पलाश के फूल – सुधा  जैन

अनुराधा और अनुरंजन कॉलेज में साथ ही पढ़ते थे ।दोनों के बीच में कब प्यार के बीज का अंकुरण हो गया पता ही नहीं चला। दोनों ने अपनी एजुकेशन पूरी की और अनुराधा प्राथमिक विद्यालय में शिक्षिका बन गई ,और अनुरंजन कॉलेज में खेल प्रशिक्षक ।

दोनों ने अपने माता पिता से अपने विवाह की  आज्ञा मांगी ।अपने बच्चों के मनोभाव का सम्मान करते हुए माता पिता ने सहर्ष अनुमति दे दी ,और उस दिन दोनों को लगा उनके जीवन में पलाश के फूल का बीजारोपण हो गया हो ।

जीवन बहुत सुंदरता से बीतने लगा ।दोनों के बीच प्यार ,मनुहार, सम्मान सभी था। अनुराधा को अपने स्कूल के छोटे-छोटे बच्चों से बहुत प्यार था।

वह उनको हर दिन प्यारी प्यारी कविताएं ,कहानियां सुनाती। चित्रकला सिखाती ।बच्चे भी उससे बहुत प्यार करते , और अपनी छोटी छोटी ड्राइंग के माध्यम से अपनी प्यारी सी मैडम के लिए प्यार का इजहार करते।

अनुरंजन भी अपने विद्यार्थियों में बहुत लोकप्रिय थे। वह अपने कालेज की क्रिकेट टीम को बहुत अच्छे से प्रशिक्षित कर रहे थे ।प्यार भरे दिन बीतते देर नहीं लगती ।उन दोनों की शादी को 4 वर्ष हो गए। अनुराधा और अनुरंजन दोनों के मन में मातृत्व पितृत्व की चाह पनपने लगी। अनुराधा अपने स्कूल से आते समय शहर की प्रसिद्ध गाइनेकोलॉजिस्ट डा.मनाली से अपना पूर्ण चेकअप करवाया ।सब कुछ सही था और मातृत्व की राह में कोई बाधा नहीं थी। डॉक्टर मनाली ने कहा “आप अपने पति का भी चेकअप करवा लीजिए”।

उसने अपने मन की बात बहुत प्यार से अनुरंजन से कहीं। अनुरंजन हंसने लगा,” अरे मुझ में क्या कमी होगी’ मैं तो स्वस्थ हूं” प्रसन्न हूं’ खेल प्रेमी हूं ‘फिर भी तुम कहती हो तो करवा लेता हूं”।

अनुरंजन ने सारे मेडिकल टेस्ट करवाएं और परिणाम चौंकाने वाला था ।सारी स्वस्थता के बावजूद वह पितृत्व सुख को नहीं प्राप्त कर सकता था।

दोनों के बीच में एक अजीब सा सन्नाटा पसर गया। घर की हंसी गायब हो गई। अनुरंजन अनुराधा से बचने की कोशिश करने लगा। एक दिन अनुराधा ने प्यार से कहा “यह सन्नाटा कब तक चलेगा? अनुरंजन बोले” क्या करें ‘किसी बच्चे को गोद ले लेते हैं “



अनुराधा बोली “नहीं मुझे तो बच्चे को जन्म देना है’, एक नवसृजन की कल्पना उसके मन में फूट रही थी, मां बनने का सुखद एहसास वह प्राप्त करना चाहती थी।

उसने बोला” आजकल तो टेक्नोलॉजी बहुत बढ़ गई है मैं आईवीएफ के द्वारा स्वस्थ गर्भधारण पर बच्चे को जन्म देना चाहती हूं”

यह बात सुनकर अनुरंजन बहुत गुस्से में आ गए और उनका पुरुषत्व उन पर हावी हो गया। वे बर्दाश्त नहीं कर पा रहे थे कि उनकी पत्नी किसी और के बच्चे का गर्भ धारण करें ।

घर पर कई दिनों तक चुप्पी छाई रही। अनुरंजन को ऐसा लग रहा था, इस संबंध को ढोने से अच्छा है, छोड़ दिया जाए।

अनुराधा मन ही मन टूट रही थी।

एक दिन कालेज के एक विद्यार्थी नमन ने आकर अनुरंजन को खुशखबरी सुनाइए कि “मेरा प्रदेश की टीम में सिलेक्शन हो गया और यह सब आपकी मेहनत का फल है, सर आप बहुत अच्छे हैं, मुझे आप में अपने पापा की छवि दिखती है”। अनुरंजन उसे  देखने लगे, तब उसने कहा कि” पापा बनने के लिए जरूरी नहीं है कि किसी को जन्म नहीं दिया जाए पापा बनने के  एहसास, प्यार और अपनेपन से भी पापा बना जा सकता है। उन्होंने नमन को गले लगा लिया।

इसके साथ ही उनके मन में अपनी पत्नी अनुराधा के प्रति, उसके मातृत्व के प्रति एक सम्मान की भावना आ गई ,और वे सोचने लगे सच ही तो कह रही है, अनुराधा” वह मां बनने के एहसास को जीना चाहती है ,और मुझे क्या अधिकार है उसे इस सुख से वंचित करने का,।

वह जल्दी से घर आया और अनुराधा को अपने व्यवहार के लिए क्षमा मांगते हुए कहा कि हम कल ही डॉक्टर मनाली के क्लीनिक चलते हैं।

अनुराधा खुश हो गई और फिर चिकित्सकीय प्रक्रिया आरंभ हुई, और कुछ ही माह में नवसृजन की शुरुआत हो गई और प्यारी सी गुड़िया अरुणिमा ने आकर उन दोनों के जिंदगी की सारी कमी पूरी कर दी।

जिस पलाश के फूल उन्होंने बीजारोपण किया था वह पूरी तरह खिल चुके थे।

सुधा  जैन

 

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