नयी सुबह – नीरजा रजनीश जायसवाल

नींद सुनन्दा की आंखो से कोसों दूर थी ।पलंग पर करवटे बदलते हुए अपने कानों में गूंजती स्निग्धा की आवाज़ उसे बार बार आहत कर रही थी “मम्मा अगर आज पापा होते तो भी क्या मेरी यही हालत होती? “

बिटिया का ये सवाल उसे बार बार ग्लानि का अनुभव करा रहा था विगत चार वर्षों की घटनाएं चलचित्र की तरह उसके मस्तिष्क पटल पर चलने लगी ।कितनी खुश थी वो उस दिन जब अर्पित को स्निग्धा के लिए जीवन साथी चुना ।दिखने मैं आकर्षक वाणी में मिठास और अच्छी कम्पनी में उच्च पद पर ।

धूमधाम से विवाह हुआ और स्निग्धा भी मन में सुखद सपने संजोये घर से विदा हुई ।

पर ये क्या,विदाई के बीस बाईस दिनों के बाद से ही सपनो का बिखराव शुरू हो गया ।अर्पित,सासू माँ,और ननद के तानों में प्रतिदिन वृद्धि ।सुन्दर,सुशील स्निग्धा को साँवले रंग के लिए

उपहास का पात्र बनना पडता ।सारा दिन घर के सभी काम करने के बाद जब ऑनलाइन आवेदन करने लगती तो सासू माँ अपनी कडक आवाज में किसी न किसी बहाने से उठा देती ।स्निग्धा सबका दिल जीतने की जितनी कोशिश करती उतना उसे नीचा दिखाया जाता

ऐसी न जाने कितनी बातें जब जब स्निग्धा सुनन्दा को बताती तो माँ होने के कारण वो सदैव स्निग्धा को धीरज रखने की सलाह देती और कहती कि नये सम्बन्धों को कुछ समय देना चाहिए सब ठीक हो जाएगा ।



पर अब तो सब साफ हो रहा है विवाह में प्राप्त दहेज उनके स्टेटस से मेल नहीं खाता रोज ऐसे तानों को अनसुना कर देती स्निग्धा पर अर्पित की ऐसी सोच ने उसे अन्दर तक झिझोडं दिया ।मानसिक तनाव के कारण पिछले दो वर्षों में दो गर्भपातो से स्निग्धा अभी तक उबर नहीं पायी थी कि गर्भावस्था में विश्राम की डाक्टर की सलाह को सब घरवालों ने अनदेखा कर दिया ।

आज तो हद ही हो गयी जब छोटी चेचक निकल आने पर उसे असहाय छोड़ ये घोषणा कर दी कि वे इस छूत की बीमारी में उसकी देखभाल नहीं कर सकते और उसे अपनी मम्मी को बुला लेना चाहिए ।

सोच रही थी सुनन्दा कि और कब तक अपनी बेटी को अपमान और तिरस्कार भरी जिंदगी जीने के लिए वहां छोड़ दे अबतक बार बार जमाने की दुहाई देकर,कभी समझा कर बार बार समझौता कर जीने के लिए मैंने बिटिया को विवश कर दिया ।इंजीनियर बना कर भी उसे आत्मनिर्भर न बनने दिया पराश्रित कर दिया ।नहीं नहीं अब और नहीं ।

सोचते सोचते पता नहीं कब रात बीत गयी और सूरज ने दस्तक दे दी और सुनन्दा   सुनन्दा एक दृढ़ निश्चय के साथ उठकर तैयारी करने लगी स्निग्धा के ससुराल जाकर तीमारदारी के लिए नहीं अपितु उसे वापिस ला कर एक नयी व अच्छी जिन्दगी जीने की प्रेरणा देने का निश्चय लेकर चल पडी सुनन्दा उस नयी सुबह  जिसकी चमक ही कुछ अलग थी

 

        स्वरचित एवं मौलिक

         नीरजा रजनीश जायसवाल अम्बाला शहर हरियाणा  

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