निःशब्द प्यार – बालेश्वर गुप्ता  : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi :  माँ एक बार मिनी से मिल तो लो,पहले से कोई मन मत बनाओ।माँ मुझे पूरा विश्वास है मिनी को तू नापसंद नही करेगी।प्लीज माँ।

         राहुल और मिनी एक दूसरे से बेइंतिहा प्यार करते थे।एक दूसरे का हो जाने की कसमें खाना और भविष्य के सुनहरे सपनो में दोनो का खोये रहना,उनके एक दूसरे के प्रति आकर्षण का प्रतीक तो था ही।

हालांकि मिनी कॉलेज में उससे जूनियर थी,पर सांस्कृतिक कार्यक्रमों में दोनो की रुचियां होने के कारण उनका मिलना होता रहता था।इस मेल मिलाप के बीच ही दोनो में प्रेम के बीज अंकुरित हो गये।दोनो एक दूसरे को चाहने लगे। राहुल के पिता नही थे,उनका सब व्यवसाय माँ ही कुशलतापूर्वक संभाल रही थी।

       अपनी फैक्टरी जाते समय माँ की नजर एक दिन राहुल और मिनी पर पड़ गयी,जो एक दूसरे का हाथ पकड़े बेफिक्र जा रहे थे।उस समय तो मां ने कुछ कहा नही,लेकिन घर आकर जरूर पूछा-राहुल तुम्हारे साथ कौन लड़की थी?माँ से यह प्रश्न सुनकर राहुल एक बार को सकुचाया फिर मन मजबूत कर और यह सोचकर कि यही अवसर है जब वह अपने और मिनी के बारे में माँ को सबकुछ बता सकता है, राहुल बोला माँ मुझे आपसे कुछ नही छिपाना चाहिये था,मुझे माफ़ कर देना माँ।असल में माँ मैं और मिनी एक दूसरे से बहुत प्यार करते हैं।माँ मिनी को स्वीकार करोगी ना?

      माँ बोली क्यो नही बेटा, तुम्हारी खुशी में ही तो मेरी खुशी है।बस मिनी की बिरादरी और स्तर अपने जैसा होना चाहिये।बिरादरी का तो पता नही,पर स्तर का आशय माँ आपका क्या है,मुझे नही मालूम।यदि धन संपत्ति से है तो मिनी सामान्य परिवार से है,लेकिन संस्कारो में उनका परिवार ऊंचा है।माँ बोली,मैं सब समझ गयी बेटा, अब तुम भी समझ लो,मिनी से दूरी बना लो,यह शादी सम्भव नही।

कहकर मां तेजी से चली गयी।माँ से राहुल कहता ही रह गया,मिनी से एक बार मिल तो लो।मां ने एक ना सुनी।हतप्रभ सा राहुल खड़ा का खड़ा रह गया।माँ की अवमानना करके राहुल मिनी से शादी करने की सोच नही सकता था और न ही अन्य किसी से शादी का वह विचार कर सकता था।इन्ही विचारो में राहुल खोया खोया रहने लगा।हर समय शून्य में निहारते रहना ही उसकी नियति बन गयी थी। दिन प्रतिदिन राहुल की सेहत भी गिरने लगी थी।अपने एकलौते पुत्र की इस हालत का कारण मां समझ रही थी,आखिर माँ ने हार मान राहुल की शादी मिनी से कर दी। अब राहुल और मिनी को मंजिल मिल गयी थी,वो खूब खुश थे।

      शादी तो हो गयी थी,पर माँ के मन मे टीस थी,अपनी हार की।अनिच्छा होते हुए भी माँ को राहुल और मिनी की शादी करनी पड़ी थी,वे मन से मिनी को स्वीकार कर ही नही पायी थी।

     शादी के बाद मिनी को नया घर मिला था।मिनी को अपने घर मे घर का काम करने की आदत थी,वो चाहती थी, राहुल और माँ को अपने हाथ से बना खाना खिलाउ,पर यहां तो रसोईया था, मां ने साफ कह दिया था कि उसे रसोइया के हाथ का ही खाना पसंद है, मिनी का एक तरह से रसोई के कार्य से छुट्टी,लॉन में कुछ करना चाहे तो वहां माली,वह भी हाथ लगाने को मना कर देता।मिनी करे तो क्या करे,कैसे समय व्यतीत करे।धीरे धीरे उसको समझ आ गया कि वह इस घर की अनिच्छा की बहू है।माँ कुछ कहती तो नही पर वो मिनी को स्वीकार नही कर पा रही है।मिनी जितना माँ के करीब जाना चाहती माँ उतना दूर हो जाती। उसकी समझ मे ही नही आ रहा था कि वह करे तो क्या करे?

     एक दिन माँ और राहुल दोनो ही अपने ऑफिस गये हुए थे,लंच दोनो ने साथ किया।खाना घर से ही बनकर गया था,पर कुछ लापरवाही के कारण खाना विषाक्त हो गया,जिससे दोनो को फ़ूड पोइसिनिंग हो गयी,दोनो को उल्टियाँ और फिर डिहाइड्रेशन।पूरी रात माँ बेटे को हॉस्पिटल में रहना पड़ा,मिनी ने बड़ी ही तत्परता से सब औपचारिकता भी पूरी की और घर भी संभाला।

अगले दिन दोनो हॉस्पिटल से घर आये तो कमजोरी अधिक थी,डॉक्टर ने भी दो तीन दिनों के आराम की सलाह दी थी तो दोनो अपने अपने बेड रूम में लेट गये।मिनी ने दोनो की देखभाल के जिम्मा खुद संभाल लिया।माँ मिनी की तत्परता,चिंता और कर्मठता अपनापन देख रही थी।तभी उनके कानों में आवाज पड़ी।रामू काका अब से आप खाना बनाने में मेरी मदद करेंगे पर माँ और राहुल का खाना मैं ही बनाया करूंगी।सुनकर मां को अंदर कही प्रसन्नता भी हुई और अपने पर ग्लानि भी।

       दो दिन बाद माँ ठीक हो गयी और ऑफिस जाने को तत्पर हुई तो बोली अरे मिनी बेटी मेरा लंच बॉक्स तो लाकर दो।ये शब्द ही तो अधिकार के प्यार के प्रतीक थे,जिन्हें सुनने को मिनी तरस रही थी,भौचक्की मिनी माँ को देखती रह गयी,फिर दौड़ती हुई किचिन की ओर भागी,हाँ मां अभी लाई।लंच बॉक्स माँ को देते हुए मिनी की आंखे जो डबडबाई तो माँ ने मिनी को खींचकर गले से लगा लिया।दोनो में बोला कोई नही,पर  एक दूसरे के भाव तो उमड़ ही रहे थे।

  बालेश्वर गुप्ता,नोयडा

मौलिक एवं अप्रकाशित।

#सासूजी तूने मेरी कदर ना जानी

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