नारी का मान  -अनामिका मिश्रा

आज फिर नीता के ससुर चिल्ला रहे थे उसकी सास के ऊपर। नीता की सास अकेले ही मंदिर जाना चाहती थी, सावन का महीना चल रहा था, वह जाने को तैयार हुई और कहा,आ रही हूँ दर्शन करके, मैं अकेले ही चली जाऊंगी!”

बस क्या था लगे चिल्लाने ससुर जी, “आज तक इस घर की बहूएं घर के बाहर अकेली कदम ना निकाली, अब इस बुढ़ापे में तू ये ना कर, क्या सीखेगी  बहू, हमारे यहां आज तक घर की औरतें अकेली बाहर न निकली!”

तब तक नीता के पति भी वहां आ गए  नाम था विजय।

उसने कहा, “हां मां, जो तुम करोगी नीता भी वही सीखेगी, जो इस घर का  नियम है उसे तुम मानोगी तभी तो वो भी मानेगी!”

फिर विजय ने कहा, “क्यों ऐसा काम करो, एक बार कदम निकले तो फिर पर लग जाते हैं इन औरतों के, हमारी भी तो इज्जत का ख्याल करो…लोग क्या कहेंगे, मैं रोहन से कह दूंगा..वो तुम्हारे साथ चला जाएगा!”

रोहन नीता का बेटा वो वहीं बैठा सब चुपचाप सुन रहा था।वो दसवीं कक्षा का छात्र था। अभी बहस चल ही रही थी कि,  कॉल बेल बजा, नीता रसोई में थी।

रोहन ने दरवाजा खोला तो पोस्टमैन कोई लेटर लेकर खड़ा था। रोहन ने नीता को आवाज लगाया। तब तक सब उससे पूछने लगे, “क्या है ,किसका लेटर है?”

तब तक नीता भी आ जाती है रसोई से।

रोहन ने कहा, मां तुमने जो टीचर के लिए अप्लाई किया था न यह उसी स्कूल से आया है, तुम्हें वहां टीचर की नौकरी मिल गई है, सोमवार से बुलाया है, यह देखो पढ़ लो!”

यह सुन नीता के ससुर और पति एक दूसरे को देखने लगे ससुर ने कहा, “पर हमसे कुछ बताया नहीं, अपने मन से यह सब कैसे कर लिया तुमने नीता!”

नीता कुछ कहती, उससे पहले ही रोहन ने कहा, दादाजी और पापा,…अब मैं सब से कहूंगा, कि मेरी मां भी टीचर है, कुछ करती है,…मैं तो बहुत खुश हूं,…और हां माँ अकेली ही जाएगी स्कूल,…मैं साथ में छोड़ने नहीं जाऊंगा,…क्योंकि मेरे पास इतना समय नहीं है!”

नीता के पति विजय ने कहा, नीता लोग क्या कहेंगे, मेरे रहते तुम्हें ये सब करने की क्या जरूरत है?’

तब नीता ने कहा, “मां पढ़ी-लिखी नहीं थी, इसलिए सब बर्दाश्त करती गई ये उनकी मजबूरी बन गई,..और ताने सुनकर सब सहती रही, और  गुलाम की तरह रही,…

पर मैं अपने आत्मसम्मान को खोने नहीं दूंगी…आप साथ दे ना दे पर मेरा बेटा मेरा साथ है…और मैं अपना फैसला नहीं बदलूंगी, आप लोगों से पहले नहीं बताया क्योंकि आप लोग मुझे रोक देते और मैं कोई मर्यादा का उल्लंघन नहीं कर रही….क्या सही है क्या गलत …मैं भी समझती हूं!”

नीता इतना कहकर लेटर लेकर अंदर चली गई ।

स्वरचित अनामिका मिश्रा

झारखंड (जमशेदपुर)

 

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