मेरी पहली गोवा यात्रा – कविता भड़ाना

 

नमस्कार पाठकों   मेरी पहली कहानी “आखिर वह कौन थी?”…को आप लोगों के द्वारा मिले ढेर सारे प्यार के बाद आज मैं अपनी दूसरी कहानी “मेरी पहली गोवा यात्रा”…लेकर प्रस्तुत हुई हूॅं ,.. तो आइए मैं आपको अपने साथ ले चलती हूॅं सन 2007 में जब मेरी नई नई शादी हुई थी!

 मेरे  नंदोई जी ,जो कि पुणे में एक मल्टीनेशनल कंपनी में कार्य करते थे ,उन्होंने हमें पुणे आने का न्योता दिया! सास ससुर और बच्चों की पढ़ाई की वजह से मेरी ननंद यहां दिल्ली में ही रहती थी, तो बस हम सबका पुणे जाने का प्रोग्राम बन गया ,22 साल की उम्र में ही शादी हो जाने की वजह से घर और कॉलेज के अलावा मैंने कुछ नहीं देखा था हमेशा कार या बस से सफर करने वाली मैं,जब पहली बार हवाई जहाज से पुणे आई तो अपनी खुशी शब्दों में बयान नहीं कर सकती, सच सब कुछ  सपने जैसा लग रहा था!

पुणे पहुंच कर देखा बड़ा ही सुंदर शहर है….नंदोई जी का फ्लैट भी शहर से थोड़ा बाहर पहाड़ों के साथ था!..कुल मिलाकर सब कुछ बहुत मनमोहक!!!!!…अब तो रोज सुबह कार लेकर निकलते!… पतिदेव ,ननंद रानी उनके दो बच्चे और मैं, खूब घूमते फिरते और शाम को नंदोई जी को उनके ऑफिस से लेकर घर आते! घर पर भी केयरटेकर होने के कारण हम बिल्कुल चिंता मुक्त थे! पुणे के साथ-साथ नासिक, शिर्डी, खंडाला ,अलीबाग ,मुलुंड ,महाबलेश्वर और मुंबई शहर सब खूब घूमा और अब बारी आई एक सरप्राइज की..!!!जी हां 23 मार्च को मेरा जन्म दिन होता है और शादी के बाद पहला जन्मदिन था तो नंदोई जी ने सरप्राइस दिया गोवा की ट्रिप प्लान करके!… 

मेरे तो पैर जमीन पर ही नहीं पड़ रहे थे, जिसने कभी ना पहाड़ देखे ना समुद्र उसे एक साथ सब कुछ मिल जाए तो वह तो बौरा ही जाए मेरी तरह!!…”खैर 23 की रात हम लोग पुणे से ट्रैवलिंग टूर बस द्वारा निकले और अगले दिन सुबह-सुबह पहुंच गए गोवा*…. कलंगुट बीच के पास एक विला में बुकिंग थी हमारी!.. इतना सुंदर और शांत था कि क्या बताएं.. अब इस 2 दिन की ट्रिप पर घूमने की जगहें बहुत सारी थी और समय कम….सामान रखकर और फ्रेश होकर निकल पड़े हम गोवा भ्रमण पर!..सच्ची बहुत मजा आया ,रात को थक कर अगले दिन नई जगहों को देखने की लालसा में हम भी अपने अपने बिस्तर में घुस गए और गहरी नींद के आगोश में चले गए!…



नींद में मुझे बेचैनी सी महसूस हुई और मैं जाग गई पानी पीने के लिए!…. हमारे पलंग के बिल्कुल सामने सोफा और एक आराम कुर्सी रखी हुई थी, कि अचानक मुझे लगा वहां कोई है”…बाहर से आ रही हल्की हल्की रोशनी में देखा तो मेरी रुह कांप गई..क्योंकि वहां पर कोई बैठा था!.. मुझे लगा वहम है!! आंखें कसकर बंद कर ली थी मैंने.. थोड़ी देर बाद खोली तो वो वहीं बैठी हुई  मुझे ही घूर रही थी!

जी हां वहां कोई बैठी हुई थी।… मैंने पास सो रहे पतिदेव को उठाया और उन्हें बताया कि देखो वहां कुर्सी पर कोई है! पतिदेव ने बिजली चालू की तो देखा वहां कोई नहीं था,कुर्सी खाली थी!.. मेरी घबराहट को देखकर पतिदेव ने पूरे कमरे और बालकनी की अच्छे से छानबीन की, पर उन्हे कोई भी नजर नहीं आया तब  उन्होंने कहा तुम बहुत थक गईं हो इसलिए ऐसा लग रहा है!.सो जाओ ..पर अब नींद कहां थी आंखों में।.. फिर भी आंखें बंद कर ली मैने..थोड़ी देर बाद फिर धीरे से देखा तो वो वहीं बैठी मुझे घूर रही थी, मैंने डर कर पतिदेव को फिर जगाया और बिजली चालू करते ही देखा कि कोई नहीं था।

…इस बार मैंने बिजली ऑन ही रहने दी पर मुझे उसके वहीं होने का एहसास होता रहा! अगले दिन सुबह भी स्नान घर में, कमरे में ,मुझे पल-पल उसका अपने आसपास ही होने का एहसास होता रहा और फिर दूसरी रात भी बिल्कुल पहले की तरह वह मुझे उसी आराम कुर्सी पर बैठे हुए दिखी।..उसकी आंखें मुझे आज भी बेचैन कर देती है! आज भी यह घटना याद आती है तो दिल दहल जाता है! ….. तो ऐसी थी “मेरी पहली गोवा यात्रा”.…..

यह मेरे साथ घटी हुई एक सच्ची घटना है! जिसके बारे में मेरे परिवार और करीबी रिश्तेदारों को पता है।

 अब तो मेरी दोनों बेटियों को भी यह घटना मैं बता चुकी हूं पर आज तक यह सवाल मन में उठता है!!! की “आखिर वह ………” ??????

समाप्त

कविता भड़ाना द्वारा स्वरचित

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