जिंदगी इम्तिहान लेती है – सुषमा यादव : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : गरिमा आज खुशी के मारे चहक रही थी। झट से उसने अपनी मां को वीडियो कालिंग किया, मम्मी, मम्मी, यूके के हास्पिटल से मेरा ज्वाइनिंग लेटर आ गया है। अब मैं अपनी दीदी के पास पहुंच जाऊंगी।बस वहां से दो घंटे ही लगेंगे ट्रेन से।अब आप भी हम दोनों के साथ आकर आराम से रह सकतीं हैं।

बस अगले महीने मुझे जाना है तो आप नाना जी को लेकर आ जाईए। जाने के पहले मिलना भी हो जाएगा और मेरी शापिंग करवा कर मुझे विदा भी कर देना, पता नहीं फिर कब मिलना होगा।

हम सबने जो प्लानिंग की थी वो पूरी हो गई। मैं बहुत ज्यादा उत्साहित हूं।

गरिमा की मां रमा की आंखों में आसूं आ गए। बेटी हंसने लगी, अरे मां,आप तो अभी से भावुक हो रहे हो, अभी तो मैं आपके साथ एक महीने रहूंगी।बाद में आप भी आ जाना, नाना जी की व्यवस्था करके, एक दो महीने बाद वापस चली जाना।

रमा बोली, नहीं बेटा,बात ये है कि बाबू जी की तबियत अब ठीक नहीं रहती है। खाना बहुत कम कर दिया है। बस यही कहतें हैं मेरा सफ़र ख़त्म होने वाला है। मुझे ऊपर जाना है। वैसे तो उन्हें कुछ नहीं हुआ है,सब ठीक है,पर बहुत कमजोरी हो गई है वो चल फिर नहीं सकते। 

बेटा मैं तो ना अकेले और ना ही उन्हें किसी के भरोसे छोड़कर आ सकतीं हूं। 

यह सुनकर गरिमा जड़वत हो गई। हे भगवान, आप कितना इम्तिहान लेंगे। क्या अब मुझे एक साल के लिए बिना मां और नाना जी से मिले बगैर ही जाना पड़ेगा।

इधर मां छटपटा रही थी और उधर गरिमा के आंसू नहीं रुक रहे थे। उन दोनों बहनों और मां के ऊपर कितनी ही मुसीबतें आईं हैं।

सब सहते सहते मां पत्थर की हो गई है। पापा अचानक चले गए। दीदी की शादी के एक दिन पहले  दादा जी को आना था, पर वे उसी दिन कोमा में चले गए। मां बेटी की विदाई छोड़कर वापस चली गई। चार दिन बाद दादा जी चले गए थे पर मैं नहीं जा सकी।

उसके बाद मां को करोना हुआ, नाना जी के साथ मां की भी देखभाल की। कितने मुसीबत भरे वो दिन थे। एक तरफ नौकरी की जिम्मेदारी दूसरी तरफ नाना जी नब्बे साल और करोना से बिल्कुल अशक्त हो गई मां की सेवा, देखभाल। उसी दौरान मां के ब्लड टेस्ट के समय पता चला कि मां को ब्लड कैंसर है। उसका इलाज चल ही रहा था कि 

एक साल नहीं हुआ कि मां के पैर में भयंकर दर्द होने के कारण उनकी हिप रिप्लेसमेंट सर्जरी कराना पड़ा। 

अभी पूरी तरह स्वस्थ नहीं हो पाईं थीं कि नाना जी ने रट लगा दी उन्हें घर जाना है। उन्हें बहुत समझाया पर वो नहीं माने। आखिर मां को अपने किरायेदार के बेटे को बुला कर वापस जाना ही पड़ा। क्यों कि मेरी एक नये हास्पिटल में उसी समय ज्वानिंग करने के कारण मुझे अवकाश नहीं मिला।

और अब। ओह ,जिंदगी भी कितनी परीक्षाएं लेती है।

गरिमा ने कुछ निर्णय लिया और अपने आंसू पोंछ कर मां और नाना जी से मिलने रिजर्वेशन करने लगी और चार दिनों का अवकाश लेकर मिलने चली आई। मां, मैं आ गई हूं,  आप लोगों से मिले बगैर मैं कैसे जा सकती हूं। चार दिनों तक गरिमा ने नाना जी की खूब सेवा की, उन्होंने नहलाया धुलाया। तेल मालिश की। नाना जी ने जाते समय गरिमा को बहुत आशिर्वाद दिया। मां ने दुखी हो कर बेटी को रोते हुए विदा किया। गरिमा बोली, मां,रोओ मत। आपने तो कितनी मुसीबतें सही है और हम सबको धीरज, सांत्वना दी है।

पता नहीं,इन मुसीबतों ने हमारे घर का रुख क्यों कर लिया है ?

पर भगवान की कृपा से सब मुसीबतों से छुटकारा भी हम पा जाते हैं।  मां ने यह कह कर उसे धीरज बंधाया,बेटा, यदि हमारे बुरे ग्रह नक्षत्र हमें मुसीबत में डालते हैं,हम कष्ट देते हैं तो हमारे प्रभु उससे निजात पाने का रास्ता भी तो दिखाते हैं। वो सही समय पर सब ठीक कर देतें हैं। प्रभु के सब विधान पर भरोसा रखना चाहिए। वो जो भी करते हैं हमारे अच्छे के लिए करते हैं।

सोचो, यदि तुम्हारी दीदी के शादी के दिन ही दादा जी खतम हो गए होते तो। तुम्हारे यहां आने पर ही बाबू जी भी हमें छोड़कर चले जाते तो। इसी तरह तुम्हारे मेडिकल परीक्षा के दौरान तुम्हारे पापा हमेशा के लिए चले जाते तब सोचो,हम सब तो टूट जाते।

ऊपर वाले ने पहले ही से सब व्यवस्था बना ली थी। हमारा सब काम भी हो जाए और हम पर कोई भारी मुसीबत भी ना आए।

गरिमा मंत्रमुग्ध सी होकर मां को देखती रही। मां,आप सचमुच महान हैं। इतनी विपत्तियों में भी अपना विवेक, धैर्य और साहस नहीं खोतीं हैं। हमेशा सकारात्मक दृष्टिकोण रखतीं हैं और हम सबको भी सांत्वना देतीं रहतीं हैं।

हमें आपसे बहुत प्रेरणा मिलती है। 

गरिमा वापस दिल्ली लौट गई।

गरिमा ने अकेले ही अपना सब सामान बेचा, सारी पैकिंग की और अश्रुपूरित होकर अपनी मां को याद करते फ्लाइट पर बैठ गई। उसे यह सब करने पर कितनी परेशानियां झेलनी पड़ी यह तो वही जानती है। 

उसके जाने के पन्द्रह दिन बाद ही नाना जी चले गए। फिर से कोई नहीं पहुंच पाया और मां बेचारी अकेले ही। 

अब जाकर मां भी दोनों बेटियों के पास पहुंच गई और शायद अब इन मुसीबतों से छुटकारा मिल सके।

 “ओह, मुसीबतों से भरी हुई ये जिंदगी।

तू कितना इम्तिहान लेती है।

सुख कम और गम ज्यादा देती है।

पर इनसे लड़ना भी तू ही सिखाती है।”

सुषमा यादव पेरिस से

स्वरचित मौलिक अप्रकाशित 

# मुसीबत।

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