तो अपने परिवार को खत्म कर चुका था।अब क्या हो सकता था।उसने अपनी झूठी अकड़ के वास्ते अपने हंसते खेलते परिवार की बलि चढ़ा दी थी लेकिन अब पछताने से क्या होताब तो चिड़िया खेत चुग गई थी।

(एक काल्पनिक स्थिति का चित्रण करने का प्रयास भर है)

डॉ संगीता अग्रवाल

#गर्दन अकड़ी रहना(घमंड करना)

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