मायके का सामान – सुनीता मिश्रा : Moral stories in hindi

“दम घुटता है मेरा इस घर में।”

इस वाक्य को रोज रात सोने से पहिले कहना अवनी का नियम बन गया था ।शादी को कुल जमा चार माह ही हुए थे।

“ये मुर्गी के दड़बे जैसा घर।”

“मायके से आया मेरा कीमती समान कबाड़ की तरह ठुँसा है।”

“तुम्हारी माँ की अल्सुबह से खट पटर ।”

“गुड्डी (मेरी छोटी बहिन)और देवर जी आधी रात तक पढ़ते है लाईट जलती है तो नींद नही आती।”

“कितना छोटा है पांच लोगो के लिये ये टू बी एच के।”

और फिर वही–दम घुटता है मेरा इस घर में —-

फिर एक दिन—–


“सुनो पापा ने वहीं,अपनी कालोनी मे हमारे लिये  फ्लैट ले लिया है।हम वहाँ शिफ्ट हो जाते है,नये घर मे।”

“अम्माँ से पूछ लिया तुमने?”

“अब पूछना क्या,समान पैक करें ।”—–

इसके बाद—–

“सुनो ,सामान की पैकिंग हो गई। “

“अम्माँ को बता दिया,क्या क्या ले जा रही हो।”

“अब इसमे बताना क्या,जो सामान हम अपने मायके से लाये थे,वही ले जा रहे है।वैसे भी तुम्हारे घर का कोई सामान ले जाने लायक है क्या?”

आज सुबह—

“सुनो समान का ट्रक निकल गया है,पापा ने वहाँ नौकर भेज दिया है हैल्प के लिये।”

“चलिये न,ड्राईवर इन्तजार कर रहा है।”

“अवनी,तुम जाओ,मैं नहीं चलूँगा ।मैं  तुम्हारे मायके से मिला समान तो हूँ नहीं ।मै इसी घर का हूँ और यहीं रहूँगा”।

सुनीता मिश्रा

भोपाल

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