नंदिनी – अविनाश स आठल्ये : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi : ओह्ह !! आज भी पापा अपना लंचबॉक्स ले जाना भूल गये हैं, चलो मैं अपने स्कूल जाते जाते उनको ऑफिस में देते आऊँगी..नंदिनी ने डायनिग टेबल पर पैक करके रखे पापा के लंचबॉक्स को देखकर सोचा।

कुछ ही देर बाद नंदिनी व्हीलचेयर से उतरकर नगर-निगम के ऑफिस में जाकर घिसटते हुये अपने पिता के केबिन के बाहर खड़े चपरासी मोहनलाल को पिता के लिये लाया टिफ़िन देती है.. चपरासी मोहनलाल टिफ़िन लेकर राठौर साहेब के टेबल पर रखकर फिर से अपनी कुर्सी में बैठ गया।

सब कर्मों का फ़ल हैं भाई.. कुछ न कुछ ग़लत काम तो किया ही होगा राठौर साहेब ने, वरना इतना बड़ा पद, मोटी तनख्वाह क्या कुछ नहीं है उनके पास, फिर भला भगवान हमेशा “गर्दन ऐंठी रखने” वाले राठौर साहेब की इकलौती बिटिया को ऐसे पोलियो की बीमारी क्यों देता? नंदिनी के दूर जाते ही मोहनलाल ने पास खड़े दूसरे चपरासी से कहा।

मोहनलाल की बातें सुनकर नंदिनी का मन कुंठा एवम वितृष्णा से भर गया था, वैसे गलत तो नहीं कहा था मोहनलाल ने, नंदिनी को पोलियो की लाइलाज बीमारी थी, राठौर साहेब के पास सबकुछ था, मगर बस यही एकमात्र दुःख था, उसके इलाज के लिये क्या कुछ नहीं किया था उन्होंने, लेकिन नन्दिनी के पैरों में जान डाल सकें, ऐसी कोई दवा बनी ही नहीं थी। 

ऑफिस स्टाफ की पार्टियों में, सार्वजनिक समारोहों में, अथवा पारिवारिक समारोहों में जहां भी राठौर साहब नंदिनी को लेकर जाते, लोग पता नहीं क्यों नंदिनी से दूर हटकर खड़े हो जाते, जैसे कि पोलियो कोई छूत की बीमारी हो, उससे भी ज़्यादा नंदिनी को उन लोगों की नफ़रत भरी निगाह चुभती थी। स्कूल में भी नंदिनी के साथ कोई भी बैंच पार्टनर नहीं बनना चाहता था। यही वजह थी कि न चाहते हुए भी राठौर साहेब ने नंदिनी को शहर के एकमात्र विकलांग स्कूल में एडमिशन करवाया था।

हताशा में कई बार नंदिनी ने सोचा कि वह आत्महत्या कर ले, आख़िर वही तो एकमात्र वज़ह है अपने पिता के दुखों की। उसकी माँ तो उसे जन्म देते ही भगवान के पास चली गई थी, अग़र वह भी माँ के साथ गुज़र गई होती तो शायद पिताजी किसी अन्य जगह विवाह करके एक खुशहाल जिंदगी जी रहे होते। रोज़ रोज़ यूँ अपमान सहन करके जीने से तो मर जाना आसान था।

लेकिन अपने प्रति पिता का प्यार और दुनियां से उनका संघर्ष देखकर नंदिनी ने भी हार नहीं मानी, उसने कड़ी मेहनत से पढ़ाई करते हुए प्रत्येक परीक्षा में अव्वल स्थान पाप्त किया।

फिर एक दिन अपनी कमजोरी को ही अपनी मजबूती बनाकर नंदिनी ने जब “सामान्य कोटे” से परीक्षा देकर भी UPSC में पूरे देश में तीसरा स्थान प्राप्त किया तो इस बार राठौर साहेब की मूछें ऐंठी रहने से कोई भी नहीं रोक सकता था।

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यदि आपके आसपास कोई “शारिरिक रूप से विकलांग” हो तो उसका मज़ाक उड़ाना अथवा भेदभाव  करना आपकी “मानसिक विकलांगता” प्रदर्शित करता है। यहीं वज़ह हैं कि हमारे माननीय प्रधानमंत्री जी ने विकलांगों को “विकलांग” न कहकर “दिव्यांग” शब्द देकर उन्हें समाज में विशिष्ट स्थान देने का अनुकरणीय प्रयास किया है।

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✍️अविनाश स आठल्ये

स्वलिखित, सर्वाधिकार सुरक्षित

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