नयी पहचान – स्मृति श्रीवास्तव

प्रिया 3 बहनों में सबसे बड़ी दीनदयाल और रमा जी की बेटी | दीनदयाल जी को तो लड़का चाहिए था पर कहते हैं ना कुछ चीजें ऊपर वाले के हाथ होती हैं | उसे और उसकी बहनो रीमा और आरती को कभी पिता से प्यार मिला ही नहीं , माँ भी डरती थी पिताजी के समाने उनकी बोलने ही हिम्मत ना होती | पिता के लिए तो ये बेटियाँ बोझ थी | जैसे तैसे प्रिया को बारहवीं तक बढ़ाया | और उसकी शादी राहुल से कर दी |

 

प्रिया शादी करके राहुल के घर आयी | यहाँ का माहौल उसके घर से बहुत अलग था | राहुल एक प्राइवेट कंपनी में सेल्स मैनेजर था | उसकी छोटी बहन ज्योति अभी पढ़ाई कर रही थी | पिता जी मनमोहन सरकारी नौकरी में थे और माँ गायत्री जी घर संभालती थी | 

 

राहुल और बाकी सभी ने प्रिया से कहा अगर वो और पढ़ना चाहती हैं तो उसका दाखिला कॉलेज में करवा देंगे | प्रिया को तो जैसे बिन मांगी मुराद पूरी हो गई हो | 

 

राहुल ने उसको दाखिला अपनी बहन के कॉलेज में करवा दिया | अब दोनों नंद भाभी साथ में जाती | गायत्री जी भी पूरा सहयोग करती | प्रिया को जो प्यार और अपनापन अपने माँ पिता से नहीं मिला वो उसे यहाँ मिल रहा था | समय बीता प्रिया ने बहुत अच्छे नम्बर से पढ़ाई पूरी की | और आज वो उसी कॉलेज में अध्यापिका थी | 

 

अपनी मेहनत और परिवार के सहयोग और अपनापन से आज प्रिया ने एक नयी पहचान बना ली थी | अब वो इस काबिल थी कि अपनी बहनो और ऐसी कोई ल़डकियों का मार्गदर्शन कर सके | 

 

ये रचना काल्पनिक हैं पर आज भी समाज मे ऐसे परिवार हैं जहाँ बेटियों को मह्त्व नहीं दिया जाता | बेटा हो या बेटी अगर अवसर मिले तो दोनों प्रगति हासिल कर सकते हैं|

 

आपको मेरी रचना कैसी लगी जरूर बतायेगा |

 

कोई त्रुटि हो तो क्षमाप्रार्थी हूँ |

 

 

लेखिका 

स्मृति श्रीवास्तव

फरीदाबाद 

 

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