मुसीबत – छवि गौतम : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : “मैं कब से बोल रही हूं कि माधव बहू और बच्चों को लेकर गांव में आ जा वापस; लेकिन मेरी कोई सुने तब ना”,आजकल की बहूओं को तो परिवार से अलग दूर शहर की जिंदगी की एक बार हवा लग जाती है तो मजबूरी पड़ने पर भी वापस नहीं आने देती,आशा की सास उसको सुनाते हुए बोली।

माधव की मां चाहती थी की उनका बेटा बहू और पोते गांव में ही रहे उनके साथ,लेकिन ये भी सच ही है की एक बार गांव से परिवार छोड़ कर बाहर आकर अपना गृहस्थी बसा लो तो वापस जाना इतना आसान भी नहीं होता।

दरअसल माधव जी (आशा के पति) अपना गांव छोड़कर दिल्ली में आकर बस गए थे और एक छोटा सा व्यसाय शुरू कर एक शुरुआत करते है शुरुआत में थोड़ी मुश्किल जरूर आती है लेकिन धीरे धीरे गाड़ी पटरी पर आ ही जाती है। गांव से भी किसी ना किसी का आना जाना लगा ही रहता और गांव में रहते माता पिता को अपने बेटे से काफी उम्मीदें रहती।माधव शहर में आकर जरूर बस गया था लेकिन उसने अपने माता पिता और छोटे भाई बहनों की जिम्मेदारियों से कभी मुंह नहींं मोड़ा।

माधव से छोटे दो भाई और छोटी दो बहने जिनकी शादी की जिम्मेदारी माधव पर ही थी उनको अपने पास ही रखा पढ़ाया और फिर गांव से ही उनकी शादी भी की,साथ ही अपने दो बेटे और एक बेटी थे भाई बहनों की शादी के बाद लगा की अब तो सब अपनी अपनी गृहस्थी का भार उठाने लायक हो गए है।सोचते है की अभी तो बच्चे छोटे है अब थोड़ा जिंदगी अपने लिए जिएंगे अभी तक तो घर की जिम्मेदारियों में ही फसे रहे।

माधव का व्यवसाय भी अच्छा चल निकला था माधव अपने काम में व्यस्त रहता और आशा अपने बच्चों और अपनी गृह जीवन में, दोनों बच्चों की जिंदगी को सुरक्षित करने के लिए कड़ी मेहनत में जुट जाते है लेकिन भगवान भी हर कदम पर हमारी परीक्षा लेते ही रहते है जैसे ही लगता है की अब तो इस जिम्मेदारी से मुक्त हो गए है तो शायद जिंदगी थोड़ी आसान और बेफिक्र गुजरेगी कुछ समय के लिये लेकिन ऐसा कहा हो पाता है जिंदगी कभी आसान बेफिक्र होती ही नहीं है जब तक जीवन होता है तब तक इंसान उलझा रहता है अपनी जीवन की उलझनों को सुलझाने में, हमे कोई ना कोई टास्क मिला ही रहता है।

अचानक से बिजनेस में बड़ा नुकसान हो जाने के कारण सारा काम ठप हो जाता है, जिनसे पैसे चाहिए थे उन्होंने आजकल आजकल करके पैसे कभी लौटाए ही नहींं और जो भी कुछ जोड़ा था उसी से गुजारा करना पड़ता है लेकिन कितने दिन तक कोई भी बैठकर बिना काम किए बिना पैसे कमाए अपना घर संसार कैसे चला सकता है।

जैसे बूंद बूंद से समुंद्र भरता है वैसे वैसे ही खाली भी तो हो जाता है। दिन पर दिन हालात बिगड़ ही रहे थे अब दिन ऐसा आ गया था की घर में खाने के लिए भी नहींं था बच्चे भूखे थे तब आपको कोई सौ रुपए की मदद भी कर दे तो उसकी नजर में ये बहुत बड़ी मदद होती है क्योंकि उसके भूखे बच्चों का पेट आपके कारण भर रहा है।

ऐसी स्थिति की तो किसी ने संभावना भी नहीं की थी विषम परिस्थितियों के चलते माधव को दिल का दौरा पड़ जाता है आशा की तो जैसे दुनिया ही लुट रही थी माधव के पिता ने तो साफ इंकार कर दिया किसी भी प्रकार की मदद के लिए (वैसे उनका ये बोलना आशा को अखरा भी नहींं क्योंकि वो जानती थी की उन्होंने कभी कोई भूमिका निभाई भी नहीं है अपने बेटे या किसी और बच्चे के लिए) और छोटे भाई जिनकी पढ़ाई से शादी तक का भार बड़े भाई और भाभी ने उठाया उन्होंने भी ये कहकर अपना पल्ला झाड़ लिया की हमारी तो कमाई से कुछ बच ही नहीं पाता है और बहने वो तो ऐसी बदली की उन्होंने तो आना तक जरूरी नहींं समझा कभी भैया भाभी हम से पैसे की मदद ना मांग बैठे।

आशा के लिए ये सबसे बड़ी परीक्षा की घड़ी थी क्योंकि उसका अपनो के लिए जो भ्रम था वो टूट गया था की जरूरत पड़ने पर उनका परिवार उसकी मदद करेगा लेकिन समझ नहीं पा रही थी की अपना लुटता हुआ संसार कैसे बचाए?

गांव से सास ससुर के आ जाने पर थोड़ी राहत मिलती है क्योंकि वो जानती थी की उसकी सास चाहे उसे लाख सुनाए लेकिन वो अपने बेटे और उसके बच्चो से प्यार बहुत करती है उनके खातिर वो कुछ भी कर सकती है इस वक्त तो उनका साथ खड़े हो जाना ही काफी है।

ईश्वर की कृपा से किसी दूर के रिश्ते दार से आर्थिक मदद मिली और माधव का इलाज होकर,ठीक होकर घर आ गया।माधव की मां ने बहुत समझाने की कोशिश की फिर से वापस गांव चल कर रहने की लेकिन आशा जानती थी की जो देवर देवरानी गांव में रहते है वहाँ अब अधिकार उनका हो गया है वापस जाकर रहने का मतलब है अपना मजाक बनवाना और अपने पति का आत्मसम्मान गिराना।

कर्जा भी काफी हो गया था सब कुछ सोच विचार कर माधव और आशा यहीं रहकर अपनी परिस्थिति से लडने का मन बना लेते है। क्योंकि गांव जाकर उन्हें अपने बच्चों का भविष्य अंधकार में नजर आ रहा था अपने बच्चों के खातिर उन्होंने फिर से जिंदगी शुरू कर उसे सुधारने का फैसला किया।

दादी की खुशी के लिए कुछ दिन के लिए बच्चों को उनके साथ भेज दिया जिससे आशा माधव का ठीक से ख्याल रख पाये कुछ समय के बाद माधव भी ठीक हो गया।

आशा के साथ ने उसे फिर से हौसला दिया और फिर से शुरुवात की जीवन में एक नए अध्याय की “किसी भी चीज को बिगड़ने में समय लगे ना लगे लेकिन बिगड़े समय को सुधारने में पूरा जीवन लग जाता है “आशा और माधव का जीवन भी ऐसे ही गुजरा बच्चे भी अब बड़े हो रहे थे तो बच्चों ने भी अपनी अपनी लाइन के हिसाब से पढ़ाई के साथ साथ पार्ट टाइम जॉब ज्वाइन कर ली बुरा समय अगर आकर चला जाए तो वो एक सीख दे जाता है।

आशा और माधव को उनके बच्चों ने देखा था की उनके माता पिता ने कैसा कैसा समय देखा है लेकिन कभी उन्हें भूखा नहीं रहने दिया इस बार बारी बच्चों की थी अपने माता पिता को खुशियां देने की और अब वो उस काबिल हो चुके थे की अपने माता पिता की हर खुशी पूरी कर पाए हर वो इच्छा पूरी करे जिससे उनके माता पिता अपने लिए जीवनभर अनदेखा करते रहे सिर्फ उनके सुनहरे भविष्य के लिए।

ये बच्चे परिणाम थे आशा और माधव की परीक्षा का।अच्छा समय लौटकर वापस आ चुका था।

छवि गौतम।

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