अपनों का अपनों पर कोई कर्ज़ नहीं होता ‘ –  विभा गुप्ता 

अश्विनी ने धीरे-धीरे अपनी आँखें खोली, खुद को अस्पताल के बेड पर देखा तो चकित रह गया।वह सोचने लगा, उसका तो एक्सीडेंट हो गया था, वो यहाँ कैसे पहुँचा,उसे यहाँ कौन लाया? तभी उसके कानों में वार्ड बाॅय की आवाज सुनाई दी,वह अपने सहकर्मी से कह रहा ,

” ग्यारह नंबर वाला पेशेंट कितना भाग्यशाली है जो उसको इतना अच्छा बहन मिला।वह तो मर ही गया होता अगर बखत पर उसका बहन अपना खून नहीं देता।”  ‘ उसका बहन ‘ सुनकर उसे बचपन की सुनयना दीदी याद आने लगी।

जब वह पाँचवीं कक्षा में पढ़ रहा था,तभी गाँव में फैली एक बीमारी की चपेट में आकर  अम्मा-बाबूजी गुज़र गये और तब दीदी ही उसकी अम्मा-बाबूजी बन गईं थीं।दीदी तब दसवीं कक्षा में पढ़ रहीं थीं, वे उसकी देखरेख करती, घर को संभालती और अपनी पढ़ाई भी करती थीं।

गाँव में काॅलेज था नहीं और वो उसे छोड़कर शहर जाना नहीं चाहती, सो अपनी पढ़ाई छोड़कर अपने भाई को ऊँची शिक्षा दिलाना ही उन्होंने अपना उद्देश्य बना लिया था।

           उसने भी मन लगाकर पढ़ाई की, हर कक्षा में अव्वल आता रहा और काॅलेज की पढ़ाई के दौरान ही नीता नाम की लड़की के साथ उसकी दोस्ती हो गई।पढ़ाई खत्म होते ही उसने नीता के पिता के फ़र्म में ही उसने नौकरी कर ली।

अपनी पहली तनख्वाह दीदी के हाथों में देते हुए उसने कहा था, ” दीदी,अब मैं आपका कन्यादान करके ही शहर जाऊँगा।” उसने गाँव के ही स्कूल मास्टर सुरेन्द्र कुमार के साथ दीदी की शादी धूमधाम से करवा दी थी।दीदी अपने घर में बहुत खुश थी।

          एक रक्षाबंधन पर जब वह राखी बंधवाने दीदी के पास आया तो अपने और नीता के संबंधों के बारे में सुनयना को बताकर विवाह करने की इच्छा बताई।सुनकर सुनयना बहुत खुश हुई थी।दो दिन बाद ही नीता के पिता अपनी बेटी का रिश्ता लेकर आ गये थें।सबकुछ तय होने के बाद सुनयना ने अपनी हैसियत से बढ़कर खर्च करके अश्विनी का विवाह किया था।



          एक दिन अश्विनी डिनर पर अपने ससुराल गया,तो उसने अपनी सासूमाँ को कहते सुना, ” सुन नीता,तेरी ननद है सौतेली, पिता की संपत्ति हथियाने के लिए ही उसने अश्विनी को अंधेरे में रखा है।” सुनकर उसे अपने कानों पर विश्वास ही नहीं हुआ।अगले ही दिन जब वह सुनयना के ससुराल पहुँचा तो वहाँ गाँव का पटवारी था जिससे उसकी दीदी कह रही थी,

” ध्यान रहे,अश्विनी को कुछ भी मालूम न होने पाए।” बस फिर क्या था,उसने आव देखा न ताव, और जो मन में आया, बकता चला गया।उसके जीजाजी ने कुछ कहना भी चाहा तो उसने उन्हें किनारे कर दिया और ‘अब से आप मेरे लिए मर गई हैं ‘अंतिम वाक्य कहकर शहर चला आया था।

पिछले चार सालों से वह उनकी राखी भी लौटा दे रहा था, फिर दीदी कहाँ से….।वह अतीत से वर्तमान में लौटा जब नीता ने पूछा कि अब आपकी तबीयत कैसी है?

            दीदी के बारे में वह अभी भी असमंजस में ही था, इसीलिए जवाब न देकर नीता से पूछा, ” दीदी यहाँ कैसे? तब नीता ने उसे बताया कि सुनयना दीदी के बारे में हमें गलतफहमी हो गई थी।यह सच है कि दीदी, आपके पिता की पहली पत्नी की संतान हैं लेकिन उनके हृदय में आपके लिए अपार स्नेह और ममता है।

आपके गाँव का ही एक आदमी अपनी बहन का विवाह आपसे कराना चाहता था,दीदी ने उसके प्रस्ताव को ठुकरा दिया था,इसीलिए उसने दीदी को आपकी नज़र में गिराना चाहा।आपने जो देखा ,जो सुना वो पूरा सच नहीं था।दीदी ने पिताजी की पूरी जायदाद आपके नाम कर दी थी, आपके जन्मदिन पर वो आपको सरप्राइज़ तोहफ़ा देना चाहती थी, तब तक तो…।



            आपके एक्सीडेंट के वक्त किस्मत से पटवारी जी वहीं थें,उन्होंने ही आपको यहाँ एडमिट कराया और मेरे साथ दीदी को भी फोन करके आपके एक्सीडेंट के बारे में बताया।तब पटवारी जी मुझे पूरी बात बताई।

आपको खून से लथपथ देखकर दीदी तो बदहवास-सी हो गईं थी, कभी इस डाॅक्टर तो कभी उस डाॅक्टर के पास दौड़ रहीं थीं।अभी भी दवा लेने ही गईं हैं।

              ” हे भगवान! ये मुझसे क्या अनर्थ हो गया।” नीता के मुख से सत्य सुनकर अश्विनी का हृदय दुःख और पश्चाताप से चित्कार उठा।सुनयना को देखा,तो फूट-फूटकर रोने लगा।

हाथ जोड़कर कहने लगा, “मैंने अपनी देवी तुल्य दीदी पर शक किया, आपके प्यार का अपमान किया है।मुझे क्षमा कर दो दीदी।आपने मुझे पाला-पोसा ,पढ़ाकर-लिखाकर एक अच्छा इंसान बनाया, अपना खून देकर मेरी जान बचाई और मैंने..।दीदी,आपने इतने उपकार किये हैं मुझपर, मैं आपका कर्ज़ कैसे चुकाऊँगा?” 

सुनयना मुस्कुराई और अपने भाई के आँसू पोंछते हुए बोली , ” समय के साथ रिश्तों में चाहे कितनी भी दूरियाँ और गलतफहमियाँ आ जाए लेकिन प्यार कभी कम नहीं होता है।आखिर अपने तो अपने ही होते हैं ना मेरे भाई और अपनों का अपनों पर कोई कर्ज़ नहीं होता है।” 

“फिर भी दीदी, मैं तो आपका सौतेला…।” अश्विनी कुछ और कहता, सुनयना ने अश्विनी के मुँह पर अपना हाथ रख दिया और बोली, ” बस, अब कुछ न कहना।मैं बीमार पड़ती तो क्या तू अपनी दीदी की सेवा नहीं करता।” 

” दीदी… ” कहकर अश्विनी एक छोटे बच्चे की तरह अपनी दीदी से लिपट गया।सुनयना ने नीता को भी अपने हृदय से लगा लिया और दूर खड़ा सुनयना का पति सुरेन्द्र भी बरसों से बिछड़े अपनों के मिलन को देखकर भाव- विह्वल हो उठा।

 #अपने_तो_अपने_होते_हैं

                            — विभा गुप्ता 

   

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