ना जाने कैसा जमाना आ गया है -सुषमा यादव : Moral stories in hindi

हाय रमवा,ना जाने कैसन जमाना आय गवा।अब बिटिया के घर मा, बाप आके रहियैं। 

( हे राम,”ना जाने कैसा जमाना आ गया है” कि अब बेटी के घर में उसका पिता आकर रहेंगे।) 

राशि के ससुर बड़बड़ा रहे थे अपने एक हमउम्र साथी से। 

देखा भैया,इनका बेटवा बहू भी उसी शहर में रहता है पर बहू इनको लेने गई और ये आ गए,अब ये भी हमारे साथ शहर जा रहें हैं। साथी बोले, हां भैया,ना जाने कैसा जमाना आ गया है।घोर कलयुग है।

राशि की मां बहुत पहले खतम हो गई थी और उसकी सास और पति भी नहीं रहे। राशि अकेले ही एक शहर में नौकरी करती थी। इसलिए वह अपने ससुर को लेने गांव गई थी। वहां से कुछ ही दूरी पर उसके पिता जी भी अकेले ही रहते थे। उनसे मिलने राशि गई और उन्हें भी अपने साथ शहर आने के लिए राजी कर लिया।

उन्हें लेकर वो अपने ससुराल आई तो उसके ससुर नाराजगी जताते हुए अपने दोस्त से शिकायत कर रहे थे। 

राशि उन दोनों को लेकर अपने घर शहर में आ गई। 

आये दिन ससुर को ताना मारते देखकर राशि को बहुत गुस्सा आता पर वो कुछ बोल नहीं पाती थी। 

एक दिन वह स्कूल से आई तो देखा पिता जी घर पर नहीं हैं पूछने पर पता चला कि वो अपने गांव चले गए हैं। 

राशि ने अपने ससुर से पूछा तो उन्होंने कहा कि भले चले गए।उनका यहां क्या काम? वो अपने बेटे के पास क्यों नहीं जाते ? वह यहीं तो रहता है। 

कोई बाप अपनी बेटी के घर में इस तरह डेरा डालता है क्या ? 

राम राम ना जाने कैसा जमाना आ गया है।

गुस्से में राशि ने कहा,आप को क्यों इतनी नाराजगी है उनसे। आपने ना जाने उनसे क्या कह दिया जो वो इस तरह बिना बताए चले गए।

वो मेरा नहीं खाते अपनी पेंशन का खाते हैं। आप भी जानते हैं वो नौकरी से रिटायर्ड हैं ।उन्हें अच्छी खासी पेंशन मिलती है। वो सारा पैसा मुझे निकाल कर दे देते हैं। 

किसी बात पर वो अपने बेटे के घर नहीं जाना चाहते। वो अपना सब काम करने में अभी भी सक्षम हैं। आप तो एक गिलास पानी भी नहीं ले सकते। 

आप का वो कितना ख्याल रखते थे, मैं उनके भरोसे निश्चित रहती थी।मेरे नहीं रहने पर आपको चाय, नाश्ता खाना पीना सब देते थे। आप दोनों साथ में बातें करते, टीवी देखते समय गुजारा करते थे। अब आप बिल्कुल अकेले हो गये हैं। उन्हें हमारी जरूरत नहीं है बल्कि हमें उनकी जरूरत है मैं  आपके लिए ही उन्हें यहां जबरदस्ती लेकर आई थी। वो तो आना ही नहीं चाहते थे।

अब रहिए अकेले जमाने की दुहाई देते रहिए।

राशि देखते रहती ससुर जी अक्सर उदास चुपचाप बैठे रहते। उन्होंने राशि से कहा,दुलहिन, अपने बाबू को बुला दो, अकेले बहुत खराब लगता है। राशि ने कहा आपने उनका बहुत अपमान किया है इसलिए वो चले गए, वरना वो तो बहुत ही सहनशील हैं। जल्दी किसी बात का बुरा नहीं मानते। 

एक दिन राशि दोपहर को अपने स्कूल से वापस आई तो देखा कि उसके पिता जी और श्वसुर जी खूब हंस हंस कर बतिया रहे थे। आश्चर्य से उसने कहा, बाबूजी आप इतने सबेरे, कैसे? उन्होंने हंसते हुए कहा कि हमारे समधी जी ने तुम्हारे किरायेदार से फोन करवा कर हमसे माफी मांगी और कहा कि समधी भैया, जल्दी आ जाओ, हमको तुम्हारे बिना अच्छा नहीं लगता है। अब हम तोंहका कछु ना कहब और हम रात के एक बजे ही बस पकड़ कर आ गए। तीन बार बस बदलना पड़ा पर हमको तो हमारे समधी जी ने बुलाया था ना तो आना ही पड़ा।

राशि बहुत खुश हुई । बहुत अच्छा किया आपने मेरी चिंता दूर हुई। पर ससुर जी,आप तो कहते हैं ना कि ” कैसा जमाना आ गया है” बेटी के घर में पिता आकर रह रहा है।

ना ना दुलहिन,अब हमका समझ में आ गया है कि जमाना बदलना चाहिए। पुरानी सोच से हमें बाहर निकलना होगा।  यहां सभी के घर लड़की के माता-पिता आकर रहते हैं और कुछ दिन बाद चले जाते हैं।आखिर जब किसी के बेटा नहीं केवल बेटी ही है तो उसके माता-पिता कहां जाएंगे? बेटी ही तो उन्हें सहारा देगी। बेटी को भी तो उन्होंने पाला पोसा, अपने पैरों पर खड़ा किया। तो उनका भी तो बेटी पर कुछ हक बनता है।

मैं अनपढ़ आदमी, बहुत देर से मेरे दिमाग में समझ आई।उस दिन से दोनों समधी बड़े प्रेम से रहते, हंसते बतियाते,एक साथ खाते पीते, टीवी देखते उनके दिन बड़े आराम से कट रहे थे।

सुषमा यादव पेरिस से

स्वरचित मौलिक अप्रकाशित

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